बुरे सपनो से निकलें बाहर, खुद को ना समझें असहाय और असुरक्षित
पिछले साल अमेरिका में हुए एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि दो-तिहाई अमेरिकी ‘कार्यस्थल दुस्वप्न’ या अवसाद से ग्रसित हैं।
नई दिल्ली [विनीत नैयर]। ‘कार्यस्थल दु:स्वप्न’ एक सच्चाई है, लेकिन हम इनसे बाहर निकलने की कला को सीख सकते हैं, ताकि जीवन एक अच्छी बॉलीवुड फिल्म की तरह हसीन हो। जहां हम पेड़ के इर्द-गिर्द गाने गाते दिखें, भले ही पास की झाड़ियों में विलेन छिपा बैठा हो। क्योंकि हमारा सब कुछ वर्तमान में है, न कि आने वाले पल से। आइए जानते हैं कि कार्यस्थल के दबाव से खुद को बाहर निकलने योग्य कैसे बनाएं...
पिछले साल अमेरिका में हुए एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि दो-तिहाई अमेरिकी ‘कार्यस्थल दु:स्वप्न’ या अवसाद से ग्रसित हैं। भारत में भी स्थिति इससे अलग नहीं है। एसोचैम के एक अध्ययन के अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक लोग कार्यस्थल पर बेचैनी या अवसाद का सामना करते हैं। कार्यस्थल से जुड़े तनाव और असुरक्षा की भावना दु:स्वप्न को और बढ़ाते हैं।
कुछ मनोवैज्ञानिकों ने ‘कार्यस्थल दु:स्वप्न’ की तुलना आघात के बाद होने वाले तनाव विकार से की है। अमेरिका के प्रख्यात मनोवैज्ञानिक केली बुल्कले (जिन्होंने सपनों पर काफी शोध किया है और इस विषय पर कई किताबें लिखी है) के अनुसार ‘बुरे सपनों का मूल कारण है खुद को असहाय और असुरक्षित महसूस करना, जो हमें उस बच्चे की भांति बना देता है, जो खुद को असहाय और असुरक्षित समझता है। वैसे, यह समस्या बहुत व्यापक है, बहुत से लोगों को इस बात का एहसास नहीं होता कि ये बुरे सपने उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। और यही कारण है कि इस समस्या का समाधान करना बहुत महत्वपूर्ण है।
अनिश्चितता को स्वीकारें
सबसे पहले हमें यह स्वीकार करना होगा कि कार्यस्थल हमेशा अनिश्चित और अनुचित रहेंगे। हमें खुद को यह समझाने की आवश्यकता है कि कार्यस्थल भूल भुलैया की तरह हैं और भूल भुलैया में सड़कें सीधी नहीं होती। एक बार यदि आप कार्यस्थल को सीधी सीढ़ी की बजाय भूल भुलैया के रूप में देखना शुरू कर देंगे, तो आप बिना किसी तकलीफ के इसके घुमाव और मोड़, उतार और चढ़ाव को स्वीकार करना शुरू कर देंगे। कुल मिलाकर, अनिश्चितता को स्वीकार करना बुरे सपनों पर जीत की पहली सीढ़ी के समान है।
डर से निकलें बाहर
‘कार्यस्थल दु:स्वप्न’ तब अधिक आते हैं, जब आप लगातार यह सोचते रहते हैं कि आपके साथ क्या होगा, भले ही वह आपके साथ घटित नहीं हुआ है। चाहे वह आपकी इच्छा के अनुसार आपके प्रमोशन या वेतन वृद्धि के बारे में हो या आपकी पसंदीदा तैनाती का मामला हो। बुरे सपने डर से पैदा होते हैं, चाहे वह उस स्थिति में फंसे रहने का डर हो जिसमें आप नहीं रहना चाहते या जिससे आप नफरत करते हैं। यदि डर बना रहता है, तो बुरे सपने सिर्फ और सिर्फ बढ़ेंगे।
समय कई समस्याओं का हल
यह कहना बेकार होगा कि किसी चीज से डरें नहीं या फिर भविष्य के बारे में मत सोचें, क्योंकि हममें से बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिनका अपने दिमाग पर इतना अधिक नियंत्रण होगा। बुरे सपनों से निपटने के लिए इस बात की कल्पना कीजिए कोई पर्वतारोही किसी एक हजार मीटर ऊंची चोटी के बीच में फंस जाता है, जहां से वह न तो नीचे उतर सकता है और न ही ऊपर जा सकता है। ऐसे में वह क्या करेगा? उसे एक ऐसे स्थान की तलाश करनी होगी, जहां वह आराम से रात गुजार सके और सुबह तक का इंतजार कर सके, ताकि दिन की रोशनी में बच निकलने का रास्ता खोज सके। आपको भी हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि कई दफा समय कई समस्याओं को हल कर देता है।
निर्णय टालें नहीं
यदि आप ऐसी स्थिति में हैं, जहां आपको लगता है कि चीजें आपके अनुसार नहीं होने जा रही हैं, मैं आपको कोई भी निर्णय लेने से पहले तीन चीजों पर विचार करने की सलाह दूंगा। सबसे पहले आप यह सोचें कि आप क्या करना पसंद करेंगे और उसके संभावित परिणाम क्या होंगे। फिर यह सोचें कि आप उस परिस्थिति में क्या करेंगे। आपका अगला कदम क्या होगा, उसके संभावित परिणाम क्या होंगे और तब आप क्या करेंगे। यदि इन तीनों प्रश्नों के उत्तर देने के बावजूद यदि आप खुद को किसी बेहतर स्थिति में नहीं पाते हैं, तो मेरी सलाह है कि आप इस स्थिति से बाहर निकलें। क्योंकि आप ऐसे हालात में बने रहेंगे, तो बुरे सपने और बुरे होते जाएंगे।
(पूर्व वीसी/सीईओ, एचसीएल टेक्नोलॉजीज)