दिल्ली विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर विवाद, नक्सलवाद की किताब पर शिक्षक आमने-सामने
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में कुछ विभागों के कोर्से के पाठ्यक्रम बदलने को लेकर राजनीति शुरू हो गई है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में कुछ विभागों के कोर्से के पाठ्यक्रम बदलने को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। डीयू के अकादमिक सदस्य एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। सोमवार को डीयू ओवरसाइट कमेटी ने महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए इंग्लिश, हिस्ट्री, पॉलिटिकल साइंस और सोशियोलॉजी जैसे चार विभागों के एक सेमेस्टर के पाठ्यक्रम को पास कर दिया।
डीयू के अकादमिक परिषद (एसी) के सदस्य डॉ. रसाल सिंह ने बताया कि कमेटी ने चारों विभागों के कोर्स के पाठ्यक्रम के शेष पांच सेमेस्टर को फिर से विभागों को भेज दिया है। पांचों सेमेस्टर को एक महीने के लिए डीयू की वेबसाइट पर डालकर अधिक से अधिक शिक्षकों, अन्य हितधारकों, छात्रों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए इनमें व्यापक संशोधन करने की भी विभागों को हिदायत गई है। इन पाठ्यक्रमों में विभाजनकारी और विवादास्पद सामग्री मौजूद है। उसे हटाया जाए और इनकी जगह भारतीय पाठ्यक्रम को तरजीह देने की सलाह कमेटी ने दी है।
164 अंग्रेजी के शिक्षकों ने डीयू कुलपति को लिखा पत्र
डीयू के 164 अंग्रेजी के शिक्षकों ने कुलपति प्रो. योगेश त्यागी को रविवार को पत्र लिखा। इसमें आरोप लगाया है कि डीयू की राइट विंग के शिक्षक संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एनडीटीएफ) से जुड़े आठ सदस्यों ने पाठ्यक्रम बदलने पर आपत्ति दर्ज कराई है। ये सदस्य गलत सूचनाएं डीयू में फैला रहे हैं। वहीं, इस मामले में एनडीटीएफ के अध्यक्ष प्रो. राकेश पांडेय ने इन शिक्षकों के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि चारों विभागों के कोर्स के पाठ्यक्रम में कुछ विवादित सामग्री मौजूद थी, जिस पर आपत्ति दर्ज कराई गई थी और उन्हें बदलने के लिए वापस भेजा गया था।
नक्सलवाद पर लिखी गई किताब सिलेबस में नहीं होगी शामिल
डॉ. रसाल सिंह ने बताया कि पिछले वर्ष प्रो. नंदिनी सुंदर की नक्सलवाद पर लिखी गई किताब को डीयू के हिस्ट्री के कोर्स के पाठ्यक्रम में शमिल करने का मामला सामने आया था, तब इस पर काफी विवाद हुआ था, जिसके बाद किताब को हटाने का फैसला किया गया लेकिन इस किताब को फिर से शामिल करने के लिए लाया गया है। इसे पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करना चाहिए। पॉलिटिकल साइंस के पहले समेस्टर में प्रो. सुंदर का एक आलेख था, जिसे हटा दिया गया है। डॉ. रसाल ने कहा कि नक्सलवाद पर लिखी गई नंदिनी सुंदर की पुस्तक ‘सबाल्टर्न एंड सॉवरेन: एन एंथ्रोपोलॉजिकल हिस्ट्री ऑफ बस्तर’ को इस विभाग के पाठ्यक्रम में तीसरे सेमेस्टर के बाद शामिल करने के लिए लाया गया था।
डॉ. रसाल सिंह ने कहा कि इन चारों विभागों के पाठ्यक्रमों की संशोधन प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा शिक्षकों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए इन्हें समावेशी, संवादपूर्ण बनाया जाना चाहिए। साथ ही इन्हें वामपंथ शिकंजे से मुक्त करने की भी आवश्यकता है।
(Photo Credit- Delhi University)
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