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Independence की अनसुनी कहानियां, क्रांतिकारी हरवंश और रामअवतार दीक्षित के साहस से अंग्रेजों के छूटे थे पसीने

Unheard Stories of Independence स्वतंत्रता संग्राम में मुरादाबाद के लोगों ने अपना जीवन कुर्बान करने के साथ ही जो संभव हो सका वह किया। बहुत सी कहानी इतिहास में दर्ज हुईं तो अधिकांश को भुला दिया गया।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 08:58 AM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 08:58 AM (IST)
Independence की अनसुनी कहानियां, क्रांतिकारी हरवंश और रामअवतार दीक्षित के साहस से अंग्रेजों के छूटे थे पसीने
Independence Day 2022 : आजादी की लड़ाई का सांकेतिक फोटो।

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। Unheard Stories of Independence : स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) में मुरादाबाद (Moradabad) के लोगों ने अपना जीवन कुर्बान करने के साथ ही जो संभव हो सका वह किया। बहुत सी कहानी इतिहास में दर्ज हुईं तो अधिकांश को भुला दिया गया। लेकिन, उनके योगदान को कम नहीं आंका जा सकता।

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मुरादाबाद स्वतंत्रता आंदोलन (Moradabad Freedom Struggle) का केंद्र बिंदु हुआ करता था। यहां गरम और उग्र दोनों विचारधारा से जुड़े लोग स्वतंत्रता (Independence) के लिए संघर्ष कर रहे थे। शहर के राम अवतार दीक्षित (Ram Avatar Dixit) का जन्म पाकिस्तान (Pakistan) के लाहौर (Lahore) की जेल में 1923 में हुआ था। उनकी माता सावित्री देवी व क्रांतिकारी पिता बूलचंद दीक्षित को 1922 में अंग्रेजों ने लाहौर की जेल में बंद कर दिया था।

जेल से छूटने के बाद राम अवतार दीक्षित के माता पिता सहारनुपर में आकर बस गए थे। बाद में धामपुर के जैतरा गांव में आ गए थे। राम अवतार जब जवानी की दहलीज चढ़ रहे तो अपने पिता की तरह खुद भी आजादी के आंदोलन में सक्रिय हो गए। रामअवतार दीक्षित ने धामपुर में अंग्रेजों का झंडा व थाना जला दिया था।

जब हरवंश की धमकी पर खाली हो गया था थाना

1941 से 1947 तक उग्र विचार वाले नेताओं में अग्रणी रहे रामपुर घोघर के रहने वाले चौधरी हरवंश सिंह। 1942 में उन्होंने बिजनौर के धामपुर थाना के बाहर नोटिस चिपका दिया। इसमें धमकी दी कि अगर दो घंटे में थाना खाली नहीं हुआ तो परिणाम बहुत भयानक होंगे। नाेटिस पढ़ने के बाद थानेदार ने पूरे स्टाफ को बुला लिया और फिर थाना खाली करके ताला लगाकर चले गए।

सूचना पहुंचाने वालों को भी मिली सजा

मुरादाबाद और आसपास के क्षेत्र से लेकर पहाड़ी क्षेत्र (वर्तमान उत्तराखंड) स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र रहा। इतिहासकार डा. अजय अनुपम बताते हैं कि सूचनाओं को सदस्याें तक पहुंचाने के लिए ओमप्रकाश गौड़ को दो साल की सजा हुई। इसी प्रकार से कांग्रेस के कार्यालय मंत्री छोटे लाल खटखटिया (जो सभी सदस्यों के घर जाकर कुंडी खटखटाते और सूचनाएं देते थे, इसलिए उनका नाम खटखटिया पड़ गया) को 1942 में गिरफ्तार कर छह महीने की सजा सुनाई गई। रूप किशोर गुटरक को छह महीने की सजा दी गई। मास्टर रामकुमार को भी नौ महीने से सजा सुनाई गई।

घंटी बजाने पर मिली सात महीने की सजा

श्याम दास वैश्य ने इन्होंने अगस्त क्रांति में दस अगस्त 1942 अंग्रेजों के विरोध में पारकर कालेज में घुसकर घंटी बजा दी। सभी बच्चे स्कूल से उठकर घर चले गए। इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और सात महीने की सजा हुई। भगवत सरन अग्रवाल, मुमताज नाम से शायरी करते थे। सरकार विरोधी शायरी लिखने के लिए उन्हें ढाई साल के लिए नजर बंद कर दिया गया।

तहसीलदार का पद छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे शिव स्वरूप सिंह

स्वतंत्रता सेनानी शिव स्वरूप सिंह तहसील ठाकुरद्वारा में एक सम्पन्न परिवार में से एक थे। 1907 में जन्मे चौधरी शिव स्वरूप सिंह ने सन 1930 में नायब तहसीलदारी छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे। इस आंदोलन में उन्होंने 1930, 1931, 1932,1940,1942,1945 में जेल गए।

हृदय नारायण खन्ना को सेवा से कर दिया था वंचित

हृदय नारायण खन्ना बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान पंडित पं. मदन मोहन मालवीय तथा महात्मा गांधी के संपर्क में आए थे। 1927 में उनका चयन न्यायिक सेवा के लिए हो गया था। किंतु स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए कारण उन्हें सेवा से वंचित कर दिया गया था। 1930 में असहयोग आंदोलन व 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।

सम्भल के मदरसों में बनती थी योजना

चन्दौसी निवासी जगदीश नारायण ने आजादी के आंदोलन के दौरान एक अंग्रेज अफसर पर थूक दिया था। जिसके बाद उन्हें सजा मिली थी। सम्भल के मदरसों में बैठकर हिंदू और मुस्लिम समाज के लोग आजादी की लड़ाई कैसे लड़ी जाए इसकी योजना बनाते थे। गांव गुमथल के लोगों ने एक थाने में आग लगा दी थी जिसके आस पास के क्षेत्र के बड़ी संख्या में लोगों को कड़ी सजा मिली थी। बबराला क्षेत्र के लोगों ने भी आजादी में बढ़चढ़कर भाग लिया था। अंग्रेजों ने 14 लोगों को सजा दी थी। इसके अलावा गांव सलखना निवासी महिपाल सिंह ने भी बड़ी भूमिका निभाई।

दो साल बाद आजाद हुआ रामपुर

देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया, लेकिन रामपुर 30 जून 1949 को आजाद हो सका। इस कारण रामपुर में आजादी का पहला जश्न भी नहीं मन सका था। यहां के लोग रामपुर को पाकिस्तान में शामिल करने की मांग कर रहे थे। चार अगस्त 1947 को रामपुर में बवाल हुआ था। दर्जनभर लोग मारे गए थे। भीड़ ने तहसील और गंज कोतवाल का घर भी फूंक दिया था। रामपुर इतिहास के जानकार सेवानिवृत शिक्षक महेंद्र सक्सेना कहते हैं कि आजादी के बाद भी राजघराने अपना राज करना चाहते थे। बाद में केंद्र सरकार ने इन्हें भारत गणराज्य में शामिल होने के लिए राजी किया। इसके बाद रामपुर रियासत का भी भारत गणराज्य में विलय हो गया।


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