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हाथरस की पोशाक पहन पालने में झूलेंगे लड्डू गोपाल

हाथरस की पोशाक और पालना में झूलेंगे लड्डू गोपाल

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Aug 2022 01:27 AM (IST)Updated: Thu, 18 Aug 2022 01:27 AM (IST)
हाथरस की पोशाक पहन पालने में झूलेंगे लड्डू गोपाल
हाथरस की पोशाक पहन पालने में झूलेंगे लड्डू गोपाल

हाथरस की पोशाक पहन पालने में झूलेंगे लड्डू गोपाल

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आकाश राज सिंह, हाथरस : जन्माष्टमी पर्व पर देशभर में लड्डू गोपाल हाथरस में बने झूले व पालनों में झूलेंगे। उनकी पोशाक भी हाथरस में तैयार की जाती है। इनकी सप्लाई मथुरा, वृंदावन समेत पूरे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, सहित प्रमुख प्रदेशों में की गई है। शहर में पोशाक, मुकुट, माला, बंशी बनाकर भी अलग-अलग शहरों में बिक्री के लिए भेजी जाती हैं। जन्माष्टमी को लेकर पोषाक व हैंडीक्राफ्ट के काम में करीब पांच हजार परिवार जुड़े हुए हैं। कई पीड़ियों से बनते आ रहे हिंडोले व मुकुट श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर प्रयोग होने वाले बाल कृष्ण के श्रृंगार से संबंधित झूले, पालने, मुकुट, बांसुरी सहित कई आइटम हाथरस में बनाए जाते हैं। यह कार्य प्रमुख रूप से कांस्यकार समाज के लोग करते हैं। शहर के गली कौंजड़ान, होली वाली गली, गली बंदरवन, चमन गली, गणेशगंज, नगला अलगर्जी, ढकपुरा सहित कई इलाकों में कई पीढ़ियों से यह कार्य होता आ रहा है। कोटिंग से बरकरार रहती है चमक शहर में जन्माष्टमी को लेकर झूले, मुकुट, सिंहासन, गाय, बाल स्वरूप में श्रीकृष्ण की मूर्तियां बनाने का कार्य साल भर चलता है। इसे एल्युमिनियम, पीतल, तांबा से बनाए जाते हैं। नक्काशी इन उपकरणों को आकर्षक बनाती है। इनके लिए कच्चा माल मुरादाबाद, दिल्ली व जयपुर से मंगाया जाता है। कास्टिंग, पॉलिस के बाद चमक बरकरार रखने के लिए लेकर कोटिंग की जाती है। प्रसिद्ध है यहां कारीगरी जन्माष्टमी का पर्व भले ही रक्षाबंधन के आठ दिन बाद मनाया जाता है। इसके लिए ब्रास, मेटल व चांदी से चौकी, लड्डू गोपाल, मुकुट, झूले व मूर्तियां बनाने का कार्य साल भर चलता रहता है। कारोबारी रमेशंचद्र वर्मा बताते हैं कि इन्हें बनाने के लिए नक्काशी व बनाई के लिए अलग-अलग कारीगर होते हैं। बुधु, ढकपुरा, अइयापुर, भूरा का नगला सहित बीस गांव में सबसे अधिक कारीगर काम करते हैं। हाथरसी चांदी की चौकी पर बिराजेंगे लड्डू गोपाल चांदी से बने लड्डू गोपाल के अलावा झूले, पालने, मुकुट, सिंहासन, चौकी, गाय हाथरस में बनते हैं। इसके लिए कारीगरों द्वारा बेहतर नक्काशी की जाती है। यह कार्य गली कौंजड़ान, बंदरवन सहित कई इलाकों में होता है। कारोबारी रमेशचंद वर्मा बताते हैं इसके लिए कच्चा माल जयपुर व दिल्ली से आता है। हाथरस में बने इन उत्पादों की डिमांड देश ही नहीं, विदेशों में भी रहती है। उनकी कई पीढ़ियों से यह कार्य होता आ रहा है। 20 करोड़ का पोशाक का कारोबार हाथरस में जन्माष्टमी से संबंधित पोशाक व छोटे बच्चों की ड्रेस का कार्य हो रहा है। शहर में सबसे अधिक यह कार्य चक्की बाजार में होता है। करोड़ों के कारोबार से करीब 200 परिवार जुड़े हैं। नीरज अग्रवाल बताते हैं पोशाक बनाने के लिए खादी, काटन व पोलिस्टर का कपड़ा सूरत से आता है। एंब्रोइडरी का कार्य आधुनिक मशीनों से किया जाता है। मथुरा-वृंदावन के रास्ते यह देश व विदेशों तक सप्लाई होता है। बोले कारोबारी हाथरस में कई दशक से हार्डवेयर का कार्य होता आ रहा है। इसमें जन्माष्टमी को लेकर मुकुट, लड्डू गोपाल, झूला, बांसुरी सहित कई उत्पाद बनाए जाते हैं। यह माल आर्डर पर तैयार होता है। देश के अलग-अलग शहरों में सप्लाई हाथरस से की जाती है। - घनश्यामदास कूलवाल, हैंडीक्राफ्ट कारोबारी पहले हाथरस में पीतल, तांबा, एल्युमिनियम से ही यह उत्पाद बनाए जाते थे। अब चांदी का भी काम यहां हो रहा है। यहां बने उत्पादों की डिमांड देश व विदेशों में है। दिल्ली व मुंबई के रास्ते यह विदेश जाते हैं। - प्रमोद वर्मा, हैंडीक्राफ्ट कारोबारी


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