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Agriculture Reforms Bill 2020: विकल्प मिलने से सशक्त होंगे किसान

नए कृषि बिल को लेकर यदि कोई चिंता है तो बस यही कि बड़ी कंपनियां किसानों से उनके कृषि उत्पाद कम-से-कम दामों पर खरीदने की कोशिश करेंगी। अत यह सुनिश्चित हो कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 09:51 AM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 09:52 AM (IST)
Agriculture Reforms Bill 2020: विकल्प मिलने से सशक्त होंगे किसान
नई व्यवस्था में किसानों की सौदेबाजी की क्षमता कमजोर होने की बजाय बढ़े। फाइल फोटो

चंदन कर्ण। भारत के कुल किसानों में से 85 फीसद छोटे और सीमांत किसान हैं, जिन्हें फसल कटाई के उपरांत करीब-करीब एक जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चलिए हम उनके उत्पीड़न की कहानी को एक नाटकीय परिप्रेक्ष्य में समझने की कोशिश करते हैं-मंडी में किसान अपना माल फैलाकर एक कोने में बैठा हुआ है।

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कुछ-कुछ अंतराल पर वह मंडी के बिचौलिए से विनती करता है कि साहब मेरे माल की भी बोली लगवा दो। वह उसकी अनाज के ढेर के पास आता है और एक मुट्ठी अनाज अपने हाथ में लेकर बोलता है, 50 रुपये सस्ते में जाएगा यह माल। किसान लाचारी में सिर हिलाता है। थोड़ी देर में बिचौलिया आता है और उसका माल उठवाता है। वह बताता है कि कुल 18 क्विंटल माल बैठा है।

किसान कहता है कि वह तो घर से 20 क्विंटल माल लाया था। बिचौलिया धमकाता है, तेरे सामने ही तो वजन किया है, मैं थोड़े ही खा गया तेरा दो क्विंटल माल। वह अपना और मंडी का कमीशन, साथ ही सफाईवाले, बेलदार और तुलाई के रुपये काटकर किसान के हाथ में पैसे थमा देता है। किसान घर जाकर जब हिसाब लगाता है, तो पता चलता है कि सब काट-पीट कर कुल 15 क्विंटल माल का पैसा ही पल्ले पड़ा। बाकी के पांच क्विंटल के पैसे कहां गए?

पिछले रविवार को कृषि संबंधी विधेयकों के विरोध में राज्यसभा में आपने-हमने जो हो-हंगामा देखा, हाथापाई देखी, जो विरोध सड़कों पर देख रहे हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह सब उसी पांच क्विंटल के लिए हो रहा है, नहीं तो विरोध करने वाले भी जानते हैं कि किसानों के लिए न न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो रहा है और न ही प्रचलित मंडियां ही। बस किसानों को अपनी अनाज के लिए एक खरीदार वर्ग और मिल गया है। बहरहाल बिचौलियों के लिए अभी भी रास्ता खुला है, लेकिन वे अपनी मनमानी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि किसान अब उनकी मनमानी नहीं सहेगा और न ही अपनी पांच क्विंटल अनाज को यूं ही गंवाएगा।

बात करें इन बिलों के दूरगामी प्रभावों की, तो कंपनियां जब सीधे किसानों से खरीद करेंगी तो चार-पांच गांवों पर अनाजों के लिए कलेक्शन सेंटर्स, स्टोरेज, प्रोसेसिंग प्वाइंट आदि भी बनेंगे और यह लगभग हर वह कंपनी करेगी, जो इस क्षेत्र में आना चाहेगी। इन सबसे गांवों में संगठित रोजगार को बढ़ावा मिलेगा और वहां की जमीन की कीमत बढ़ेगी। गांव के स्तर पर विकास का एक नया मॉडल विकसित हो सकेगा। नए कृषि बिल को लेकर यदि कोई चिंता है तो बस यही कि बड़ी कंपनियां किसानों से उनके कृषि उत्पाद कम-से-कम दामों पर खरीदने की कोशिश करेंगी। अत: यह सुनिश्चित हो कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले और नई व्यवस्था में किसानों की सौदेबाजी की क्षमता कमजोर होने की बजाय बढ़े।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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