Move to Jagran APP

एमपी में सरकार गंवाने के बाद अब कांग्रेस के सामने आंतरिक चुनौतियां, बाहर तो पहले से मोर्चे खुले हुए

मध्य प्रदेश में सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस अब आंतरिक चुनौतियों से घिर गई है। बाहर तो मोर्चे खुले ही हैं उप चुनाव में करारी हार के बाद अंदर भी कई मोर्चे खुल चुके हैं। खुद पार्टी के कार्यकर्ता ही हार के कारणों की समीक्षा चाहते हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2020 01:29 PM (IST)Updated: Sun, 22 Nov 2020 01:29 PM (IST)
एमपी में सरकार गंवाने के बाद अब कांग्रेस के सामने आंतरिक चुनौतियां, बाहर तो पहले से मोर्चे खुले हुए
एमपी में चुनाव हराने के बाद अब पार्टी समीक्षा कर रही है। (फाइल फोटो)

मध्य प्रदेश [संजय मिश्र]। मध्य प्रदेश में सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस अब आंतरिक चुनौतियों से घिर गई है। बाहर तो मोर्चे खुले ही हैं, उप चुनाव में करारी हार के बाद अंदर भी कई मोर्चे खुल चुके हैं। खुद पार्टी के कार्यकर्ता ही हार के कारणों की समीक्षा चाहते हैं, लेकिन राज्य एवं केंद्रीय नेतृत्व ने मुंह सिल रखा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि उप चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी अभी तक किसी ने नहीं ली है। खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सरकार और ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। तो क्या असल वजह ईवीएम है जिसके पीछे कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस छिपाना चाहती है। यह सवाल कांग्रेस के अंदर भी उठने लगे हैं।

prime article banner

लगभग पंद्रह साल के वनवास के बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी पार्टी होने के कारण राज्य की सत्ता मिली थी। उसने सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों के गठजोड़ से कमल नाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई। तब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के झंडाबरदार थे। वह खुद भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने सिंधिया के बजाय कमल नाथ को तरजीह दी।

कमल नाथ ने सिंधिया के खिलाफ जबर्दस्त गोलबंदी करके संगठन और सत्ता पर अपनी पकड़ बना ली थी, लेकिन समय के साथ उनकी पकड़ ढीली होने लगी। महज सवा साल के अंदर ही सिंधिया, कमल नाथ एवं दिग्विजय के झगड़े सार्वजनिक होने लगे। उनकी असहमति गोलबंदी का रूप ले चुकी थी। सत्ता की इस लड़ाई में कमल नाथ को दिग्विजय सिंह का साथ मिल गया। फिर दोनों ने हर मोर्चे पर सिंधिया की घेरेबंदी में कोई कमी नहीं छोड़ी।

उन्हें उम्मीद थी कि दोनों की मजबूत गोलबंदी के कारण सिंधिया शिथिल पड़ जाएंगे। वे यह भी मानने लगे थे कि सिंधिया किसी भी स्थिति में कांग्रेस नहीं छोड़ सकते। दोनों का यही आकलन गलत साबित हुआ। सिंधिया ने मोर्चा लेने में कोई कमी तो नहीं छोड़ी, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व द्वारा आंखें मूंद लेने के कारण वह पार्टी के अंदर अलग-थलग पड़ते गए।

अंतत: अपनी अनदेखी से नाराज होकर सिंधिया ने वही किया, जिसका अनुमान कमल नाथ-दिग्विजय के साथ कांग्रेस नेतृत्व को भी नहीं था। उनके एक झटके से कमल नाथ सरकार गिर गई। सत्ता और संगठन के प्रबंधन में निपुण कमल नाथ काफी प्रयत्न के बाद भी स्थिति नियंत्रित नहीं कर पाए। इस तरह सिंधिया के विद्रोह के कारण राज्य में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई।

सत्ता परिवर्तन के बाद भी कांग्रेस उन खामियों को दूर नहीं कर पाई, जिसके कारण उसके 22 विधायकों ने एक साथ सिंधिया के समर्थन में पद से इस्तीफा दे दिया था। यही कारण है कि कुछ ही दिन में कांग्रेस के तीन अन्य विधायकों ने भी विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर भाजपा की सदस्यता ले ली। इस तरह भाजपा ने सत्ता में जहां अपनी पकड़ मजबूत की, वहीं कांग्रेस की दूरी बढ़ती गई। उसे उम्मीद थी कि उपचुनाव में उसके प्रति सहानुभूति लहर पैदा होगी और अपनी खोई सीटें जीतकर वह फिर से सत्ता में लौट सकेगी, लेकिन यह महज कल्पना साबित हुई।

28 सीटों में भाजपा ने 19 सीटें जीत लीं, कांग्रेस के हिस्से में महज नौ सीटें ही आईं। उपचुनाव के लिए मतदान के दिन ही एक्जिट पोल एवं राजनीतिक दलों के आंतरिक सर्वे में यह स्पष्ट हो गया था कि अधिकतर सीटें भाजपा के खाते में जाने वाली हैं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने हार की तोहमत ईवीएम एवं सरकारी मशीनरी पर मढ़ने की कोशिश शुरू कर दी।

दिग्विजय एवं कमल नाथ के आरोपों के बावजूद जनता ने उनकी थ्योरी पर विश्वास नहीं किया। अब तो कांग्रेस के अंदर ही इस थ्योरी को नकार दिया गया है। खुद कांग्रेसी ही मांग कर रहे हैं कि हार के कारणों की समीक्षा होनी चाहिए। फिलहाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ चुप्पी साधे हुए हैं। वह प्रदेश अध्यक्ष के साथ कांग्रेस विधायक दल के नेता भी हैं। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को अस्वीकार करते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें दोनों पदों पर काम करने का मौका दिया। टिकट वितरण में भी उनकी ही चली।

दिग्विजय के कुछ समर्थकों को छोड़ दें तो अधिकतर सीटों पर वही उम्मीदवार बना, जिसे कमल नाथ चाहते थे। प्रचार अभियान की पूरी कमान भी उनके ही हाथ में थी। आरोप है कि कई सीटों पर अपनी पसंद के लोगों को टिकट देने के नाम पर दिग्विजय एवं कमल नाथ की जोड़ी ने ऐसे नेताओं की अनदेखी कर दी जो मजबूत माने जा रहे थे।

कांग्रेस के अनेक नेता यही सवाल उठा रहे हैं कि जब दोनों महत्वपूर्ण पदों पर कमल नाथ ही विराजमान हैं तो फिर हार के कारणों की समीक्षा करने में इतना विलंब क्यों हो रहा है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, एआइसीसी सदस्य हरपाल ठाकुर ने तो ट्वीट कर प्रदेश नेतृव को कटघरे में खड़ा किया। परोक्ष रूप से दिग्विजय सिंह के भाई विधायक लक्ष्मण सिंह ने भी प्रदेश नेतृत्व पर निशाना साधा है। विधायक दल में भी कई असंतुष्ट विधायक नए नेता के चुनाव के पक्ष में हैं। निकट भविष्य में कांग्रेस के अंदर इस मुद्दे पर घमासान तेज हो सकता है।

(स्थानीय संपादक, नवदुनिया भोपाल)  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.