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13 साल बाद जब आदिवासी लौटे अपने गांव, बोले- मां आ गए तेरी गोद में, जानिए- क्या है पूरी कहानी

सलवा जुडूम के दौर में सुकमा जिले के कई गांवों से हजारों की संख्या में ग्रामीण पलायन कर चुके थे। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई इलाकों में ये ग्रामीण अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Fri, 26 Apr 2019 05:04 PM (IST)Updated: Fri, 26 Apr 2019 05:04 PM (IST)
13 साल बाद जब आदिवासी लौटे अपने गांव, बोले- मां आ गए तेरी गोद में, जानिए- क्या है पूरी कहानी
13 साल बाद जब आदिवासी लौटे अपने गांव, बोले- मां आ गए तेरी गोद में, जानिए- क्या है पूरी कहानी

सुकमा(जेएनएन)। अपना गांव, खेत-खलिहान और अपने लोगों को छोड़ने का दर्द क्या होता है, उन ग्रामीणों से पूछिए, जिनके घर सलवा जुडूम के दौरान 13 साल पहले जला दिए गए थे। इससे व्यथित होकर करीब 25 परिवार पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश की ओर चले गए थे। वहीं रहकर जीवन-यापन कर रहे थे। लेकिन उनके मन में हमेशा यह कसक रहती कि वे अपने घर से दूर की धरती पर बैठे हैं। 

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अपने गांव की याद उन्हें हर पल सताती रहती थीं। गांव वापस लौटने की ललक दिनों-दिन बढ़ती गई। आखिरकार वह पल आ ही गया। गुरुवार को मिनीबस पर सवार होकर ये परिवार जिले के मरईगुड़ा गांव लौटे। गांव की धरती पर कदम रखते ही वहां की मिट्टी को माथे से लगाया और बुदबुदाया, मां... आ गए तेरी गोद में।

दोपहर करीब तीन बजे मिनीबस मरईगुड़ा पहुंची। एर्राबोर से दो-तीन किमी तक सड़क अच्छी है, लेकिन आगे बुरी तरह जर्जर। इसके बावजूद मिनीबस वाले ने उन्हें गांव तक छोड़ा, जो कि एनएच 30 से सात किमी अंदर पड़ता है। गांव पहुंचे तो सभी ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना न था। सभी काफी उत्साहित थे। उनके जले हुए घरों के अवशेष आज भी नजर आ रहे थे। जिन लोगों ने गांव नहीं छोड़ा था, उन्होंने इन सब का स्वागत किया। वे इसे लेकर काफी प्रसन्न थे कि उनके लोग फिर अपनी धरती पर लौट आए हैं।

बुरे दिनों को भूलकर नई जिंदगी शुरू करने आए हैं। ऐसे में वे उनकी पूरी मदद करेंगे। ग्रामीण अपने साथ खाने-पीने की सामग्री के साथ ही रसोई की पूरी सामग्री लेकर पहुंचे थे, ताकि किसी प्रकार की परेशानी न हो। इस टीम शामिल बच्चे पहली बार अपना गांव देख रहे थे। इसे लेकर उनमें काफी उत्साह व जिज्ञासा भी थी। इनके साथ शांति पैदल यात्रा के प्रमुख शुभांशु चौधरी व संगठन के सदस्य भी थे।

और भी ग्रामीण आना चाहते हैं अपने गांव

सलवा जुडूम के दौर में सुकमा जिले के कई गांवों से हजारों की संख्या में ग्रामीण पलायन कर चुके थे। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई इलाकों में ये ग्रामीण अपना जीवन यापन कर रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि और भी कई ग्रामीण वापस अपने गांव आने की इच्छा जता रहे हैं लेकिन हिम्मत नहीं दिखा रहे हैं धीरे-धीरे  माहौल ठीक होने के बाद अब ग्रामीण वापस अपने गांव लौटना शुरू हुए हैं।

सरकार से मांगी मदद

गांव से ठीक पहले बस से सभी ग्रामीण नीचे उतरे और स्थानीय देवी-देवताओं से हाथ जोड़ प्रार्थना भी की। ग्रामीणों ने कहा कि कितने साल हो गए हैं हम लोग वापस अपने गांव लौटे हैं, आगे भी भगवान हमारी मदद करे और शांतिपूर्ण जीवन यापन करे। सरकार से ग्रामीणों ने मदद की मांग की है कि उन्हें राशन कार्ड और शासन की योजनाओं का लाभ मिले ताकि जीवनयापन कर सकें।

खेती-बाड़ी कर शांति से गुजारेंगे जीवन

ग्रामीण माड़वी गंगा ने कहा कि सलवा जुडूम के समय परिवार के साथ पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के कानापुरम गांव में पनाह ले ली थी। यह गांव भद्राचलम से 20 किमी और लक्ष्मीपुरम से तीन किमी दूर स्थित है। यहां हमें घर बनाने के लिए जगह तो मिल गई लेकिन शासन की योजनाओं का लाभ अभी तक नहीं मिला। 13 साल से अधिक समय वहां रहते हो गया लेकिन वहां हमें खेती के लिए जमीन नहीं मिली। वापस गांव की याद आई तो यहां आए हैं, हमारी यहां खेती है जिससे हम अपना जीवन यापन करेंगे।

आंखों के सामने घर जलकर हुए थे खाक

ग्रामीण कारम एंका ने बताया कि 2006 में सल्वा जुडूम और नक्सलियों की ओर से हिंसा चरम पर थी। उसी साल दोपहर के समय करीब 70 अज्ञात लोग अचानक गांव आ धमके। चारों और से घेर दिया था। उन लोगों ने हमारे घरों में आग लगा दी। जैसे-तैसे हम लोग अपनी जान बचाकर जंगल की और भाग गए। आंखों के सामने हमारे घर जलकर खाक हो गए। हम लोग आंध्र प्रदेश के कनापुरम गांव में पनाह ली। वहां भी हमें सिर्फ घर बनाने की जमीन मिली। हम मजदूरी कर जीवन यापन कर रहे थे।

आने वाली पीढ़ी सुख-शांति से रह सके

शांति पदयात्रा के प्रमुख शुभांशु चौधरी ने कहा कि इन ग्रामीणों ने बहुत हिम्मत की है। जब हम लोग यहां से पदयात्रा में गुजर रहे थे तब इनसे हमारा पहला संपर्कहुआ था। हमारे से जुड़ने के बाद ग्रामीणों ने मदद मांगी थी। हम सभी पक्षों से अनुरोध करते हैं कि अब बहुत हो गया, 15 सालों से दर-दर भटक रहे हैं। हमारे में विरोध हो सकता है लेकिन जिनके लिए यह लड़ाई है उनको तकलीफ न हो।

छोटे बच्चों ने पहली बार देखा गांव

मिनी बस में महिलाओं और पुरुषों के अलावा कुछ बच्चे भी शामिल थे। इन बच्चों की उम्र 8 से 14 साल तक थी, जो आंध्र प्रदेश में ही पैदा हुए हैं और पहली बार अपने पैतृक गांव आए हैं। तो कुछ ऐसे युवा भी थे जिनकी बचपन की यादें इस गांव से जुड़ी हुई थीं। इन्होंने चर्चा में बताया कि पहली बार गांव जाने के लिए काफी उत्साहित हैं। साथ ही युवाओं का कहना था कि पहले और अब में काफी फर्क आ गया है।


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