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सीवर में टूट रही है जीवन की डोर, पिछले पांच सालों में 321 सफाइकर्मी गंवा चुके हैं जान

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रलय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की वेबसाइट के मुताबिक 1993 से लेकर 2018 तक कुल 676 सफाईकर्मियों की सीवर में उतरने से मौत हुई है। इसमें सबसे ज्यादा 194 मौतें तमिलनाडु में हुई हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 04:13 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 04:13 PM (IST)
सीवर में टूट रही है जीवन की डोर, पिछले पांच सालों में 321 सफाइकर्मी गंवा चुके हैं जान
करीब 90% सीवर साफ करने वालों की मौत 60 साल की आयु पूरी होने से पहले हो जाती है।

देवेंद्रराज सुथार। हाल में गुजरात में सूरत जिले के चलथाण क्षेत्र स्थित एक रिहायशी इमारत के सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस से दो सफाईकर्मियों की मौत हो गई। बीते दिनों संसद में बताया गया कि बीते पांच वर्षों में 321 सफाई कर्मचारियों ने सीवर साफ करते हुए जान गंवा दी। इस प्रकार हर पांच दिन में एक मजदूर की जान सीवर साफ करने के दौरान चली जाती है। कई बार ऐसा होता है कि एक मजदूर पहले जहरीली गैस की चपेट में आता है, फिर उसे बचाने के चक्कर में दूसरों की भी जान चली जाती है। 2011 की जनगणना में भारत में हाथ से मैला ढोने के 7.94 लाख मामले सामने आए थे। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रलय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की वेबसाइट के मुताबिक 1993 से लेकर 2018 तक कुल 676 सफाईकर्मियों की सीवर में उतरने से मौत हुई है। इसमें सबसे ज्यादा 194 मौतें तमिलनाडु में हुई हैं। वहीं गुजरात में 122, दिल्ली में 33, हरियाणा में 56 और उत्तर प्रदेश में 64 मौतें हुई हैं।

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साल 2021 के शुरुआती छह महीने में ही सीवर की सफाई के दौरान 50 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके थे। आज 21वीं सदी में भी देश में सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आकर सफाईकर्मियों के मौत के मुंह में समाना सही नहीं है।सीवर सफाई करने के लिए जो मजदूर भूमिगत नालों में उतरते हैं उन्हें बहुत कम पैसे दिए जाते हैं। कई बार सीवर सफाई के ठेकेदार अपने कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरण के ही काम करने को मजबूर करते हैं।

हाथ से मैला ढोने की कुप्रथा को खत्म करने वाला पहला कानून 1993 में बना था। 2013 में इसमें संशोधन कर इसे और मजबूत बनाया गया था। अगर किसी खास परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए कई तरह के नियमों का पालन करना होता है। अगर सफाईकर्मी किसी कारण से सीवर में उतरता है तो इसकी सूचना इंजीनियर को होनी चाहिए। पास में ही एक एंबुलेंस की व्यवस्था भी होनी चाहिए, ताकि किसी आपात स्थिति में सफाईकर्मी को अस्पताल ले जाया जा सके।

इसके अलावा दिशा-निर्देश कहते हैं कि सफाईकर्मी की सुरक्षा के लिए आक्सीजन मास्क, रबड़ के जूते-दस्ताने, सेफ्टी बेल्ट, टार्च आदि होने चाहिए, लेकिन हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। देश में सीवर साफ करने वाले 90 फीसद सफाई कर्मचारियों की मौत 60 वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है। गंदगी से जूझते हुए कई बार जानलेवा बीमारियां उन्हें अपना शिकार बना लेती हैं। देशभर में ऐसे पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए जिनसे कि किसी भी सेप्टिक टैंक में किसी को उतरने की आवश्यकता ही न पड़े। जब तक ठेकेदारों और अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होगी तब तक हालात में सुधार की संभावना कम ही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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