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उद्यमिता में कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं, पहचानें सही वक्त

उद्यमिता में कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं। सफलता उन्हें ही मिलती है, जो कभी हार नहीं मानते। हर चीज का सही वक्त होता है।

By Arti YadavEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 02:24 PM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 02:24 PM (IST)
उद्यमिता में कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं, पहचानें सही वक्त
उद्यमिता में कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं, पहचानें सही वक्त

नई दिल्ली, जेएनएन। चेन्नई स्थित बीटुबी ई-प्रोक्योरमेंट कंपनी कॉबस्टर बीते छह वर्षों से बीटुबी ई-कॉमर्स इंडस्ट्री में सक्रिय है, जिसकी नींव तीन दोस्तों, कार्तिक रमैया, मोहन गायम एवं विनीत नीरज ने मिलकर रखी थी। आज यह अपने क्षेत्र की एक पथ-प्रदर्शक कंपनी बन चुकी है, जो देश भर के पांच से अधिक शहरों में स्थित ओरेकल, वर्चुसा, ऑल्टीसोर्स, वीवर्क, डीबी शेंकर, माइंड ट्री, अर्बन लैडर जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों को स्टेशनरी, पैंट्री, हाउसकीपिंग से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की सप्लाई करती है।

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कंपनी के सह-संस्थापक कार्तिक रमैया मानते हैं कि उद्यमिता में कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं। सफलता उन्हें ही मिलती है, जो कभी हार नहीं मानते। हर चीज का सही वक्त होता है। हमें मार्केट सेंटिमेंट्स का आदर करना पड़ता है, जिसके लिए बहुत सारा धैर्य होना चाहिए। मैं तमिलनाडु से हूं। लेकिन पिता जी के केंद्रीय विद्यालय से जुड़े होने के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने का मौका मिला है। मैंने चेन्नई की एसआरएम यूनिवर्सिटी से इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में स्नातक किया है। 2009 में इंटरनेट नया-नया आया था। लेकिन मुझे कॉलेज के समय से ही इंटरनेट से काफी लगाव था। इससे जुड़ा हुआ काम करना अच्छा लगता था। एप बनाने में मन लगता था, जिससे लोगों की मदद हो सके।

मेरे कई एप्स कॉमर्शियल लॉन्च भी हुए। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने तीन वर्ष टेक्नोलॉजी डेवलपर के तौर पर कुछ कॉरपोरेट्स के साथ काम किया। लेकिन टेक्नोलॉजी के जरिये रियल लाइफ प्रॉब्लम्स का हल निकालना मेरा पैशन बना रहा। विनीत और मोहन मेरे कॉलेज के दोस्त थे, जो अलग-अलग राज्यों से थे। सबके पास खास हुनर और पैशन था। हमने साथ में कई सॉफ्टवेयर्स बनाए। 2012 में हम तीनों ने फैसला किया कि इंटरनेट की मदद से कुछ नया करना है और इस तरह कॉबस्टर की शुरुआत हुई, जो एक बीटुबी प्रोक्यूरमेंट कंपनी है।

मेंटरशिप से बढ़ा हौसला

हमारी यूनिवर्सिटी में एक एंटरप्रेन्योरशिप सेल था, जिसमें काफी उद्यमी आते थे और उद्यमिता के साथ-साथ उससे होने वाले रोजगार सृजन के बारे में विस्तार से जानकारी देते थे। इससे मेरी दिलचस्पी उद्यमिता की ओर बढ़ती गई। कॉलेज की ओर से भी काफी सहयोग एवं प्रोत्साहन मिला। साथ ही, टाई (इंडिया) ने भी मार्गदर्शन किया। हमें कई कॉन्फ्रेंसेज में शामिल होने का अवसर मिला। ये सारे अनुभव एक से बढ़कर एक रहे और हमें खुद का स्टार्टअप लॉन्च करने के लिए प्रेरित किया। हमने देखा कि देश में ई-कॉमर्स का बाजार बढ़ रहा था, जो बीटुसी पर फोकस कर रहे थे। लेकिन जब ई-कॉमर्स इंडस्ट्री के वैश्विक मार्केट (चीन, जापान आदि) का विस्तार से अध्ययन किया, तो पाया कि पहले ग्राहक या ई-कॉमर्स किसी टेक्नोलॉजी को एडॉप्ट करते हैं, उसके बाद बिजनेस में उनका प्रयोग होता है। 2012 के उस दौर में हमने देखा कि कैसे भारत कंज्यूमर ई-कॉमर्स की ओर बढ़ रहा है, जिसमें आगे चलकर बिजनेस का रुझान भी ई-कॉमर्स की ओर बढ़ेगा, जिस तरह से यूएस, चीन या जापान में हुआ।

