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NEET 2020: तमाम मुश्किलों के बावजूद किसान की बेटी चारुल होनरिया ने एम्स दिल्ली में बनायी जगह

NEET 2020 चारुल होनरिया ने देश की कठिनतम परीक्षाओं में से एक मानी जाने वाली नेशनल इलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट 2020 यानि नीट 2020 परीक्षा की कड़ी प्रतियोगिता में गरीबी समेत जीवन की अन्य कठिनाईयों को झेलते हुए सफलता प्राप्त की है।

By Rishi SonwalEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 12:46 PM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 12:50 PM (IST)
चारुल होनरिया को नीट 2020 परीक्षा में कटेगरी रैंक 10 और ऑल इंडिया रैंक 631 प्राप्त हई।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। NEET 2020: “मैने कभी किसी नकारात्मक सोच को अपने पर हावी नहीं होने दिया। मै हमेशा से मानती थी कि मुझे सफलता जरूर मिलेगी। यहीं मेरी सफलता का मूल मंत्र है।“ यह कहना है नीट 2020 परीक्षा में कटेगरी रैंक 10 और ऑल इंडिया रैंक 631 प्राप्त सफल उम्मीदवार चारुल होनरिया का। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक किसान की बेटी चारुल होनरिया ने तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने लगातार प्रयासों के चलते नीट 2020 परीक्षा में सफलता प्राप्त की। चारुल होनरिया ने देश की कठिनतम परीक्षाओं में से एक मानी जाने वाले नेशनल इलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट 2020 यानि नीट 2020 परीक्षा की कड़ी प्रतियोगिता में गरीबी समेत जीवन की अन्य कठिनाईयों को झेलते हुए सफलता प्राप्त की है। अपने दूसरे प्रयास में इस मुकाम पर पहुचने वाली चारुल को एम्स नई दिल्ली में एमबीबीएस की सीट प्राप्त हुई है।

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खेती करके परिवार का गुजारा करने वाले चारुल के पिता पूरे साल मेहनत करके कुल 7 सदस्यों के परिवार के लिए महज 1 लाख सालाना की आय ही जुटा पाते हैं। हालांकि, इन कठिनाईयों के बावजूद चारुल के पिता अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए हमेशा समर्पित रहे और उन्होंने अपने बच्चों के सपनों पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं लगने दिया। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए चारुल ने बताया कि वे आम स्टूडेंट थीं लेकिन सीखने की आकाक्षा हमेशा उनके अंदर रही। अपने इसी उत्साह के चलते चारुल को छठीं कक्षा में विद्या-ज्ञान दाखिला मिला। विशेषतौर पर अंग्रेजी भाषा में कमजोर चारुल को विद्या-ज्ञान में टीचर्स का न सिर्फ पढ़ाई को लेकर काफी सहयोग मिला, बल्कि उन्होंने चारुल को विश्वास दिलाया कि कैसे शिक्षा से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

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अपने स्कूल के दिनों के बारे में बताते हुए चारुल ने कहा, “विद्या-ज्ञान में शिक्षा के दौरान उनके काफी मदद मिली। यदि मैं यहां नहीं पढ़ती तो गांव के स्कूल में ही पढ़ाई पूरी करती और शायद मुझे स्नातक के लिए खर्च मिला। जिसे पूरा करके मै कहीं छोटी-मोटी जॉब कर रही होती। लेकिन स्कूल में मिले एक्पोजर की वजह से मुझे एहसास हुआ कि मै बहुत कुछ बन सकती हूं।“

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