Indenpendencen Day: आजादी के पहले वाली वो एक रात सिलीगुड़ी के लोगों ने बेचैनी में काटी, स्वतंत्रता की सुबह लाई दोहरी खुशी
अगस्त का महीना 14वीं तारीख और गुरुवार का दिन। शाम ढली। रात आई। घरों में लोग खा-पी कर सोने को बिस्तर पर लेट गए। मगर आंखों में नींद कहां। बड़ी बेचैनी भरी रात थी वह। हर किसी को यही चिंता खाए जा रही थी।
सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। यह अंग्रेजों की गुलामी से भारत की आजादी के सन् 1947 की बात है। अगस्त का महीना, 14वीं तारीख और गुरुवार का दिन। शाम ढली। रात आई। घरों में लोग खा-पी कर सोने को बिस्तर पर लेट गए। मगर, आंखों में नींद कहां। दिल में चैन कहां। बड़ी बेचैनी भरी रात थी वह। हर किसी को यही चिंता खाए जा रही थी कि आजादी की सुबह हिंदुस्तान में होगी कि पाकिस्तान में? जलपाईगुड़ी और सिलीगुड़ी व आसपास के लोगों का मारे चिंता के बड़ा बुरा हाल था। हर घर में लोग बेचैन थे, बेकरार थे। रेडियो जिनके पास था वे हर घड़ी खबरों पर ही कान लगाए हुए थे। पड़ोसी एक-दूसरे से पल-पल की खबर रहे थे। आधी रात को ब्रिटिश गुलामी से देश की आजादी की खबर आई। अगली सुबह हुई। आजादी की सुबह। उसमें भी सोने पर सुहागा यह कि जलपाईगुड़ी व सिलीगुड़ी और इसके आसपास का इलाका पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में नहीं गया। हिंदुस्तान का ही रहा। यह खुशी आजादी के साथ दोहरी खुशी थी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन दार्जिलिंग जिला अध्यक्ष शिवमंगल सिंह के पौत्र नंदू सिंह अपने दादा से विरासत में मिली यह अनूठी याद साझा करते हुए बताते हैं कि ‘हम बड़े खुशनसीब थे कि हिंदुस्तान में ही रहे’। आजादी वाली उस रात देश भर की तरह यहां भी जश्न का माहौल हो गया। आजादी के दीवानों का जत्था आधी रात में ही घरों से निकल पड़ा। कोई लालटेन लिए। कोई लाठी तो कोई मशाल। महानंदा नदी किनारे लोग जुटे। ‘वंदे मात्रम...वंदे मात्रम... जय हिंद... जय भारत... इंकिलाब जिंदाबाद...’ आदि नारों से माहौल गूंज उठा। जम कर पटाखे छोड़े गए। उस समय यहां के कांग्रेसी दिग्गज शिवमंगल सिंह ने लोगों को संबोधित किया। देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषण दिया। हर किसी में मानो एक नया जोश भर गया। आजादी की सुबह यानी शुक्रवार के दिन रेडियो पर पंडित नेहरू के भाषण का सबको बेसब्री से इंतजार था। जब भाषण प्रसारित हुआ तो जगह-जगह सामूहिक रूप में सुना गया।
कई जानकार यह भी बताते हैं कि ‘अगस्त का महीना शुरू होते ही आजादी का माहौल बनने लगा था। उस समय यहां अमृत बाजार पत्रिका व आनंद बाजार पत्रिका और युगांतर आदि अखबारों के माध्यम से आजादी की हर हलचल से लोग अवगत होते रहते थे। तब, सिलीगुड़ी गांव सरीखा ही था। इसकी आबादी बमुश्किल 10-12 हजार ही रही होगी। मुख्य शहर जलपाईगुड़ी था। उस समय अखबार दो पैसे में आता था। यहां एक दिन पुराना अखबार ही मिल पाता था। तब, आजादी का ऐसा माहौल था कि हर जगह बस उसी की चर्चा थी’।
वहीं, यह भी एक दिलचस्प बात है कि, ‘सिलीगुड़ी में आज जहां मायेर इच्छा कालीबाड़ी है वहां उस समय बहुत घना जंगल हुआ करता था। आजादी के मतवालों में गरम दल के लोग उसी जंगल में अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लिया करते थे और अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई की योजना बनाते थे।’ खैर, कहानियां तो और भी बहुत हैं। मगर, आखिर में बस इतना ही कि देश भर में भले ही लोगों को आजादी की खुशी मिली लेकिन सिलीगुड़ी और जलपाईगुड़ी व आसपास के लोगों को आजादी की दोहरी खुशी मिली।