तापी पाइपलाइन पर सक्रियता बढ़ी, भारत की चिंता बरकरार, जयशंकर के साथ वार्ता में ताजिकिस्तान के विदेश मंत्री मेरेदेव ने उठाया मुद्दा
हाल के हफ्तों में तापी को लेकर पहले ताजिकिस्तान और तालिबान सरकार के उप प्रधानमंत्रियों के बीच हुई मुलाकात में बात हुई थी। इसके अलावा पाकिस्तान की तरफ से भी यह संकेत आया है कि वह तालिबान व ताजिकिस्तान के साथ इस परियोजना पर बात नए सिरे से शुरु करेगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। तापी यानी तुर्केमिनिस्तान से अफगानिस्तान-पाकिस्तान होते हुए भारत तक गैस पाइपलाइन बिछाने की योजना को लेकर एक नई सुगुबुगाहट इस परियोजना में शामिल तीन देशों में शुरू हो गई है। भारत के अलावा इस परियोजना के अन्य तीनों देशों की तरफ से अलग अलग तरीके से परियोजना को आगे बढ़ाने की बात पिछले दस दिनों में की गई है। इस क्रम में सबसे ताजी पहल सोमवार को तुर्केमिनिस्तान के विदेश मंत्री राशिद मेरेदेव ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ टेलीफोन वार्ता के दौरान की।
उन्होंने तापी गैस परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए भारत की मदद मांगी। उम्मीद है कि 27 जनवरी, 2021 को भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मध्य एशियाई देशों के प्रमुखों की पहली बैठक में भी तापी परियोजना को तुर्केमिनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दीमुहमदेव उठाएंगे। जहां तक तापी को लेकर भारत के रुख का सवाल है तो विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि जो चिंताएं पहले थी वह आज भी हैं। इस पाइपलाइन का एक बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान और पाकिस्तान से हो कर गुजरना है और इन दोनो देशों में सुरक्षा एक बड़ी समस्या है। असलियत में अफगानिस्तान में जो हालात हाल के महीनों में बने हैं उससे इस परियोजना की राह और मुश्किल हुई है।
तालिबान व ताजिकिस्तान के साथ इस परियोजना पर बात नए सिरे से शुरु करेगा पाकिस्तान
हाल के हफ्तों में तापी को लेकर पहले ताजिकिस्तान और तालिबान सरकार के उप प्रधानमंत्रियों के बीच हुई मुलाकात में बात हुई थी। इसके अलावा पाकिस्तान की तरफ से भी यह संकेत आया है कि वह तालिबान व ताजिकिस्तान के साथ इस परियोजना पर बात नए सिरे से शुरु करेगा। इन तीनों देशों के नेताओं के बीच वर्ष 2018 तक इस परियोजना को लेकर शीर्षस्तरीय वार्ता होती रही है।
परियोजना को पहले पाकिस्तान तक लगाये जाने को लेकर भी बात हुई है। इसके तहत बाद में भारत को शामिल करने के योजना पर विचार किया गया था। लेकिन योजना की लागत को देखते हुए भारत जैसे बड़े खरीददार देश को शामिल किये बिना इस परियोजना आर्थिक रूप से संभव नहीं है।