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JNU दीक्षांत समारोह में बोले नायडू, देश को ज्ञान का वैश्विक केंद्र बनाने को शिक्षा प्रणाली में लाएं बदलाव

उन्होंने कहा कि भारत को एक समय विश्व गुरु माना जाता था। अब समय आ गया है कि भारत एक बार फिर शिक्षण के वैश्विक केंद्र के रूप में उभर कर सामने आए।

By Neel RajputEdited By: Published: Tue, 12 Nov 2019 09:51 AM (IST)Updated: Tue, 12 Nov 2019 09:51 AM (IST)
JNU दीक्षांत समारोह में बोले नायडू, देश को ज्ञान का वैश्विक केंद्र बनाने को शिक्षा प्रणाली में लाएं बदलाव
JNU दीक्षांत समारोह में बोले नायडू, देश को ज्ञान का वैश्विक केंद्र बनाने को शिक्षा प्रणाली में लाएं बदलाव

नई दिल्ली,  जागरण संवाददाता। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के तीसरे दीक्षा समारोह का आयोजन सोमवार को किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू पहुंचे। दीक्षा समारोह में कुल 430 पीएचडी के छात्रों को डिग्री प्रदान की गई।

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इस मौके पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत को ज्ञान एवं नवाचार का अग्रणी केंद्र बनाने के लिए शिक्षण से लेकर अनुसंधान तक की समूची शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव लाना होगा। भारत को एक समय विश्व गुरु माना जाता था। अब समय आ गया है कि भारत एक बार फिर शिक्षण के वैश्विक केंद्र के रूप में उभर कर सामने आए। विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की विधियों में पूरी तरह से बदलाव लाया जाना चाहिए। जेएनयू के साथ-साथ देश के अन्य विश्वविद्यालयों को भी स्वयं को शीर्ष रैंकिंग वाले वैश्विक संस्थानों में शामिल करने के लिए अथक प्रयास करने चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति ने हमेशा शिक्षा के समग्र एकीकृत दृष्टिकोण पर विशेष जोर दिया है। जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों से देश की ताकत और कौशल स्तर को बढ़ाना चाहिए। इसके लिए सर्वागीण उत्कृष्टता और वैश्विक एजेंडे का नेतृत्व करने की क्षमता हमारा लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने देश के उच्च शिक्षण संस्थानों से विश्व के सवरेत्तम संस्थानों से सीखने और सवरेत्तम प्रथाओं को अपनाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि एक सभ्यता के रूप में हम सबसे ग्रहणशील समाजों में से एक हैं, जिसने विश्व भर के अच्छे विचारों का स्वागत किया है। भारत विकास के अनूठे पथ पर अग्रसर है। इस प्रयास में योगदान करने के लिए छात्रों के पास अनंत अवसर हैं। देश की आबादी में दो तिहाई युवा ही हैं, इसलिए

गुणवत्तापूर्ण कौशल विकास और उच्च शिक्षण सुविधाओं तक उनकी पहुंच निश्चित तौर पर होनी चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने छात्रों को याद दिलाया कि वे महान संस्कृति और एक बहुलवादी एवं समग्र वैश्विक दृष्टिकोण के उत्तराधिकारी हैं। उन्होंने छात्रों को इस विरासत के उत्कृष्ट पहलुओं की अच्छी समझ विकसित करने और उनका संरक्षण और व्यापक प्रचार-प्रसार करने की सलाह दी। छात्रों को अपने आस-पास रहने वाले लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए अपने ज्ञान एवं विवेक का उपयोग करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहने को कहा।

उपराष्ट्रपति ने महिलाओं के साथ-साथ हाशिये पर खड़े छात्रों के लिए विशेष दाखिला नीति अपनाने के लिए जेएनयू की सराहना की। उन्होंने दसवीं तक की शिक्षा मातृभाषा में देने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों को अतिरिक्त प्रोत्साहन देना चाहिए। इस अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, जेएनयू के कुलाधिपति विजय कुमार सारस्वत और कुलपति प्रो. एम जगदीश कुमार समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे।


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