माता-पिता की मौत के बाद दो नाबालिग बहनों को मुआवजा राशि मिलने में नियमों का रोड़ा
मध्य प्रदेश के धार में दो नाबालिग बहनों को माता-पिता की मौत के बाद मुआवजे को लेकर सरकारी नियमों से जूझना पड़ रहा है।
धार (नईदुनिया)। माता-पिता की मौत के बाद दो अनाथ बहनों को अब सरकारी नियमों से जूझना पड़ रहा है। पिता की मौत की मुआवजा राशि बैंक में है और मां की बीमा राशि का तो अभी निपटारा ही नहीं हो सका है। यही नहीं आदिवासी वित्त विभाग से मिलने वाली सहायता राशि भी नहीं मिली है। अनाथ होने पर दोनों को होस्टल में रखा गया था, लेकिन छुट्टियों में होस्टल बंद होने से दोनों को गांव लौटना पड़ा है। अब गांव में अकेली रह रहीं दोनों बहनों की सामाजिक सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है। यह अच्छी बात है कि उनके खाने-पीने और देखभाल का जिम्मा फिलहाल पूर्व सरपंच ने ले रखा है।
गांव उंडली की सुनीता(10) और अनीता(7) के पिता मिश्रीलाल और मां लीलाबाई 2005 में गोधरा (गुजरात) मजदूरी करने गए थे। वहां मिनरल फैक्टरी में काम करते हुए दोनों जानलेवा सिलिकोसिस बीमारी के शिकार हो गए। 26 मार्च 2014 को मिश्रीलाल ने सड़क दुर्घटना में दम तोड़ दिया। मुआवजा प्रकरण में पिता के आश्रितों को 7 लाख 70 हजार रुपए की राशि देने के आदेश हुए। इसमें से एक लाख रुपए लीलाबाई के बचत खाते में डाले गए और 1 लाख 90 हजार 600 रुपए तीन वर्ष के लिए राष्ट्रीयकृत बैंक में जमा करने के आदेश दिए।
सुनीता और अनीता के नाम से 1 लाख 90 हजार की राशि दोनों के वयस्क होने तक बैंक में जमा किए जाने के आदेश कोर्ट ने दिए थे। बचत खाते की राशि से परिवार की गुजर बसर चलती रही। आदिवासी वित्त विभाग सिलिकोसिस से मौत होने पर पांच हजार रुपए सहायता राशि देता है। माता-पिता की 10 हजार की उक्त राशि भी दोनों को नहीं मिल सकी है।
मां भी चल बसी
मां लीलाबाई भी 21 जून 2016 को चल बसी। लीलाबाई का प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना के तहत बीमा था। 30 मई 2016 को बैंक ऑफ इंडिया की कुक्षी शाखा में उनके बचत खाते से बीमा राशि के क्रमश 330 रु. और 12 रु. काटे गए थे। जब दोनों बेटियां लीलाबाई की बीमा राशि लेने बैंक पहुंचीं तो उन्हें खाली हाथ लौटा दिया गया। बाद में पूर्व सरपंच टीकम माली दोनों को लेकर बैंक पहुंचे तो उन्हें जवाब मिला दोनों बेटियों के बालिग होने तक बीमा राशि नहीं दी जा सकती। दोनों के खाने-पीने की व्यवस्था अभी पूर्व सरपंच माली ने संभाल रखी है।
कोर्ट तय करेगा प्रधानमंत्री जीवन बीमा योजना का पैसा
एग्रीमेंट के तहत 18 साल से कम उम्र के आश्रित बच्चों को नहीं दिया जा सकता। अब कोर्ट निर्धारित करेगा कि दोनों का संरक्षण कौन करेगा और इस समस्या का हल क्या होगा। प्राधिकृत अधिकारी के पत्र के बगैर हम कुछ नहीं कर सकते। - कृष्णदेव वर्मा, मैनेजर, बैंक ऑफ इंडिया, कुक्षी
सामाजिक संस्थाओं से कहेंगे
इस मामले में कोर्ट से निवेदन करना चाहिए कि किसी व्यक्ति को अभिभावक बना दिया जाए और उसे इनके लिए पैसा खर्च करने का अधिकार सौंपा जाए। कोर्ट के निर्देश पर प्रशासकीय अधिकारी को भी अभिभावक बनाया जा सकता है। ऐसे में कोई सामाजिक संस्था दोनों बालिकाओं की जिम्मेदारी उठा ले, तो समस्या हल हो सकती है। - पूर्णिमा सिंगी, तहसीलदार कुक्षी