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38 साल से स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन का केस लड़ रहे 98 वर्षीय पांजा का मामला फिर लटका

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का दावा कर पिछले 38 साल से पेंशन के लिए मुकदमा लड़ रहे पश्चिम बंगाल के 98 वर्षीय रामपदा पांजा का मामला फिर लटक गया।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 10:52 PM (IST)Updated: Sun, 20 Oct 2019 10:52 PM (IST)
38 साल से स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन का केस लड़ रहे 98 वर्षीय पांजा का मामला फिर लटका
38 साल से स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन का केस लड़ रहे 98 वर्षीय पांजा का मामला फिर लटका

माला दीक्षित, नई दिल्ली। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का दावा कर पिछले 38 साल से पेंशन के लिए मुकदमा लड़ रहे पश्चिम बंगाल के मिदनापुर निवासी 98 वर्षीय रामपदा पांजा का मामला फिर लटक गया है। पांजा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशन देने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस याचिका पर शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर केंद्र और राज्य सरकार से चार हफ्ते में रिपोर्ट तलब की है। मामले पर चार सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी।

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पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार को नोटिस जारी

न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने पश्चिम बंगाल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पेंशन पर केंद्र सरकार की ओर से एएसजी माधवी दीवान और पांजा के वकील आरके गुप्ता की दलीलें सुनने के बाद ये आदेश दिया। कोर्ट ने दोनों सरकारों से हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा है कि स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन 1980 की योजना के तहत पश्चिम बंगाल से कितने आवेदन मिले। उनमें से कितने स्वीकार किए गए। कितने आवेदन पश्चिम बंगाल से भूमिगत या भगोड़े श्रेणी में थे। उनमें से मिदनापुर जिले से भूमिगत या भगोड़ा श्रेणी के आवेदन कितने थे और कितने स्वीकार किए गए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछे पश्चिम बंगाल सरकार से कई सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा है कि पश्चिम बंगाल में निजी जानकारी होने का प्रमाणपत्र जारी करने का कितने लोगों को अधिकार है। इसके अलावा ऐसे कितने लोगों को आरएन गिरि (सरकारी पैनल में शामिल) ने प्रमाणपत्र जारी किए थे। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या रामपदा की याचिका के साथ लगा उनका प्रमाणपत्र वास्तविक दस्तावेज है। क्योंकि कहा गया है कि इस मामले में स्थानीय पुलिस थाने में उनके खिलाफ वारंट जारी होने, भगोड़ा घोषित किए जाने या अभियोजन होने का कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है।

पीठ ने कहा है कि उस प्रमाणपत्र में कोई रिफरेंस नंबर, तारीख या हस्ताक्षर करने वाले का नाम नहीं लिखा है। भूमिगत भगोड़ा आदि की इस श्रेणी में कितने प्रमाणपत्र दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा है कि अथॉरिटी इसके अलावा भी अगर कोई सूचना देना चाहती है तो दे सकती है।

पांजा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के बारे में रिकार्ड मौजूद नहीं

इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से कहा गया है कि पांजा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के बारे में कोई आधिकारिक रिकार्ड मौजूद नहीं है। इसके विपरीत पांजा के वकील आरके गुप्ता ने कहा कि पांजा उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में शामिल थे जिन्होंने 18 महीने के लिए अंग्रेजों को मिदनापुर जिले से भगा दिया था। इस दौरान पुलिस थाना जिला प्रशासन का दफ्तर आदि सब लूट लिया गया था इसलिए उनके बारे में कोई आधिकारिक रिकार्ड मौजूद नहीं है। पांजा के बारे में आरएन गिरि ने प्रमाण पत्र दिया है, लिहाजा उन्हें पेंशन देने का हाईकोर्ट का आदेश सही है। पांजा पेंशन के लिए 1981 से मुकदमा लड़ रहे हैं।


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