छात्रा जिंदा होती तो डॉक्टर बनती, माता-पिता को मिले 37 लाख
हाई कोर्ट ने माना कि छात्रा अगर जिंदा होती तो वह भविष्य में वेटनरी डॉक्टर बन जाती और कम से कम 25 हजार रुपये महीना कमाती।
नईदुनिया, इंदौर। मप्र हाई कोर्ट ने दुर्घटना में क्षतिपूर्ति देने के निचली अदालत के फैसले में राशि को नौ गुना कर दिया है। सड़क हादसे में छात्रा की मौत के बाद निचली अदालत ने उसके माता-पिता को क्षतिपूर्ति के लिए चार लाख सात हजार रुपये देने के आदेश दिए थे, जिसे हाई कोर्ट ने नौ गुना कर दिया।
हाई कोर्ट ने माना कि छात्रा अगर जिंदा होती तो वह भविष्य में वेटनरी डॉक्टर बन जाती और कम से कम 25 हजार रुपये महीना कमाती। कोर्ट ने माना कि बेटी के जाने से माता-पिता को जो क्षति पहुंची है उसे पूरा तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन अगर उन्हें बड़ी राशि मिलती है तो कुछ राहत होगी।
यह फैसला जस्टिस रोहित आर्य ने पीड़ित माता-पिता की अपील का निराकरण करते हुए सुनाया है। हाई कोर्ट ने ट्रक मालिक, ड्राइवर और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को आदेश दिया है कि वह पीडि़त परिजन को चार लाख के बजाय 36 लाख 99 हजार रुपये ब्याज के साथ दें। घटना 16 जनवरी 2011 की है। वेटनरी कॉलेज महू में पढ़ने वाली 21 वर्षीय छात्रा रोशिता कानूनगो दोपहिया वाहन से इंदौर आ रही थी।
तभी तेज गति से आ रहे ट्रक ने उसे पीछे से टक्कर मार दी। रोशिता ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उसकी माता-आभा और पिता राजेश कुमार कानूनगो ने क्लेम ट्रिब्यूनल में केस लगाया। यहां पर पीडि़त माता-पिता को क्षतिपूर्ति राशि चार लाख रुपये देने का आदेश हुआ था। इस आदेश को चुनौती देते हुए उन्होंने हाई कोर्ट में 2013 में अपील की।