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स्थानीय स्तर पर फुटपाथ की निगरानी, सड़क दुर्घटनाओं के कारण विश्व में प्रतिवर्ष 13.5 लाख लोगों की मृत्यु

विश्व में प्रतिवर्ष 13.5 लाख लोगों की मृत्यु होती है और लगभग पांच करोड़ लोग शारीरिक रूप से अक्षम हो जाते हैं। भारत की बात करें तो सालाना लगभग डेढ़ लाख लोग रोड एक्सीडेंट से मौत का शिकार हो जाते हैं।

By Manish PandeyEdited By: Published: Thu, 23 Dec 2021 11:42 AM (IST)Updated: Thu, 23 Dec 2021 11:42 AM (IST)
स्थानीय स्तर पर फुटपाथ की निगरानी, सड़क दुर्घटनाओं के कारण विश्व में प्रतिवर्ष 13.5 लाख लोगों की मृत्यु
इन दुर्घटनाओं में पांच करोड़ लोग शारीरिक रूप से अक्षम हो जाते हैं।

नई दिल्ली, गुंजा सिंह। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं के कारण विश्व में प्रतिवर्ष 13.5 लाख लोगों की मृत्यु होती है और लगभग पांच करोड़ लोग शारीरिक रूप से अक्षम हो जाते हैं। भारत की बात करें तो सालाना लगभग डेढ़ लाख लोग रोड एक्सीडेंट से मौत का शिकार हो जाते हैं। इन दुर्घटनाओं के कारणों पर गौर करें तो सड़क व परिवहन मंत्रलय के अनुसार भारत में 71 प्रतिशत दुर्घटनाएं वाहन चालकों के ओवर स्पीडिंग के कारण होते हैं, लेकिन इन दुर्घटनाओं के शिकार होने वालों में बड़ी संख्या पैदल चलने वालों की भी होती है। वैसे पैदल चालकों की सुरक्षा के लिए कुछ वर्ष पूर्व दिशानिर्देश बनाए गए थे, परंतु केवल नियमों के सहारे इनकी सुरक्षा संभव नहीं है। इसके लिए हमें एक नया दृष्टिकोण अपनाते हुए सड़क सुरक्षा, शहरी योजना, राजमार्ग निर्माण, व्यवहार परिवर्तन आदि विविध मोर्चो पर एक साथ तत्परता दिखानी होगी। चूंकि सर्वाधिक दुर्घटनाएं अधिक गति के कारण होती हैं, लिहाजा वाहनों द्वारा गति सीमा का उल्लंघन नहीं हो यह सुनिश्चित करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यह काम केवल पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। ओवर स्पीडिंग एक व्यवहार संबंधी समस्या है। खासकर किशोरों में इस प्रवृत्ति और जुनून के पीछे जैविक यानी हार्मोनल कारणों के साथ साथ कई अन्य कारण भी हैं, जैसे रेसिंग वाले वीडियो गेम और फिल्मों का भी छोटी-मोटी दुर्घटनाओं को सामान्य बना देने में एक बड़ा योगदान है। ऐसे में जरूरी है कि जब भी कोई व्यक्ति वाहन चलाए तो वह इस बात को समङो कि रेस लगाना, बाइक पर खतरनाक स्टंट करना, कहीं भी किसी भी दुकान, फुटपाथ आदि पर गाड़ी चढ़ा देना, पैदल यात्रियों का अपनी जान बचाकर भागना एक मजाक या हीरोगिरी नहीं है।

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इन चालक केंद्रित व्यावहारिक परिवर्तन के अलावा इसमें शहरी विकास और योजनाओं की भी एक बड़ी भूमिका है। बड़े शहरों में भी कुछ ही सड़कें ऐसी हैं, जहां फुटपाथ सड़क से ऊंची और पर्याप्त रूप से चौड़ी है, शेष फुटपाथ बहुत ही तंग और अतिक्रमित हैं। अधिकांश छोटे शहरों में तो स्थिति और भी खराब है। फुटपाथ के बगल में कोई बाड़ नहीं होने के कारण कई बार लोग इन पर भी गाड़ियां चढ़ा देते है जिस कारण पैदल यात्रियों के साथ छोटी-मोटी टक्कर आम बात है। ऐसे में केवल फुटपाथ के होने से बात नहीं बनती है, इसके लिए फुटपाथ के बीच-बीच में अवरोधक भी बनाए जाएं, ताकि उस पर कोई वाहन चल ही न पाए। इसके साथ यह भी देखना होगा कि उनका अतिक्रमण नहीं हो और जहां बाजार लगते हैं, वह स्थान फुटपाथ के दायरे से बाहर हो। हालांकि व्यावहारिक रूप से ऐसा कर पाना बहुत मुश्किल दिखता है, लेकिन पैदल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस संबंध में सटीक नीति बनानी होगी।

वैसे हमारे देश में शहरी विकास की मूल अवधारणा में पैदल यात्री प्रथम वरीयता का है और सड़क पर पहला हक उसका है, इस जैसी एक नीति को आकार देना होगा और इसी के अनुरूप योजना भी बनानी होगी। उदाहरण के लिए पैदल यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सड़क निर्माण के समय उसके दोनों किनारों पर पैदल यात्रियों की सुविधानुसार फुटपाथ बनाना भी अनिवार्य किया जाए। इसका एक दूसरा फायदा यह होगा कि स्थानीय स्तर पर आवाजाही के लिए लोग पैदल यात्र को प्राथमिकता देंगे जिससे वायु प्रदूषण और यातायात को व्यवस्थित रखने समेत शहरों में वाहनों की पार्किंग जैसी समस्या का भी व्यावहारिक समाधान संभव होगा। पैदल यात्रियों को सड़क पर चलने के लिए समुचित स्थान मिले, इसकी निरंतर निगरानी के लिए स्थानीय निकायों के सहयोग से एक समिति भी बनाई जा सकती है।

(शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय)


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