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Independence Day 2022: महान राजा जय लाल की कहानी, जिन्होंने पस्त किए थे अंग्रेजों के हौसले

Independence Day 2022 चार फिरंगी आदमी और चार महिलाओं को कोठी रोशनउद्दौला में राजा जय लाल की सुरक्षा में रखा गया था। आलमबाग मोर्चे पर भयंकर संघर्ष में फिरंगियों के हाथों सैकड़ों हिंदुस्तानियों के शहीद होने की खबर ने यहां सब को बेचैन कर दिया।

By Vikas MishraEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 09:54 AM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 09:54 AM (IST)
Independence Day 2022: महान राजा जय लाल की कहानी, जिन्होंने पस्त किए थे अंग्रेजों के हौसले
राजा जय लाल ने ही फिरंगियों को देश से बाहर निकालने के लिए आह्वान किया।

लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। स्वतंत्रता संग्राम में हर कोई समान भाव से कूदा। अंत तक लड़ा और अपने प्रयासों से अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने में जी जान लगा दी। ऐसा ही एक नाम है राजा जय लाल। आइए इनकी कहानी को जानते हैं। 30 जून 1857 को इस्माइलगंंज की जंग में विजयी होने के बाद अवध की सेना ने फिरंगियों को रेजीडेंसी के अंदर खदेड़ दिया और उनकी घेराबंदी कर दी। ऐसे में राजा जय लाल ने सभी सेनानायकों की सहमति से बिरजिस कद्र को पांच जुलाई 1857 को अवध का शासक नियुक्त किया। बेगम हजरत महल ने राजा जय लाल को रक्षामंत्री नियुक्त किया।

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राजा जय लाल ने अनेकों राजाओं, महाराजाओं और ताल्लुकादारों को पत्र लिखकर फिरंगियों को देश से बाहर निकालने के लिए आह्वान किया। कानपुर के नाना राव को लखनऊ बुलाकर उनका स्वागत किया। इसी समय हजरत महल की गुप्त बैठक नाना राव के साथ हुई और अखबार 'पयामे आजादी' लखनऊ से प्रकाशित हुआ। एक ऐसी घटना हुई जिससे सारे अंग्रेज अधिकारियों की नजरें राजा पर टिक गईं।

चार फिरंगी आदमी और चार महिलाओं को कोठी रोशनउद्दौला में राजा जय लाल की सुरक्षा में रखा गया था। आलमबाग मोर्चे पर भयंकर संघर्ष में फिरंगियों के हाथों सैकड़ों हिंदुस्तानियों के शहीद होने की खबर ने यहां सब को बेचैन कर दिया। मौलवी अहमद उल्ला शाह ने यह खबर सुनते ही रौशनउद्दौला कोठी से जबरन उन चार फिरंगी मर्दों को ले गए और उन्हें सजाए मौत दे दी। इसका आरोप राजा जय लाल पर लगाया गया।

राजा जय लाल अंतिम समय तक लड़ते रहे जब तक हजरत महल अवध की सरहद तक न पहुंच गई। राजा जल लाल की आखिरी जंग जनरल होप ग्रांट से हुई और वह विजयी हुए। किंतु कालांतर में गिरफ्तार हो गए। 23 सितंबर 1859 को उनको मौत की सजा सुनाई गई और एक अक्टूबर 1859 को चाइना बाजार गेट के सामने जहां चार फिरंगियों को फांसी दी गई थी। राजा जय लाल भी गले में फंदा डाल कर हंसते-हंसते झूल गए। उनकी स्मृति में हजरतगंज में बने पार्क में उनकी प्रतिमा भी लगी है, जहां समय समय पर आयोजन भी होते हैं।


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