टीम हायरिंग रही सबसे बड़ी चुनौती

हमें दो-तीन प्रकार की चुनौतियों से जूझना पड़ा। तब देश में बीटुबी ई-कॉमर्स का कॉन्सेप्ट नहीं आया था, जिससे हमारे सामने कोई रोल मॉडल नहीं था। हमें ग्लोबल कंपनियों- स्टार्टअप्स का अध्ययन करना पड़ा। इसमें अच्छी बात यह रही कि यहां के मार्केट में हमारा कोई प्रतिस्पर्धी नहीं था। लेकिन सही टीम बनाना यानी हायरिंग करना दूसरी बड़ी चुनौती रही। खासकर एक स्टार्टअप के लिए कुशल कर्मी तलाश करना कहीं से आसान नहीं था। टैलेंट और पैशन के मिश्रण वाले लोग ढूंढ़ने में वक्त लगा। हमने काफी रेफरल हायरिंग की। तीसरी बड़ी बाधा, कॉरपोरेट्स को ऑनलाइन खरीदारी के लिए कनविंस करना था, क्योंकि अधिकांश कंपनियां ऑफलाइन खरीदारी करती थीं। हमें उन्हें ऑनलाइन प्रोक्यूरमेंट (ई-प्रोक्यूरमेंट) के बारे में समझाना पड़ा। 2015-16 आते-आते सरकार, भारतीय रेलवे ने भी इसे बढ़ावा देना शुरू कर दिया। इस तरह अब रास्ता काफी आसान हो चुका है।

छोटे-छोटे कदम से बढ़े आगे

नए स्टार्टअप व नए उद्यमियों पर निवेशकों या ग्राहकों का विश्वास जल्दी नहीं बन पाता। लेकिन जब वे आपके आइडिया और स्पष्ट विजन को देखते हैं, तो सम्मान हासिल करने में देर नहीं लगती। मेरा खुद का अनुभव कुछ ऐसा ही रहा है। आज सॉफ्टवेयर, लॉजिस्टिक से जुड़ी कई बड़ी कंपनियां हमारी कस्टमर हैं। हां, एक वक्त था जब हमारी कंपनी बूटस्ट्रैप्ड थी। हमने छोटे-छोटे कदमों से बड़े लक्ष्य हासिल किए। जैसे, शुरुआत के एक से डेढ़ वर्ष हमने पे-पाल कंपनी के दफ्तर से काम किया।

पेशेवर अनुभव से मिलती है मदद

मेरे जैसे फर्स्ट जेनरेशन एंटरप्रेन्योर्स के लिए पेशेवर अनुभव काफी आवश्यक होता है। इससे कंपनी का सांगठनिक ढांचा स्थापित करने, उसकी संस्कृति के निर्माण और संचालन आदि में मदद मिलती है। स्टार्टअप कंपनी में कार्य करना कॉरपोरेट्स से बिल्कुल अलग होता है। यहां पहले दिन से ब्यूरोक्रेसी या प्रशासनिक महकमे से संवाद करना पड़ता है। इसलिए मेंटरशिप अहम भूमिका निभाता है। बिजनेस वैसे भी अकेले के बस की बात नहीं। शुरुआती दौर में आपको एक अच्छी टीम चाहिए होती है, जिसमें सीनियर मैनेजमेंट से लेकर मेंटर्स हों। यहां हमें पूरी तैयारी के साथ आना चाहिए।


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