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जीना इसी का नाम है: एसिड अटैक पीड़िताएं, जिन्होंने झेला भीषण त्रासदी का दर्द

जमाना लाख निगाहें फेर ले हमसे... हम उसके लिए नहीं खुद के लिए जीते हैं... तू मुंह चुरा ले ऐ जिंदगी हमसे...मेरे हौसलों के आगे तो तुझे झुकना ही है...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 10:13 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 02:10 PM (IST)
जीना इसी का नाम है: एसिड अटैक पीड़िताएं, जिन्होंने झेला भीषण त्रासदी का दर्द
जीना इसी का नाम है: एसिड अटैक पीड़िताएं, जिन्होंने झेला भीषण त्रासदी का दर्द

नई दिल्ली, मनु त्यागी। ल्क्ष्मी अग्रवाल, ऋतु, रूपा, बाला, शबनम मधु... हर पीड़िता अपने पीछे दिल दहला देने वाली एक हकीकत लिए आगे बढ़ रही है। समाज से इनका संघर्ष समाप्त नहीं हुआ है बल्कि हर पल-हर दिन-हर जगह यह संघर्ष आज भी जारी है। ये आज भी उस समाज से लड़ रही हैं, जिसने इनके दुख के समय साथ नहीं दिया। आज भी इन्हें समाज से अपने हिस्से की हमदर्दी की आस है। एसिड अटैक जैसी भीषण त्रासदी झेल चुकीं इन पीड़िताओं का इनके परिवार के अलावा किसी ने साथ नहीं दिया। न किसी ने उफ किया, न विरोध कि ऐसा फिर किसी और के साथ न हो। एक के बाद एक घटनाएं होती रही हैं, हो रही हैं।

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पीड़ा को बढ़ा देता है परिवार पर पड़ा आर्थिक बोझ : ऋतु कहती हैं, आस पड़ोस हो या शहर, सभी ने अपनी नजरों और बातों से हमारी पीड़ा को और बढ़ाया। आज आपको भले ही मेरे चेहरे पर मुस्कान दिख रही है, लेकिन आपको पता है कि चेहरे को बचाए रखने के लिए एक सर्वाइवर को कितनी सर्जरी झेलनी पड़ती हैं। ऑपरेशन होगा, यह सुनते ही परिवार पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ दुख को और बढ़ा देता है। सोचिए, जब 10-15 सर्जरी होनी हों तो क्या हाल होगा। आप अंदाज लगा सकते हैं कि परिवारों ने क्या-क्या झेला होगा। अब हम सब मिलकर इस प्रयास में जुटी हैं कि आगे औरों को आर्थिक, सामाजिक व मानसिक कष्ट न सहना पड़े।

आरक्षण ही नहीं, प्रशिक्षण भी जरूरी... : सर्वाइवर बाला कहती हैं कि हमे दिव्यांग की श्रेणी में रखकर सरकारी नौकरी और शिक्षा में आरक्षण तो दे दिया, लेकिन क्या कभी किसी सरकार ने हम पीड़िताओं से पूछा है कि कितनी पढ़ी-लिखी हैं? आप को जानकर हैरानी होगी कि अधिकतम पीड़िताएं बहुत कम पढ़ी-लिखी होती हैं। चाहे आप किसी भी शहर में देख लीजिए। मैं, बिजनौर, उप्र से हूं, पांचवी पास हूं। बगैर आगे की पढ़ाई किए यहां शीरोज रेस्त्रां में कंप्यूटर पर भी काम कर लेती हूं। जरूरत आरक्षण की नहीं बल्कि एक उचित दिशा में प्रशिक्षण की है। किसी भी रोजगार के काबिल बनाने के लिए प्रशिक्षण देना ज्यादा उचित रहता है।

एक सर्वाइवर जिसने 12-13 सर्जरी झेली हों, वो स्वस्थ नहीं रह पाती। पहले पढ़ाई करो फिर नौकरी तलाशो, तब जाकर आरक्षण मिलेगा। यह कष्टप्रद है। उप्र सरकार ने हमें दिव्यांग कार्ड की भी सुविधा दी है। अटैक के बाद से मुझे एक आंख से दिखाई नहीं देता है, लेकिन जब कार्ड बनवाने गई तो कहा गया कि दोनों आंखों से दिव्यांग होने पर ही कार्ड बनना संभव है। हालांकि औरों को इसका लाभ मिला। अलीगढ़ की एक सवाईवर है, उसका कार्ड तुरंत बन गया। लेकिन सभी सवाईवर्स को समान रूप से सहयोग की जरूरत है।

लोगों के दिमाग में भरे एसिड को दूर करना है...: ऋतु कहती हैं, मेरा चेहरा देख रही हैं 15 सर्जरी के बाद ऐसा दिखता है। मैं ऐसा ही चेहरा लेकर कुछ दिन पहले एक दुकान से एसिड लेने गई, दुकान वाले ने मेरे से एक सवाल तक नहीं किया और बोतल पकड़ा दी। अब इसे क्या कहेंगे? हालांकि दुकान पर बिक्री से ज्यादा जरूरी लोगों के दिमाग में भरे एसिड को दूर करना है, दुकानों पर तो खुद बिकना बंद हो जाएगा। सरकार के स्तर पर सिर्फ सरकारी अस्पतालों में इलाज मिलता है। उप्र की स्थिति बताती हूं हमसे जुड़ी कई सर्वाइवर हैं, जिन्हें कार्ड के माध्यम से इलाज तो मिलता है, लेकिन वहां तकनीकी कमी कहें या डॉक्टर्स का कम अनुभव, सर्वाइवर को कष्ट झेलना पड़ता है। वहीं मुझे देखिए मैं रोहतक, हरियाणा से हूं, यहां राज्य सरकार ने ऐसे मामलों में देश-विदेश में कहीं भी इलाज की सुविधा दी हुई है, तो मैं दिल्ली के अपोलो अस्पताल में इलाज करा रही हूं। जहां सर्जरी महंगी तो है, लेकिन बहुत किफायत बगैर शारीरिक मानसिक कष्ट के इलाज होता है।

