डिजिटल इंडिया का सपना कैसे होगा पूरा जब रेल यात्री कर रहे हैं कैश पेमेंट
रेल यात्री वेबसाइट ने 25 शहरों के 50 हजार से भी ज्यादा यात्रियों और 800 से ज्यादा ट्रैवल एजेंटों की स्टडी कराई है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। डिजिटल भुगतान में अतिरिक्त खर्च तथा पड़ोस में मौजूद मददगार टिकटिंग एजेंटों के कारण भारत में पचास फीसद ट्रेन टिकट अभी भी नकदी से खरीदे जाते हैं। रेलयात्री डॉट इन की ओर से कराए गए सर्वे के मुताबिक डिजिटल भुगतान की दिक्कतों और खास जरूरतों के कारण ज्यादातर लोग मुहल्ले के एजेंटों के माध्यम से रेल टिकट खरीदना पसंद करते हैं। यही वजह है कि 65 फीसद लोगों के डिजिटल भुगतान पसंद करने के बावजूद अभी भी 50 फीसद टिकटों की बिक्री नकदी लेकर की जाती है।
सर्वे से पता चलता है कि आनलाइन बुकिंग (2000 रुपये तक के टिकटों) पर लगने वाला पेमेंट गेटवे शुल्क डिजिटल भुगतान को हतोत्साहित कर नकदी भुगतान को बढ़ावा दे रहा है। यह शुल्क आधिकारिक तौर पर 0.7 फीसद है। लेकिन व्यवहार में विभिन्न प्रदाता 1.5-2.0 फीसद तक शुल्क वसूलते हैं। यह अतिरिक्त शुल्क एजेंटो को अपनी जेब से भरना पड़ता है। यही वजह है कि वे क्रेडिट या डेबिट कार्ड के बजाय ग्राहकों को नकद भुगतान के लिए कहते हैं।
सर्वे में पाया गया कि पिछले पांच वर्षो में ट्रेन के किराये 80 फीसद तक बढ़े हैं। इसके मुकाबले ट्रैवल एजेंटों के कमीशन में महज 20-40 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। एजेंटों के नकद राशि को वरीयता देने की यह भी एक वजह है। एजेंटों का कहना है कि रेलवे के पुराने नियमों और भारी जुर्माने के डर से वे नकद भुगतान लेना पसंद करते हैं।
इस पर रेलयात्री डॉट इन के सह-संस्थापक एवं सीईओ मनीष राठी कहते हैं, 'ग्राहकों का एक बड़ा वर्ग खुद के बजाय दूसरों के माध्यम से टिकट बुक कराना पसंद करता है। उनकी जरूरतें भी पेचीदा होती हैं। फिर ट्रेन यात्रा में मांग और आपूर्ति के बीच अंतर के अलावा अनिश्चितता की स्थिति रहती है। ऐसे में ट्रैवल एजेंट मददगार साबित होते हैं। यही उनकी लोकप्रियता राज है।'
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