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हवा में उड़ रही हमारी प्राणवायु, ऑक्सीजन की कमी से मध्य प्रदेश सरकार की फूल रही सांस

पर्याप्त निगरानी नहीं होने और पाइपलाइन लीकेज के कारण सामान्य मरीजों को एक दिन में दो और वेंटिलेटर लगे मरीजों पर तीन सिलेंडर प्रतिदिन लग रहे हैं। यदि निगरानी रखकर प्रेशर मेंटेन किया जाए तो ऑक्सीजन की बर्बादी को रोका जा सकता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2020 08:26 PM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2020 08:26 PM (IST)
हवा में उड़ रही हमारी प्राणवायु, ऑक्सीजन की कमी से मध्य प्रदेश सरकार की फूल रही सांस
ऑक्सीजन का बड़ा सिलेंडर 7000 लीटर का होता है।

दीपक विश्वकर्मा, भोपाल। कोरोना पीड़ितों की जान बचाने के लिए ऑक्सीजन बहुत उपयोगी है। प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए हमें दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके बावजूद किसी जगह पाइपलाइन लीक है तो कहीं निगरानी ठीक से नहीं होने से ऑक्सीजन की बर्बादी हो रही है। अस्पतालों में कोरोना के डर के चलते एक बार ऑक्सीजन का प्रेशर सेट करने के बाद डॉक्टर-नर्स इसकी निगरानी तक नहीं करते। ऐसे में प्रतिदिन मरीजों पर तीन गुना अधिक ऑक्सीजन खर्च हो रही है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक सांस लेने में तकलीफ वाले एक कोरोना के सामान्य मरीज को प्रति मिनट 7.4 लीटर ऑक्सीजन लगती है। आइसूयी में भर्ती मरीज को 11.9 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन देनी होती है। इस हिसाब से सामान्य मरीज को एक दिन में 10656 लीटर और आइसीयू के मरीज को 17136 लीटर ऑक्सीजन लगेगी। ऑक्सीजन का बड़ा सिलेंडर 7000 लीटर का होता है। इस हिसाब से सामान्य मरीज को दिन में करीब डेढ़ सिलिंडर ऑक्सीजन व आइसीयू में भर्ती मरीज को करीब ढाई सिलेंडर ऑक्सीजन की आवश्यकता रहती है। हालांकि, अस्पतालों में स्थिति इसके उलट है। पर्याप्त निगरानी नहीं होने और पाइपलाइन लीकेज के कारण सामान्य मरीजों को एक दिन में दो और वेंटिलेटर लगे मरीजों पर तीन सिलेंडर प्रतिदिन लग रहे हैं। यदि निगरानी रखकर प्रेशर मेंटेन किया जाए तो ऑक्सीजन की बर्बादी को रोका जा सकता है।

इन मापदंडों का नहीं हो रहा पालन

शुद्धता की जांच : ऑक्सीजन की जांच शुद्धता की जांच नहीं की जाती है। विस्फोटक अधिनियम के तहत प्लांट लगाने या ऑक्सीजन सिलेंडर स्टोर करने की अनुमति दी जाती है। इस नियम के अनुसार मरीज को ऑक्सीजन लगाने से पहले शुद्धता की जांच जरूरी है। ऑक्सीजन की शुद्धता 99.5 से 99.9 प्रतिशत होना चाहिए। वहीं सिलेंडर में भरी ऑक्सीजन का दबाव 140 किग्रा प्रति सेकंड होना चाहिए।

इंजीनियर नहीं : ऑक्सीजन इंवेट्री मैनेजमेंट सिस्टम नहीं है। इस वजह से यह अनुमान नहीं लग पा रहा है कि कोविड वार्डो में प्रति मरीज कितनी ऑक्सीजन लग रही है। निगरानी व गुणवत्ता देखने के लिए जिला अस्पतालों के साथ ही कुछ मेडिकल कालेजों तक में बायोमेडिकल इंजीनियर नहीं है।

मात्रा की जांच नहीं : ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति के समय किसी भी अस्पताल में प्रेशर नहीं नापा जा रहा है। इससे यह कहना भी कठिन है कि तय मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति कंपनी कर रही है।

एनेस्थीसिया विशेषज्ञ नहीं : वेंटिलेटर का उपयोग एनेस्थीसिया विशेषज्ञ की निगरानी में होना चाहिए। अधिकांश जिला अस्पतालों में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ नहीं हैं। वार्डब्वाय व नर्स ऑक्सीजन की रफ्तार सेट कर रहे हैं। तरल से गैस बनने वाली ऑक्सीजन होती है शुद्ध विशेषज्ञों के अनुसार मेडिकल फील्ड में दो प्रकार की ऑक्सीजन का उपयोग होता है। एक केमिकल से तरल मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) बनती है। इसकी शुद्धता सौ फीसद होती है। दूसरी एएसयू (एयर सेपरेशन यूनिट) में वातावरण से ऑक्सीजन खींचकर पीएसए (प्रेशर स्विंग एडसॉर्पशन) तकनीक से तैयार की जाती है। इसकी शुद्धता पर्यावरण में हवा की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। हवा की गुणवत्ताा खराब हुई तो 87 फीसद शुद्ध ऑक्सीजन तैयार हो पाती है।

ऑक्सीजन बर्बादी के दो मामले

केस-1: भोपाल के जेपी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी की शिकायत के बाद स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. संजय गोयल 19 सितंबर को अस्पताल पहुंचे थे। उन्होंने पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों और बायोमेडिकल इंजीनियरों को जांच कर रिपोर्ट देने को कहा। जांच में सामने आया कि मेनफोल्ड (जहां से गैस सिलिंडर से पाइप में ऑक्सीजन जाती है) के ऊपर लगी नान रिटर्न बाल से ऑक्सीजन लीक हो रही थी। कई पाइंट में ऐसा था। दूसरा मरीजों को एक रफ्तार से ऑक्सीजन की दी जा रही थी। इस कारण 18 घंटे चलने वाला सिलेंडर 12 घंटे में खत्म हो रहा था। बाद में स्टाफ को ट्रेनिंग देकर बताया कि जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन कम-ज्यादा देना है।

केस-2:  9 सितंबर को शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी हो गई। भोपाल से स्वास्थ्य विभाग के अफसरों व इंजीनियों की टीम जांच के लिए पहुंची थी। पड़ताल में सामने आया कि कुछ मरीज जिन्हें 11.9 लीटर प्रति मिनट की रफ्तार से ऑक्सीजन देने की जरूरत थी उन्हें 40 लीटर प्रति मिनट दी जा रही थी।

स्वास्थ्य आयुक्त डॉ संजय गोयल ने बताया कि मरीज का ऑक्सीजन का स्तर 95 फीसद से ऊपर होने के बाद भी इतनी रफ्तार से ऑक्सीजन दी जा रही थी। मेडिकल ऑक्सीजन में लीकेज की समस्या कहीं नहीं है। सभी अस्पतालों में स्टाफ को ट्रेनिंग भी करा दी है, जिससे किसी तरह से ऑक्सीजन बर्बाद नहीं हो।


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