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608 साल पुरानी इस परंपरा के साथ शुरू हुआ दुनिया का सबसे बड़ा लोक पर्व

बस्तर का दशहरा दुनिया का सबसे लंबे समय तक चलने वाला लोक पर्व माना जाता है। अपनी अनोखी संस्कृति की वजह से बस्तर वैश्विक स्तर पर हमेशा चर्चा में रहा है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Tue, 09 Oct 2018 10:27 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 10:40 PM (IST)
608 साल पुरानी इस परंपरा के साथ शुरू हुआ दुनिया का सबसे बड़ा लोक पर्व
608 साल पुरानी इस परंपरा के साथ शुरू हुआ दुनिया का सबसे बड़ा लोक पर्व

जगदलपुर। बस्तर का दशहरा दुनिया का सबसे लंबे समय तक चलने वाला लोक पर्व माना जाता है। अपनी अनोखी संस्कृति की वजह से बस्तर वैश्विक स्तर पर हमेशा चर्चा में रहा है। चींटी के अंडे की चटनी, भूल-भुलैया वाले जंगल, सल्फी, आदिवासी, यहां की लाल मिट्टी और नक्सलवाद के साथ ही बस्तर का दशहरा दुनिया के लिए चर्चा का विषय है।

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75 दिनों तक चलने वाले दुनिया का सबसे लंबा लोकपर्व
75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा को दुनिया का सबसे लंबी अवधी तक चलने वाला लोकपर्व माना जाता है। इसकी खासियत के कारण ही यहां देश-विदेश से लोग आते हैं। मंगलवार को इस पर्व की शुरुआत हुई। इस दौरान लाखों की भीड़ वहां जुट गई। पर्व की शुरुआत आराध्य काछन देवी को कांटे के झूले में झुलाने की रश्म के साथ हुई। काछन देवी की अनुमति मिलने के बाद ही यह पर्व मनाने की मान्यता है। यह परंपरा यहां पिछले 608 वर्षों से चली आ रही है।

जब नौ साल की बालिका बनी काछन देवी का प्रतिरूप
बस्तर दशहरा का प्रमुख विधान काछनगादी मंगलवार शाम भंगाराम चौक के पास संपन्न् हुआ। काछनदेवी के रूप में नौ साल की बालिका को कांटे के झूले में झुलाया गया। उसने पहले राजा से युद्ध किया, उसके बाद स्वीकृति सूचक फूल देकर राजा को दशहरा मनाने की अनुमति प्रदान की। इस मौके पर हजारों दर्शक अभूतपूर्व दशहरा रस्म को देखने मंदिर के चारों तरफ जुटे रहे।

छह सदियों से चली आ रही है परंपरा
छह सदी पुरानी इस परंपरा के तहत ही मंगलवार शाम राज परिवार के सदस्य आतिशबाजी के साथ राजमहल से निकले और शाम सात बजे काछनगादी मंदिर पहुंचे। यहां उनका परंपरागत स्वागत किया गया। इस मौके पर राज परिवार के कमलचंद भंजदेव अपने पूरे परिवार के साथ मौजूद थे। समारोह के दौरान चारों तरफ तगड़ी पुलिस व्यवस्था की गई थी।

कांटे का झूला भी खास
बांस से बनाए घेरे के भीतर कांटे के झूले में देवी स्वरूपा मारेगा की अबोध बालिका अनुराधा दास को कांटे के झूले की परिक्रमा कराई गई उसके बाद उसे कांटे के झूले में झुलाया गया। बताया गया कि यह बालिका गत सात दिनों से फलाहार थी और इस नवरात्रि के दौरान पूरे नौ दिनों तक उपवास रखेगी।

निभाई रैला पूजा की रश्म
काछनगादी पूजा के पश्चात बस्तर दशहरा के पदाधिकारी, मांझी, चालकी और मेंबर-मेम्बरीन आदि गोल बाजार पहुंचे और वहां रैला पूजा में शामिल हुए। बताया गया कि बस्तर की एक राजकुमारी ने आत्मग्लानि के चलते जल समाधि कर ली थी। उसी की याद में मिरगान जाति की महिलाएं यहां शोक गीत गाती हैं और राजकुमारी की याद में श्राद्ध मनाती हैं। इस मौके पर पूजा स्थल पर लाई-चना आदि न्योछावर किया गया।


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