Move to Jagran APP

देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार, बिहार-महाराष्ट्र और गुजरात में हालात सबसे खराब

आरटीआइ के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने दी जानकारी। भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और उनमें से आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में आते हैं। इनमें महाराष्ट्र बिहार और गुजरात में हालत सबसे ज्यादा खराब है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Mon, 08 Nov 2021 08:03 AM (IST)Updated: Mon, 08 Nov 2021 08:28 AM (IST)
देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार, बिहार-महाराष्ट्र और गुजरात में हालात सबसे खराब
भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित।(फोटो: प्रतीकात्मक)

नई दिल्ली, प्रेट्र। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआइ के जवाब में कहा है कि भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और उनमें से आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में आते हैं। इनमें महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात शीर्ष पर हैं।मंत्रालय ने कहा कि कोरोना महामारी से गरीबों में सबसे गरीब व्यक्ति में स्वास्थ्य और पोषण संकट और बढ़ सकता है। मंत्रालय का अनुमान है कि 14 अक्टूबर, 2021 तक देश में 17.76 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। इसके अलावा 15.46 लाख बच्चे मध्यम तीव्र कुपोषित हैं।

loksabha election banner

प्रेट्र द्वारा आरटीआइ के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से संकलित आंकड़ों के मुताबिक कुल मिलाकर 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। पोषण के नतीजों की निगरानी के लिए पिछले साल बनाए गए पोषण ट्रैकर एप के जरिये कुपोषित बच्चों की संख्या का पता चला है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, आंगनबाड़ी प्रणाली में 8.19 करोड़ बच्चों में से केवल 33 लाख कुपोषित हैं, जो महज 4.04 प्रतिशत हैं।

कुपोषित बच्चों के आंकड़ों का पिछले साल से तुलना करने पर पता चलता है कि गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या में एक साल में 91 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। नवंबर 2020 में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 9.27 लाख थी, जो 14 अक्टूबर, 2021 को बढ़कर 17.76 लाख हो गई। हालांकि, यहां ध्यान देने की बात यह है कि ये दोनों आंकड़े डाटा संग्रह की अलग-अलग प्रणालियों पर आधारित हैं।

शिक्षा ढांचे में जलवायु परिवर्तन पर्याप्त रूप से शामिल नहीं : यूनेस्को

यूनेस्को की 'ग्लोबल एजुकेशन मानिटरिंग' (जीईएम) रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन को अभी तक पर्याप्त रूप से शिक्षण ढांचे में शामिल नहीं किया गया है और केवल 50 प्रतिशत देश अपने राष्ट्रीय स्तर के कानूनों, नीतियों या शिक्षण योजनाओं में इस विषय पर जोर देते हैं।जीईएम टीम ने ग्लासगो में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की पृष्ठभूमि में 'प्रोफाइल्स एनहांसिंग एजुकेशन रिव्यूज' (पीईईआर) जारी किए हैं। इनका उद्देश्य शिक्षा में प्रमुख विषयों पर देशों की नीतियों एवं कानूनों की व्याख्या करना है ताकि राष्ट्रीय शिक्षण रणनीतियों के क्रियान्वयन पर साक्ष्य आधार को सुधारा जा सके।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.