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50 साल का हुआ ऐ मेरे वतन के लोगो..

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। देशभक्ति के हर अवसर पर गाया जाने वाला यह गीत युद्ध के नायकों और शहीदों के लिए श्रद्धांजलि है। इस गीत को सुनकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी रो पड़े थे। 1

By Edited By: Published: Sat, 26 Jan 2013 05:34 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jan 2013 06:18 PM (IST)
50 साल का हुआ ऐ मेरे वतन के लोगो..

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। देशभक्ति के हर अवसर पर गाया जाने वाला यह गीत युद्ध के नायकों और शहीदों के लिए श्रद्धांजलि है। इस गीत को सुनकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी रो पड़े थे। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान इस गीत ने देशभक्ति के मनोबल को बढ़ाया। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत ने इस साल 50 साल पूरे कर लिये हैं।

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प्रख्यात कवि प्रदीप द्वारा लिखे गए इस गीत ने कई मौकों पर भारतीयों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 27 जनवरी, 1963 को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में जब लता ने इस गाने को गाया था तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गई थीं। इस मौके पर पंडित नेहरू के अलावा तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन, कैबिनेट के मंत्री, अभिनेता दिलीप कुमार, दिवंगत देवानंद, राजकपूर, राजेंद्र कुमार, गायक मुहम्मद रफी, हेमंत कुमार समेत कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। प्रदीप की बेटी मितुल ने बताया कि दुर्भाग्य से हमारे पिता को इस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया। जब नेहरू तीन महीने बाद 21 मार्च, 1963 को मुंबई आए तो मेरे पिता ने एक स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में विशेष रूप से उनके लिए यह गाना गाया। यही नहीं उन्होंने अपने हाथों से लिखी वास्तविक कविता की प्रति भेंट की।

ऐसे लिखा गाना : हर भारतीय की तरह प्रदीप भी 1962 के युद्ध की हार से निराश थे। एक दिन मुंबई के माहिम बीच पर सैर के लिए निकले। तभी गाने की पंक्तियां उनके दिमाग में आई। उन्होंने अपने साथ सैर पर आए साथी से पेन मांगा और सिगरेट की डिब्बी से पन्नी निकालकर उस पर गाने का पहला पैरा लिखा, 'ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी..' कुछ हफ्तों बाद निर्माता महबूब खान ने उनसे नेशनल स्टेडियम में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम के लिए एक उद्घाटन गीत लिखने को कहा। प्रदीप ने स्वीकार कर लिया, लेकिन कोई जानकारी देने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उन्होंने लता और संगीत निर्देशक सी रामचंद्र के साथ गीत को तैयार किया। उसके बाद जो हुआ, वह आज तक इतिहास है। प्रदीप को उनकी शानदार लेखनी की वजह से कई पुरस्कार मिले। 1997 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। एक साल बाद 11 दिसंबर, 1998 को उनका निधन हो गया।

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