लचर है व्यवस्था, नहीं मिलता पूरा न्याय...: ऋतु ने कहा, जरूरत इस बात की है ऐसे मामलों को सरकार, समाज और न्यायालय बेहद संवेदनशील होकर देखें- बरतें। सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बेहतर हों ताकि बिना आर्थिक बोझ डाले समुचित उपचार मिल सके। पूरा न्याय मिले, अपराधी छूटने न पाएं। समाज की संवेदना और स्वीकार्यता मिले। क्योंकि जिस वक्त एक लड़की पर अटैक होता है तो शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक हर तरह से उसकी हालत दयनीय होती है। जरूरत सुलभ माहौल की है। हम खुद तो लड़ ही रहे हैं, लेकिन समाज के इस शोषण के खिलाफ जरूरत है सरकारी, स्वास्थ्य और कानूनी सहयोग की। एक बेहद अहम बात और कहूंगी, मैंने कानूनी लड़ाई लड़ी, आरोपित को पांच साल की सजा हुई, लेकिन कुछ साल बीते हाईकोर्ट के जरिए वो छूट गया। मेरे पास नोटिस तक नहीं पहुंचा। अब यदि मुझे आगे लड़ाई लड़ना है तो सुप्रीम कोर्ट जाऊं। तो बताइए क्या इतना लड़ने के बाद मुझमें हिम्मत होगी कि अब मैं एक बार फिर न्याय की लंबी प्रक्रिया से जूझ सकूं? मैंने सैंकड़ों एसिड पीड़िता देखीं, लेकिन लक्ष्मी वाले मामले को छोड़ दें तो कभी किसी को मिसाल वाला न्याय नहीं मिल सका। आरोपित कुछ दिन बाद ही जेल के बाहर होते हैं।

कानून ही पर्याप्त नहीं, पालन भी हो...: एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल, जिन्होंने इस विषय में एक जनहित याचिका दाखिल की थी, उस के बाद एक ऐसा कानून बन सका कि अस्पताल में सर्वाइवर्स के इलाज के लिए कुछ सहूलियत होने लगी। लक्ष्मी कहती हैं कि आज कुछ चीजें बदली तो हैं, लेकिन फिर भी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि अब भी बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में महिलाएं ज्यादा शिकार हो रही हैं। दुकानों पर एसिड की खुली बिक्री पर प्रतिबंध के लिए नियम बना, लेकिन क्या हुआ? आज भी आसानी से सभी जगह मामूली सी कीमत पर एसिड मिल जाता है। लक्ष्मी ने दुख जताते हुए कहा, हाल ही का वाकया बताती हूं फिल्म छपाक आई, उसकी शूटिंग के दौरान टीम के लोगों को दुकानों पर एसिड खरीदने के लिए भेजा गया तो उन्हें बगैर कोई प्रमाण दिखाए एसिड की 24 बोतलें आसानी से मिल गईं। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया गया। इतनी लंबी लड़ाई लड़ने के बाद भी नियमों का यह हाल है तो ऐसे कानून का क्या फायदा?

जिन्होंने दी सर्वाइवर्स को हिम्मत

छांव फाउंडेशन, शीरोज रेस्त्रां लखनऊ व आगरा मीर फाउंडेशन एसिड सर्वाइवर्स एंड वीमेन वेलफेयर फाउंडेशन, कोलकाता।

दस साल की सजा

इसमें भारतीय दंड संहिता की 326ए और 326बी धाराएं जोड़ी गई थीं। इन धाराओं के तहत गैर-जमानती अपराध मानते हुए इसके लिए न्यूनतम सजा 10 साल रखी गई।

30 रुपये में मिल जाती है एसिड की बोतल

छांव फाउंडेशन के संचालक आशीष बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में आरटीआइ दाखिल कर जब एसिड बिक्री को लेकर स्थिति का आकलन किया गया तो अमूमन हर जिले से नकारात्मक जवाब मिला। लखनऊ में तो हाल ही में कोर्ट में इसी मामले पर हमारी याचिका के बाद जिला अधिकारी को फटकार तक लगी थी। मध्य प्रदेश में याचिकाकर्ता और वकील ने सर्वे किया, जहां 50 से ज्यादा दुकानदार बिनी किसी पहचान पत्र और पूछताछ के एसिड देने को तैयार हो गए।

नि:शुल्क मिले इलाज

वर्ष 2013 में लक्ष्मी अग्रवाल की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी घटनाओं को गंभीर अपराध माना था और सरकार, एसिड विक्रेता और एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे।

दिव्यांग की श्रेणी में सर्वाइवर्स

सरकार ने वर्ष 2016 में दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम में संशोधन करते हुए उसमें एसिड अटैक्स सर्वाइवर्स को भी शारीरिक दिव्यांग के तौर पर शामिल करने का प्रावधान किया। इससे शिक्षा और रोजगार में उनको 3 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गई है।


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