Move to Jagran APP

Independence Day 2022: बरेली में अंग्रेजों के जमाने में बसा टाउन हाल कैसे बन गया कुतुबखाना, पढ़िए रोचक किस्सा

Independence Day 2022 बरेली में अंग्रेजों के जमाने में बसा टाउन हाल का कुतुबखाने में तब्दील होने का किस्सा बड़ा ही रोचक है।जो लाइब्रेरी के स्थापित होने से शुरू होता है।जिसके बाद यह टाउन हाल कुतुबखाने में बदल गया।

By Ravi MishraEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 09:30 AM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 09:30 AM (IST)
Independence Day 2022: बरेली में अंग्रेजों के जमाने में बसा टाउन हाल कैसे बन गया कुतुबखाना, पढ़िए रोचक किस्सा
Independence Day 2022 : बरेली में अंग्रेजों के जमाने में बसा टाउन हाल कैसे बन गया कुतुबखाना, पढ़िए रोचक किस्सा

बरेली, जागरण संवाददाता। Independence Day 2022 : बरेली में अंग्रेजों के जमाने में बसाया गया टाउन हाल (Town Hall) धीरे-धीरे कुतुबखाने में तब्दील हो गया। इसका भी रोचक इतिहास है। कुतुबखाना (Qutubkhana Chouraha) बरेली के प्रमुख बाजारों में से एक है। इसके अलावा बरेली काॅलेज की शुरुआत हुई।

loksabha election banner

आजादी के दस साल बाद तक कुतुबखाना में रही ब्रिटिश लाइब्रेरी

बिहारीपुर खत्रियान के रहने वाले बुजुर्ग रवि शंकर मेहरोत्रा ने बताया कि कुतुबखाना चौराहा के पास जहां पुलिस चौकी है, वह स्थान टाउन हाल कहलाता था। अंग्रेजों ने ही पुलिस चौकी की जगह पर लाइब्रेरी बनाई थी। काफी सीढ़ियां चढ़कर उस पर लोग जाते थे। सामने ही मोती पार्क (Moti Park) का मैदान था, जहां उस वक्त सभाएं हुआ करती थी।

वर्ष 1957 तक लाइब्रेरी खंडहर हो गई। मुख्य टाउन हाल तो खत्म हो गया, लेकिन बाजार का क्षेत्र इसी नाम से पहचान पा गया। चूंकि उर्दू में लाइब्रेरी को कुतुबखाना कहते हैं, इसलिए धीरे-धीरे यहां का नाम कुतुबखाना पड़ गया।

रेलवे वर्कशाप तक पहुंचने को बनाई मैकनियर रोड

मनोहर भूषण इंटर कालेज के पास से टीबरी नाथ मंदिर (Tibri Nath Temple) के सामने होते हुए सूद धर्मकांटा होकर मूर्ति नर्सिंग होम तक जाने वाली सड़क का नाम मैकनियर रोड भी अंग्रेजों का ही रखा हुआ है। पहले मूर्ति नर्सिंग होम के पास रेलवे का वर्कशाप हुआ करता था। शाहदाना तक ट्रेन चला करती थी। वर्कशाप तक आने-जाने के लिए मैकनियर रोड बनाई गई।

आज तक वही नाम चल रहा है। प्रेमनगर निवासी पूर्व पार्षद राजेश तिवारी ने बताया कि सिटी इंप्रूवमेंट (सीआइ) पार्क भी अंग्रेजों की देन है। मैकनियर रोड पर यह पार्क वर्ष 1934 में बनाया गया था। वहां ब्रिटिश वास्तुकला में बना एक क्लब भी था, जो अब खंडहर हो चुका है। हालांकि अब इस पार्क का नाम सुभाष चंद्र बोस पार्क कर दिया गया है।

57 छात्रों से हुई थी बरेली कालेज की शुरुआत

बरेली कालेज पत्रकारिता विभाग के प्रभारी डा. रमेश त्रिपाठी के अनुसार आगरा उत्तर पश्चिम प्रांत के लेफ्टीनेंट गर्वनर बैंटिक की कार्यकारिणी के सदस्य सर चार्ल्स मेटकाल्फ के प्रयासों से वर्ष 1837 में बरेली कालेज की स्थापना हुई। यह स्कूल कलकत्ता प्रेसीडेंसी के अधीन था। सर्वप्रथम बरेली कालेज (Bareilly College) की स्थापना नावेल्टी टाकीज के पास नौमहला क्षेत्र में राजकीय इंटर कालेज परिसर में हुई थी।

उस वक्त करीब 57 छात्र थे। रोजर्स यहां के पहले हेडमास्टर थे। तब यहां गणित, अंग्रेजी, उर्दू, इतिहास, फारसी आदि मौलिक विषय पढ़ाए जाते थे। 1850 में बरेली कालेज को कालेज का दर्जा मिला। बेरन ट्रेगर कालेज के पहले प्राचार्य बने। आज यहां उच्च शिक्षा के सभी कोर्स छात्र-छात्राओं को पढ़ाए जाते हैं। दो सौ से अधिक शिक्षक-शिक्षिकाएं और 15 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं कालेज में हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.