आजादी के 192 दिन बाद भारत का हिस्सा बना था लोहारू, यहां नहीं हुए आजादी के 75 साल पूरे
भिवानी जिले की लोहारू में आजादी के 75 वर्ष पूरे नहीं हुए हैं। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने के बाद भी लोहारू रियासत के नवाब भारत में शामिल नहीं हुए थे। आजादी के 192 दिन बाद तक नवाबों का शासन चला था।
जागरण संवाददाता, भिवानी: देश को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं, मगर भिवानी जिले की लोहारू में आजादी के 75 वर्ष पूरे नहीं हुए हैं। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने के बाद भी लोहारू रियासत के नवाब भारत में शामिल नहीं हुए थे। आजादी के 192 दिन बाद तक नवाबों का शासन चला था। 23 फरवरी 1948 को लोहारू रियासत को भारत गणराज्य में विलय किया गया था। उसके बाद इसे हिसार में सम्मिलित किया गया और 1972 में भिवानी जिला बनने के बाद इसे उपमंडल का दर्जा देकर उसमें शामिल कर दिया गया।
जिले की लोहारू रियासत बीकानेर व जयपुर रियासत के बीच 280 वर्ग मील में थी। इतिहासकारों के अनुसार जयपुर राज्य की मिंट (जहां सिक्के बनते थे) लोहारू में थी और लोहारू का नाम मिंट के कारीगर लोहार के नाम पर रखा गया था। इस रियासत में दो महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी गई थीं। पहली 1671 में ठाकुर मदन सिंह व हिसार के मुगल गर्वनर अलफूखान के बीच भू राजस्व को देने से मना करने के कारण हुई थी। दूसरी लड़ाई खेतड़ी के राजा भोपाल सिंह व लोहारू पर खेतड़ी के अधिकार को लेकर ठाकुर किरत सिंह के बीच हुई थी।
नवाबों के खिलाफ चली थी लंबी लड़ाई
लोहारू में नवाब अपने तरीके से नियम लागू करते थे। इस क्षेत्र में कई ऐसे क्रांतिकारी हुए थे जिन्होंने इसका विरोध किया और इनके खिलाफ बगावत कर दी थी। इसके चलते कई क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतार दिया था। मगर वे लड़ते रहे। अंग्रेजों और नवाबों के खिलाफ इन्होंने जमकर संघर्ष किया था। आज भी बहुत से बलिदानियों के किस्से सुनने को मिलते हैं।
आर्य समाज ने चलाया था आंदोलन
1857 की क्रांति के दौरान लोहारू के मुखिया अमीनुद्दीन और जियाउद्दीन दोनों दिल्ली में थे। अंग्रेजों के दोबारा से दिल्ली पर कब्जा करने के बाद दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसके बाद आर्य समाज के लोगों का आंदोलन भी चलाया था जिसे उन्होंने जीता।