Move to Jagran APP

सिस्टम, समाज और इंसानियत को आईना दिखाती भूख से लड़ते तीन बच्चों की कहानी

लखीमपुर खीरी के रेहरिया गांव में लॉकडाउन का दंश झेल रहे बच्चे मजदूरी को गए माता-पिता फंस गए दिल्ली में घर में पड़ गए खाने के लाले।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 12 May 2020 11:28 AM (IST)Updated: Tue, 12 May 2020 11:28 AM (IST)
सिस्टम, समाज और इंसानियत को आईना दिखाती भूख से लड़ते तीन बच्चों की कहानी
सिस्टम, समाज और इंसानियत को आईना दिखाती भूख से लड़ते तीन बच्चों की कहानी

रजनीश सिंह, लखीमपुर। होली के बाद माता-पिता मजदूरी करने दिल्ली चले गए। गांव की झोपड़ी में 13 साल के बेटे अवधेश और दो छोटी बेटियों को छोड़ गए। कह गए थे कि जल्द लौट आएंगे। लेकिन लॉकडाउन में फंसे रह गए। बच्चों के पास जितना राशन छोड़ गए थे, काम चला। बाद में जो हुआ वह समाज, सिस्टम और इंसानियत के तमाम दावों को झूठा करार देता है।

loksabha election banner

लौटते श्रमिकों की यात्रा अंतहीन है। काश कि गांव पर खत्म हो जाती। पर गांव मंजिल है या मृगमरीचिका, कौन जाने। वहां दाना- पानी होता तो शहरों को क्यों जाते। भविष्य का ऊंट किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता। पर 13 साल के अवधेश की कहानी एक बड़ा संकेत भी देती है। खुद्दारी, सूझबूझ, हिम्मत और हौसला बरकरार रहे तो मंजिल जरूर मिलेगी। पुरुषार्थ तमाम दुश्वारियों को पीछे छोड़ अपना अर्थशास्त्र तैयार करेगा।

उप्र के लखीमपुर खीरी जिले के रेहरिया गांव की कहानी, जहां रहता है अवधेश। उसके पिता रामप्रसाद और मां शिवरानी दिल्ली से अब तक नहीं लौट सके हैं। दो छोटी बहनों के साथ गांव में रह गए अवधेश के सामने खाने के लाले पड़ गए। वह तो खुद तो किसी तरह पेट की आग पर काबू रखता रहा पर छोटी बहनों को बिलखता देख उसका कलेजा मुंह को आ गया। गांव में इनका कोई रिश्तेदार भी नहीं था, जो देखरेख करता या जिससे ये मदद मांग लेते। अवधेश ने सूझबूझ से काम लिया। अपने हौसले के बूते अपना और बहनों का जीवन बचा लिया।

अवधेश हर दिन गांव से दूर गोला बाजार से ताजी सब्जियां लाता और एक ठेले पर लाद कर कई गांव में फेरी लगाता। जो कुछ कमाता है, उससे अपना और दो छोटी बहनों का पेट पालता। उसने अपने हिस्से की लड़ाई जीत ली है। मगर हैरानी इस बात की है कि न तो ग्राम पंचायत के सदस्यों को, न ही नेताओं और सरकारी कारिंदों को और ना ही गांव वालों को इन बच्चों की सुध लेने की सूझी। सरकारी इमदाद के तमाम दावे यहां झूठे साबित हो गए।

अवधेश की कहानी क्यों समाज के हर जिम्मेदार पर सवाल खड़ी करने वाली है, इसके लिए करीब तीन हजार की आबादी वाले रेहरिया गांव को जानना होगा। यहां के हालात मिले-जुले हैं। किसान भी हैं और नौकरी पेशा परिवार भी। गरीब भी हैं और अमीर भी। पर किसी का ध्यान अवधेश की ओर अब तक नहीं गया है। गांव के करीब पचास परिवार मजदूरी पर ही निर्भर हैं, जो रोजगार के लिए महानगरों में नौकरी करते हैं। कोई कह सकता है कि बच्चों को खाने के लाले थे तो गांव में किसी से खाना मांग लेते।

अवधेश इसका जवाब एक पल गंवाए बिना दे देता है। कहता है कि उसको मां-बाप ने खुद्दारी सिखाई है। मदद मिली तो ठीक मगर वह किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएगा। खाना मांगता तो मां-बाप के लौटने पर उन्हें क्या मुंह दिखाता। वह भी सभी के सामने लच्जित महसूस करते। रोज सुबह चार बजे उठ जाता हूं। सब्जियां लाकर बेचने में चाहे जितनी मेहनत लगे, अपनी बहनों को मुश्किल नहीं आने दूंगा। अवधेश घर की जिम्मेदारियों के बोझ तले पांचवी के बाद पढ़ भी नहीं सका। बहनें नंदनी पांचवी और मोनी गांव के ही प्राइमरी स्कूल में तीसरी में पढ़ रही हैं।

राशन कार्ड है पर मां नहीं...

परिवार का राशन कार्ड बना है लेकिन मां शिवरानी के नाम है। कहा गया कि वो आएगी तभी राशन मिलेगा।

ऐसी कोई जानकारी मुझे नहीं कि गांव में कोई परिवार बिना राशन के शेष बचा है। इस परिवार ने भी कभी अपने बारे में कुछ नहीं बताया।

-सरनजीत सिंह, प्रधान का पुत्र व प्रतिनिधि

अगर ऐसा है तो बहुत गलत है। मेरे संज्ञान में ऐसा कोई मामला नहीं है। आपके माध्यम से पता चला है, अब इस परिवार की यथा संभव मदद कराई जाएगी।

-स्वाति शुक्ला, एसडीएम मोहम्मदी, लखीमपुर खीरी, उप्र

अगर पिता का आधार कार्ड हो तभी हम राशन दे सकते हैं। या प्रधान हमें लिखकर दे। वैसे, यह लोग हमारे पास राशन लेने नहीं आए है। 

-वलीउल्ला, कोटेदार

अगर परिवार के किसी भी सदस्य का नाम राशन कार्ड में है और वह जाता है तो उसको रानन मिलना चाहिए। हां, अगर राशन कार्ड सिंगल यूनिट है तो नहीं मिल पाएगा।

-अनिल वर्मा, सप्लाई विभाग


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.