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SC के फैसले के 14 साल बाद अधूरा रहा पुलिस सुधार का सपना, SC ने ही जारी किए थे सात निर्देश

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्पष्ट दिशानिर्देशों के 14 साल बाद भी पुलिस सुधारों को लागू नहीं किया जा सका है। सुप्रीम कोर्ट से सात निर्देशों में से एक को भी सभी राज्यों ने अक्षरश लागू नहीं किया जा सका।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 07:07 PM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 07:07 PM (IST)
SC के फैसले के 14 साल बाद अधूरा रहा पुलिस सुधार का सपना, SC ने ही जारी किए थे सात निर्देश
राजधानी दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट का प्रतीकात्मक चित्र।

नई दिल्ली, नीलू रंजन। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में स्पष्ट दिशानिर्देशों के 14 साल बाद भी पुलिस सुधारों को लागू नहीं किया जा सका है। सुप्रीम कोर्ट से सात निर्देशों में से एक को भी सभी राज्यों ने अक्षरश: लागू नहीं किया जा सका।

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अब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आरसी लाहोटी और वरिष्ठ वकील फली नरीमन समेत देश के 31 प्रबुद्ध लोगों ने पुलिस सुधारों को अमली जामा पहचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट से भी अपील की है। इनके अनुसार पुलिस सुधारों के बिना आधुनिक भारत के सपने को साकार नहीं किया जा सकता है।

पुलिस सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने वाले उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह के अनुसार लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 22 सितंबर 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधारों की जरूरत पर मुहर लगाई और राज्य सरकारों व राजनीतिक दलों की आनाकानी को देखते हुए सात स्पष्ट निर्देश जारी किये। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्देशों को लागू करने की निगरानी का जिम्मेदारी भी संभाली। इससे देश में पुलिस सुधार की उम्मीदों को बल मिला। लेकिन 14 सालों में धीरे-धीरे उम्मीदों पर पानी फिरता गया।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया था कि राज्य सरकारों को पुलिस सुधारों को लागू करने के लिए अधिनियम बनाने होंगे और उसके बनने तक उसके निर्देश लागू रहेंगे और उसके पालन की निगरानी भी जारी रहेगी। 29 में से 17 राज्यों ने अपने-अपने अधिनियम बना लिए। लेकिन अधिनियम बनाने का मूल उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करना नहीं, बल्कि उसकी निगरानी से बाहर निकलना रहा।

प्रकाश सिंह के अनुसार राज्यों में अधिनियम बनाकर एक तरह से पुलिस प्रशासन की पुरानी परिपाटी को कानूनी जामा पहनाने का काम किया। जिन 12 राज्य सरकारों ने निर्देशों को लागू करने का शासनादेश निकाला, उनमें भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मूल भावना को ही दरकिनार कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पुलिस को राजनीतिक दखल अंदाजी से दूर रखने के लिए राज्य सुरक्षा आयोग के गठन का निर्देश दिया था। पुलिस सुधारों की लड़ाई लड़ रहे कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनिशिएटिव के राजा बग्गा के अनुसार 26 राज्यों ने राज्य सुरक्षा आयोग का गठन कर लिया है। लेकिन इनमें भी छह राज्यों में आयोग में नेता विपक्ष को जगह नहीं दी गई।

17 राज्यों ने आयोग में स्वतंत्र सदस्यों को रखने की व्यवस्था की, लेकिन स्वतंत्र सदस्यों के चयन के लिए स्वतंत्र चयन समिति ही नहीं बनाया। प्रकाश सिंह के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की निगरानी से बचने के लिए सिर्फ कागजों पर सुधार को दिखाया गया है, जमीनी हकीकत में कोई परिवर्तन नहीं आया है।

प्रकाश सिंह के अनुसार शुरू में तो सुप्रीम कोर्ट ने कड़ाई दिखाई, लेकिन धीरे-धीरे उसकी निगरानी भी कमजोर पड़ती चली गई। यही कारण है कि 31 प्रबुद्ध लोगों अपने अपील में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट से भी पुलिस सुधारों को सुनिश्चित करने की अपील की है।


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