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DU Admission 2019ः दिल्ली हाई कोर्ट से छात्रों को बड़ी राहत, अब इन मानदंडों के आधार पर करा सकेंगे एडमिशन

हाई कोर्ट ने छात्रों को बड़ी राहत देते हुए पिछले साल के योग्यता मानदंडों के आधार पर स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आवेदन की अनुमति दे दी है।

By Neel RajputEdited By: Published: Fri, 14 Jun 2019 03:09 PM (IST)Updated: Sat, 15 Jun 2019 07:40 AM (IST)
DU Admission 2019ः दिल्ली हाई कोर्ट से छात्रों को बड़ी राहत, अब इन मानदंडों के आधार पर करा सकेंगे एडमिशन
DU Admission 2019ः दिल्ली हाई कोर्ट से छात्रों को बड़ी राहत, अब इन मानदंडों के आधार पर करा सकेंगे एडमिशन

नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के नियमों को बदलने के डीयू प्रशासन के फैसले को हाई कोर्ट ने रद कर दिया। न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा व तलवंत सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि वर्तमान शैक्षणिक सत्र में डीयू के विभिन्न स्नातक पाठ्यक्रमों में पिछले साल के पात्रता मानदंडों के आधार पर ही प्रवेश होगा। पीठ ने डीयू प्रशासन को रजिस्ट्रेशन की तारीख को 14 जून से बढ़ाकर 22 जून तक करने के निर्देश भी दिए।

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पीठ ने यह भी कहा कि यह आदेश इस वर्ष पर ही लागू होगा, अगर डीयू प्रशासन अगले शैक्षणिक सत्र में नियमों में संशोधन करना चाहता है तो कर सकता है। दो सदस्यीय पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान डीयू प्रशासन के फैसले पर सवाल उठाए। पीठ ने कहा कि नियम में संशोधन का फैसला पहले लिया जा सकता था। कोई यह नहीं कह रहा है कि आपका फैसला सही नहीं है, बल्कि इसका समय सही नहीं है। शैक्षणिक स्तर बढ़ाने के लिए डीयू प्रशासन को कोई नहीं रोक रहा है, लेकिन रजिस्ट्रेशन से एक दिन पहले नियमों में बदलाव पर सवाल उठ रहे हैं।

तीन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने डीयू प्रशासन से पूछा कि क्या आप एक दिन पहले ऐसा कर सकते हैं। पीठ ने यह कहते हुए याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि आपको एक महीने पहले छात्रों को नोटिस देना चाहिए था। उधर, अपने फैसले का बचाव करते हुए डीयू प्रशासन ने दलील दी कि वह प्रत्येक वर्ष कोर्स के लिए योग्यता श्रेणी में बदलाव करता है और बुलेटिन ऑफ इनफॉर्मेशन (बीआइएस) में दिए गए मापदंड शैक्षणिक सत्र के लिए होते हैं, न कि हमेशा के लिए। इसलिए बीआइएस में बदलाव के संबंध में पहले से नोटिस देना जरूरी नहीं है।

नए नियमों से किसी छात्र को परेशानी नहीं होगी और अगर किसी को होती है तो वह डीयू की शिकायत कमेटी या फिर अदालत का रुख कर सकता है। डीयू ने इन दलीलों के साथ पीठ से आग्रह किया कि वह इस फैसले में हस्तक्षेप न करे, नहीं तो वर्तमान वर्ष का पूरा शैक्षणिक टाइम-टेबल बिगड़ जाएगा।

याचिका में कहा गया कि बेस्ट ऑफ फोर में एक फीसद का आएगा अंतर
बीकॉम (ऑनर्स), बीए (ऑनर्स) अर्थशास्त्र समेत कई स्नातक कोर्स की योग्यता श्रेणी में बदलाव करने के फैसले के खिलाफ दो जनहित याचिकाएं व एक छात्रा की तरफ से याचिका दायर की गई है। बेटी की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता अनुपम श्रीवास्तव ने कहा कि अगर शीर्ष चार विषयों में गणित को शामिल किया गया तो उनकी बेटी के बेस्ट ऑफ फोर में एक फीसद से अधिक का अंतर आ जाएगा। डीयू के शीर्ष कॉलेज में दाखिला एक फीसद से कम अंक होने पर भी नहीं मिल पाता। नियमों में किया गया बदलाव मनमाना व असंवैधानिक है।

नए मानदंड रद करने की मांग
अधिवक्ता चरणपाल सिंह बागरी ने याचिका में दावा किया कि अंतिम समय में नियमों में संशोधन करने का फैसला स्वाभाविक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। पिछले साल तक अगर किसी छात्र को गणित में 50 फीसद अंक आते थे तो वह अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स में आवेदन कर सकता था, लेकिन इस साल बेस्ट ऑफ फोर के लिए गणित के अंकों को अनिवार्य कर दिया गया है। इसका मतलब है कि गणित शीर्ष चार विषयों में से एक होगा और इनके कुल जोड़ को दाखिले का आधार माना जाएगा।

इसी तरह से बीकॉम ऑनर्स में किसी छात्र के लिए गणित- बिजनेस मैथमैटिक्स के कुल जोड़ 45 फीसद अंक के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। इस साल इस मानदंड में संशोधन किया गया है, जिसकी नई शर्तो के मुताबकि छात्र को गणित-बिजनेस मैथमैटिक्स में 50 फीसद या अधिक अंक के साथ पास होना चाहिए और कुल जोड़ अंक 60 फीसद होना चाहिए। याचिका में नए मानदंड को रद करने की मांग की गई है।


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