चुनाव नतीजों से बैकफुट पर आजम
समाजवादी पार्टी (सपा) के मुस्लिम चेहरे व प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खां अब बदल गए हैं। बदल नहीं गए हैं, बल्कि यह कहें कि चुनाव परिणाम ने उन्हें बदलने को मजबूर कर दिया है। या फिर पार्टी ने उनकी साख पूछ ली है। कारण जो भी हो, खुद के दर पर प्रदेश की सत्ता और सत्ता के मुखिया तक को झ
[ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी], मुरादाबाद। समाजवादी पार्टी (सपा) के मुस्लिम चेहरे व प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खां अब बदल गए हैं। बदल नहीं गए हैं, बल्कि यह कहें कि चुनाव परिणाम ने उन्हें बदलने को मजबूर कर दिया है। या फिर पार्टी ने उनकी साख पूछ ली है। कारण जो भी हो, खुद के दर पर प्रदेश की सत्ता और सत्ता के मुखिया तक को झुकाने वाले आजम पहली बार झुके-झुके से नजर आ रहे हैं। उनके दर पर भी जा रहे हैं, जिन्हें कभी अपने दर पर घंटों खड़े रहने को मजबूर करते थे। साथ ही, अपने कड़े मिजाज के बजाय अब सब्र रखने की सलाह भी दे रहे हैं।
रविवार को आजम खां का यह रूप अचानक दिखा। सुबह वह जब अपने घर पर पत्रकारों से बात करने बैठे तो भारी पराजय के बावजूद मुस्लिम मतों को इस चुनाव में बार-बार सेक्युलर बने रहने का प्रमाण देते रहे। तब भी रिझाते रहे, जबकि 49 फीसद मुस्लिम मतों वाली अपनी गृह सीट पर भी वे सपा को जीत नहीं दिला सके। इसके बाद आजम पहली बार अपने गृह जनपद व मुरादाबाद मंडल के दौरे पर निकले। उस प्रत्याशी के घर भी गए, जिनको उन्होंने चुनाव से पूर्व अपने घर पर घंटों खड़ा कराए रखा, बल्कि मिलने से भी इन्कार कर दिया। चुनाव के दौरान व चुनाव पूर्व आजम खां का अपना एक कायदा था। अपने जिले में भी शहर से देहात तक जाने की जरूरत नहीं समझते थे। शहर विधानसभा क्षेत्र उनका है, इसलिए इस क्षेत्र में जहां वह भरपूर सुविधा व हर घंटे बिजली दिलाते हैं, वहीं उनके ही जिले के गांव बिजली, पानी व सड़कों के लिए तरसते हैं। अब तक वह जिससे चाहते उससे मिलते थे तो जिसको चाहते थे, अपने दर पर आने को मजबूर करते थे।
लोग मजबूर भी क्यों नहीं होते, जब प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव खुद उन्हें तीन-तीन बार अपने उड़नखटोले से घर तक छोड़ने गए हों। बहरहाल, आजम ने अपने व्यवहार के विपरीत रविवार को रामपुर से बिजनौर तक का चक्कर लगाया। वह नगीना, अमरोहा, सम्भल व मुरादाबाद के पराजित हो चुके प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं से मिले। निराश होने के बजाय मुस्लिम मतों के न मिलने के कारणों पर ढंग से विचार करने को बोले। भितरघात पर भी उनके तेवर तल्ख नहीं दिखाई दिए, बल्कि गोपनीय रिपोर्ट बनाने की सलाह देने तक ही सीमित रहे।
कारण साफ है, पहली बार आजम को सपा ने इस चुनाव में खुली छूट दे दी थी। रामगोपाल यादव के विरोध के बावजूद जहां उनके अपनों को पार्टी ने टिकट दिया था, वहीं बार-बार उनको अपने हेलीकाप्टर से घर तक छोड़कर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उनकी ताकत को दिखाने का प्रयास किया। यह सब इसलिए भी था कि आजम के गृह मंडल मुरादाबाद में ही प्रदेश की वह टाप फाइव सीटें बिजनौर, नगीना, रामपुर, सम्भल व मुरादाबाद हैं, जहां पर चालीस फीसद से ज्यादा मुस्लिम हैं।
ऐसे में इन सीटों पर सपा को आजम से काफी उम्मीद थी। इस उम्मीद के बावजूद आजम अन्य सीटों पर तो दूर अपनी रामपुर सीट भी सपा की झोली में नहीं डाल सके। नतीजतन अब उनकी मुस्लिम सियासत पर नए सिरे से सवाल उठ रहा है तो उनकों भी जमीन हकीकत पता चल गई है, जिसको संभालने के लिए पहली बार आजम उन दरवाजों की घंटी बजाते मिले, जिनके मालिक उनकी घंटी बजाते-बजाते थक चुके थे।