16 में से 13 जोनल मुख्यालयों ने नहीं अपनाया लैंड मॉनीटरिंग सिस्टम, फिर कैसे रुकेगा अतिक्रमण
रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण की सबसे बड़ी वजह खुद रेलवे ही है। इसकी खामियों और कुप्रबंधन के चलते रेलवे अतिक्रमण रुक नहीं पा रहा है।
डीएन त्रिपाठी। रेल लाइनों के किनारे की बेशकीमती जमीनों पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण का मर्ज पूरे देश को घेर चुका है। नेताओं के दबाव में आकर कई बार नगर निगम और पुलिस सहयोग नहीं करते। मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ। यदि इन विभागों का सहयोग मिल भी जाए तो हमारे कुछ अफसर फील्ड पर नहीं जाते। कब्जों के लिए रेलवे अधिक जिम्मेदार है। अवैध निर्माण रोकने के लिए संसद की पब्लिक अकाउंट कमेटी की रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि आखिर कैसे 16 में से 13 जोनल मुख्यालयों ने लैंड मॉनीटरिंग सिस्टम अपनाया ही नहीं। जिन तीन जोन में इसे लागू किया गया था, वहां तैनात कर्मचारियों को प्रशिक्षण तक नहीं मिला। इन्हीं खामियों और कुप्रबंधन के चलते रेलवे अतिक्रमण नहीं रोक पा रहा।
जमीनों के रखरखाव की व्यवस्था अब भी मंडल स्तर पर विभाजित है। इससे समन्वय और एक्शन प्रभावित होता है। यदि लखनऊ में आलमनगर स्टेशन के पास अतिक्रमण हो जाए तो उसे हटाने में लखनऊ रेल मंडल असहाय है क्योंकि चारबाग स्टेशन से मात्र पांच किमी की दूरी वाला यह इलाका मुरादाबाद रेल मंडल में आता है। यूपी में चार जोन उत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे और ईस्ट कोस्ट रेलवे के नौ डीआरएम मुख्यालय आते हैं जबकि पूरे यूपी के लिए नौ रेल मंडलों की नहीं, एक केंद्रीयकृत सिस्टम की जरूरत है। अतिक्रमण को हटाने के लिए दो महकमे इंजीनियरिंग और आरपीएफ की सीधी भूमिका है।
हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आरपीएफ का गठन ही रेलवे संपत्ति की रक्षा के लिए हुआ है लेकिन जमीन रेलवे की है या नहीं, यह पहचान इंजीनियरिंग विभाग ही कर सकता है। उसकी सिफारिशों को लागू कराने के लिए आरपीएफ आगे आती है। आरपीएफ का भी हाल देखिए। इसमें करीब पांच हजार से अधिक पद देश भर में रिक्त पड़े हैं लेकिन कानपुर के गंगा नदी पुल से लेकर दीन दयाल उपाध्याय नगर (मुगलसराय) तक 926 कांस्टेबल से लेकर इंस्पेक्टर तक तैनात हैं। अब तो आरपीएसएफ को भी अतिक्रमण हटाने के लिए उतार दिया गया है।
किसी संपत्ति को खाली कराने के लिए रेलवे की इंजीनियरिंग शाखा को सर्वे कर रिपोर्ट देनी होती है। संबंधित नगर निगम और पुलिस की व्यवस्था करवाकर अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी आरपीएफ की होती है।अतिक्रमण हटाने के लिए सैकड़ों की संख्या में अभियान चलाने के बाद मैंने पाया कि वहां दोबारा झुग्गियां बस गईं। यदि रेलवे मुक्त हुई भूमि पर फेंसिंग कर देती है तो जगह सुरक्षित हो जाती है। फेंसिंग का काम इंजीनियरिंग का होता है। हां, रेलवे ने एक कोशिश जरूर की। उसने रेल लाइन किनारे की जमीनों को अपने ही ग्रुप डी व ग्रुप सी कर्मचारियों को लाइसेंस पर खेती के लिए जमीन देने की योजना लागू की थी। ग्रो मोर फूड स्कीम में इन कर्मचारियों को भूमि आवंटित की गई। करीब दो हजार एकड़ जमीन यूपी में रेलवे कर्मचारियों को दी गई। यह जमीन शहरी क्षेत्र से बाहर होती है। वहां किसी तरह का पक्का अवैध निर्माण नहीं होता। इस योजना की जरूरत शहर के भीतर है।
(लेखक आरपीएफ के सेवानिवृत्त सहायक आयुक्त हैं)