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पांच साल में 7248 छात्रों ने IIT को कहा बाय, जानें-इतने बड़े संस्थानों को क्यों छोड़ रहे स्टूडेंट

स्टूडेंट्स कई सालों की मेहनत के बाद आईआईटी में प्रवेश ले पाते हैं। इसके बाद भी पांच साल में 7248 बच्चों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी जानें एक्सपर्ट की राय में इसके कारण...

By Rajat SinghEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 05:02 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 09:29 AM (IST)
पांच साल में 7248 छात्रों ने IIT को कहा बाय, जानें-इतने बड़े संस्थानों को क्यों छोड़ रहे स्टूडेंट
पांच साल में 7248 छात्रों ने IIT को कहा बाय, जानें-इतने बड़े संस्थानों को क्यों छोड़ रहे स्टूडेंट

नई दिल्ली, (रजत सिंह)। देश के प्रतिष्ठित टेक्नोलॉजी संस्थान आईआईटी से पिछले पांच साल में 7,248 स्टूडेंट्स ड्रॉप आउट हो चुके हैं। सीधे शब्दों में कहें तो पिछले पांच साल में सात हजार से अधिक छात्रों ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इस बात की जानकारी भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने लोकसभा में दी। 

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अब सवाल है कि आखिरी बच्चे ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश के बाद इन्हें छोड़ क्यों देते हैं? जिन संस्थानों में एडमिशन के लिए लाखों बच्चे साल दर साल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते हैं, एडमिशन के बाद बीच कोर्स में ही साथ क्यों छोड़ देते हैं? इस सिलसिले में हमने आईआईटी गुवाहाटी के असिस्टेंट प्रोफेसर बृजेश राय से बात की।

कमजोर बच्चों पर दवाब- प्रोफेसर राय ने बताया कि बच्चों को छोड़ने के पीछे सबसे बड़ी वजह है एजुकेशनल प्रेशर यानी पढ़ाई का दबाव। जो बच्चे ग्रामीण परिवेश या पिछड़े बैकग्राउंड से आते हैं, उनके लिए प्रवेश बाद इस प्रेशर को संभालना मुश्किल होता है। वे फेल हो जाते हैं। पहले सेमेस्टर में फेल होने के बाद प्रेशर और बढ़ जाता है, ऐसे में वे छोड़ने का फैसला कर लेते हैं। आईआईटी में पहले ऐसे कमजोर बच्चों के लिए प्रोग्राम चलाए जाते थे। हालांकि, अब इन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।

बढ़ता बैकलॉग- बैकलॉग भी इसके पीछे एक वजह है। जो बच्चा एक बार फेल हो जाता है, उसे फिर जूनियर्स के साथ बैठना पड़ता है। ऐसे में उन पर एक किस्म का मानसिक दबाव होता है। ऐसे में वह क्लास लेना बंद कर देते हैं। इसके बाद अनुपस्थिति भी एक वजह बन जाती है।

भाषा भी है वजह- स्टूडेंट्स के ड्राप आउट के पीछे भाषा भी एक बड़ी वजह है। कई बच्चे हिंदी मीडियम से आईआईटी में प्रवेश लेते हैं। जबकि, आईआईटी का कोर्स अंग्रेजी में है। विषय और लेक्चर दोनों ही अलग भाषा में होने की वजह से छात्रों काफी समस्या होती है। ग्रामीण परिवेश से आएं छात्रों के सामने कल्चर और लैग्वेंज का अंतर दोनों एक साथ सामने आता है, ऐसे में वह दबाव में आ जाते हैं।

फीस- हाल के दिनों में आईआईटी कैंपस में बढ़ी हुई फीस को लेकर प्रदर्शन भी हुए। हालांकि, प्रोफेसर बृजेश राय इसे बड़ी वजह नहीं मानते। उनका कहना है कि आरक्षित वर्ग के बच्चों की फीस माफ़ है। बाकि जो बच्चे फीस दे रहे हैं, उन्हें परिवार, रिश्तेदार और बैंक से आसानी से पैसे मिल जाते हैं। अभी तक इस ड्रॉप आउट में फीस बड़ी वजह नहीं है। हालांकि, इसके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता।

गेट भी है बड़ी वजह- हालांकि जो छात्र इन संस्थानों से ग्रेजुएट होने के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन लेते हैं, उनकी राह में गेट की परीक्षा भी एक वजह बन जाती है। पब्लिक सेक्टर के कई बड़े संस्थान गेट परीक्षा के मार्क्स के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करते हैं। ऐसे में बच्चे पहले कोर्स में एडमिशन ले लेते हैं,  इसके बाद जब उनका सिलेक्शन सरकारी नौकरी में हो जाता है, तो वे नौकरी को अक्सर पहली वरीयता देते हैं।

नहीं चौंकाते ये आंकड़े- प्रोफेसर बृजेश राय इस आंकड़े को चौंकाने वाला नहीं मानते हैं। उनके मुताबिक, देश में कुल 23 आईआईटी हैं। ऐसे में औसतन एक आईआईटी से करीब 315 बच्चे पांच साल में ड्रॉप आउट होते हैं। इस तरह एक साल में करीब 63 बच्चे कोर्स छोड़ देते हैं। बड़े आईआईटी में इन पांच सालों में आठ से 10 हजार बच्चे पढ़ाई करते हैं। ऐसे में 63 बच्चों के ड्रॉप आउट का आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं है।


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