हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल कर, बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों ने सुनाए स्वतंत्रता आंदोलन के दास्तां
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम बिहार के मुंगेर लखीसराय व जमुई के स्वतंत्रता सेनानियों ने बताया कि कैसे भारत स्वतंत्र हुआ। इस आंदोलन में कई ने खुद को बलिदान कर दिया। कई क्रांतिकारियों का सहयोग ग्रामीण करते थे। आज हम स्वतंत्र भारत में रह रहे हैं।
जागरण टीम, मुंगेर/लखीसराय/बांका। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम : भारत को स्वतंत्रत हुए 75 वर्ष हो गए। कई स्वतंत्रता सेनानियों ने इस आंदोलन में खुद को बलिदान कर दिया। आज हम ऐसे कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बताते हैं, जिन्होंने भारतीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज वे जिंदा हैं भारत के स्वर्णिम युग की कल्पना कर रहे हैं।
अंग्रेजों के अत्याचार को याद कर सिहर उठता है मन
जब मैं 15 वर्ष का था, उसी समय से अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने लगा। अपने साथियों को भी गुलामी की बेडिय़ों को तोडऩे के लिए जागरूक करता था। उस दौर में अंग्रेजों के अत्याचार को याद कर रोम-रोम सिहर उठता है। गोरी पलटन के आने की आहट से घरों के दरवाजे और खिड़कियां बंद हो जाती थीं। यह वह दौर था, जब देश परिवर्तन के लिए आवाज उठाने लगा था। तब आंदोनकारियों के रहने और खाने की व्यवस्था का प्रबंध मैंने शुरू किया था। भोजन के लिए घर-घर जाकर मुठिया (मुट्ठी भर अनाज) मांगते थे। बाद में बिहार में मुख्यमंत्री बने श्रीकृष्ण सिंह और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी तब आंदोलन में आते थे। - राणा ऋषिदेव सिंह, स्वतंत्रता सेनानी, मुंगेर
अत्याचार से लड़कर पाई आजादी
13 वर्ष की उम्र में ही भारत को आजाद कराने की मुहिम में जुट गया। अगस्त, 1942 में जब राष्ट्रपिता बापू ने अंग्रेजों भारत छोड़ो की हुंकार भरी, तो हाथों में तिरंगा लिए, भारत माता का जयघोष करते हुए गांव-गांव से लोग निकल पड़े थे। मैं भी 10-12 युवाओं के साथ गांधी जी के आंदोलन में शामिल हुआ। हम लोगों ने जब लखीसराय स्थित अंग्रेजों के गोदाम एवं अन्य संस्थानों पर तिरंगा लहराने का प्रयास किया तो अंग्रेज अधिकारी बौखला गए। क्रांतिकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया। गिरफ्तारी से बचने के लिए गांव में छिपकर गुप्त रणनीति बनाई जाती थी। - हुकुम बाबा, स्वतंत्रता सेनानी, लखीसराय
भूखे-प्यासे रहकर दिलाई देश को आजादी
अंग्रेजों ने काफी अत्याचार किया। कोड़े बरसाए, जेल में भी डाल दिया। भूखे-प्यासे रहकर अंग्रेजों के अत्याचार से मुकाबला करता था। अभी मैं बीमार हूं, बिस्तर से उठ नहीं सकता। बावजूद, उस दौर का जुल्म अभी भी रूह कंपा देता है। तब आंदोलनकारियों को घर छोडऩा होता था। उनकी गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज सिपाही आतंक मचा देते थे। स्वजनों पर भी जुल्म ढाया जाता। कई दिनों तक भूखे -प्यासे भी रहना पड़ता था। जेल में भी कई-कई दिनों तक खाना-पानी बंद कर दिया जाता था। देशवासियों को देश के दुश्मनों खिलाफ लड़ाई जारी रखनी चाहिए। - मदन प्रसाद सिंह, स्वतंत्रता सेनानी, बांका