जानें प्राथमिकता के आधार पर कैसे निखारें अपना कौशल और पाएं एक अच्छी नौकरी
सरकार संस्थानों और खुद युवाओं को इंडस्ट्री के मुताबिक बदलने की जरूरत है। उत्साह के साथ अपडेटेड स्किल के लिए तत्पर रहने वाले युवाओं का इंडस्ट्री भी आगे बढ़कर स्वागत करती है।
अरूण श्रीवास्तव। हाल ही में दिग्गज अमेरिकी आइटी कंपनी आइबीएम की प्रेसिडेंट और चीफ एग्जीक्यूटिव गिन्नी रोमेटी ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया। रोमिटी ने कहा कि, ज्यादातर भारतीय युवाओं को नौकरी इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि उनके पास इसके लिए जरूरी स्किल नहीं है। यह स्थिति तब और चिंताजनक है, जब नए जमाने के रोजगार कहीं ज्यादा सृजित हो रहे हैं।
हालांकि रोमेटी का यह वक्तव्य इसलिए हैरान नहीं करता है, क्योंकि बीते कुछ सालों में इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोग स्किल की कमी को लेकर लगातार चिंता जताते रहे हैं। हां, हैरानी सिर्फ इस बात की है कि इन चिंताओं और देश में बेरोजगारी की भयावह होती स्थिति के बावजूद सरकार, जिम्मेदार संस्थाओं और कॉलेजों-विश्वविद्यालयों द्वारा युवाओं को रोजगार-सक्षम बनाने और रोजगार दिलाने की दिशा में कोई ठोस/कारगर कदम नहीं उठाये जा सके। हालांकि यह मुद्दा पिछले कुछ सालों से हर किसी को लगातार मथ रहा है। सरकारों की तरफ से कारगर कदम उठाने की बजाय नारों पर कहीं ज्यादा ध्यान देने की कवायद की गई।
युवा-शक्ति को जॉब की जरूरत:
इकोनॉमिक थिंक टैंक सीएमआइई डाटा के अनुसार (फरवरी 2019 की स्थिति के अनुसार) फिलहाल देश के करीब 3.12 करोड़ युवा सक्रियता के साथ नौकरी तलाश रहे हैं। उल्लेखनीय है कि देश की तकरीबन 1.35 अरब की आबादी में से 35 साल से कम युवाओं की संख्या 60 प्रतिशत है। सरकार और संस्थाओं द्वारा अक्सर इस युवा-शक्ति पर गर्व किया जाता रहा है, लेकिन विडंबना यह है कि देश के युवाओं को समुचित रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया।
सवालों के बीच कौशल योजनाएं:
पिछले करीब दस-बारह वर्षों से देश के युवाओं को रोजगार-सक्षम बनाने के लिए तमाम योजनाएं चलाई गईं। इसके लिए कई संस्थाएं भी गठित की गईं और उनका खूब शोर भी मचाया गया। इसमें सबसे प्रमुख नाम है एनएसडीसी यानी नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन। जुलाई 2008 में इस संस्था का गठन ही देश में कौशल विकास को ध्यान में रखकर किया गया। इसकी देखरेख में हाल के कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और उड़ान सहित कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं। आज जबकि रोजगार को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठाए जा रहे हैं, तो ऐसे में NSDS के आंकड़े ही उस पर प्रश्न उठाने के लिए काफी हैं।
ये रहे NSDC आंकड़े
इतने सालों में NSDC के जरिए केवल करीब 10 लाख 84 हजार प्लेसमेंट उपलब्ध कराए जा सके। ये आंकड़े खुद इसकी वेबसाइट पर ही दिए गए हैं। सवाल यह है कि जो संस्थान देश के करीब 602 जिलों में 449 ट्रेनिंग पार्टनर्स के जरिए 6701 ट्रेनिंग सेंटर संचालित कर रहा है, उसके माध्यम से इतने वर्षों में सिर्फ 11 लाख रोजगार उपलब्ध करा पाना इस संस्था के औचित्य पर सवाल उठाने के लिए काफी है। आप खुद सोचें-देखें कि हाल में आप में से कितने लोगों ने एनएसडीसी की योजनाओं के बारे में सुना-जाना है। क्या इसका कोई आकर्षक विज्ञापन आपको दिखा है?
आप ऐसे कितने लोगों को जानते हैं, जिन्हें इसके ट्रेनिंग पार्टनर या ट्रेनिंग सेंटर के जरिए नौकरी मिली हो? जाहिर-सी बात है कि चैनल पार्टनर्स और सेंटर चलाने वाले इंस्टीट्यूट्स के साथ कहीं न कहीं पारदर्शिता का अभाव रहा है। अगर ऐसा नहीं होता और ये इंस्टीट्यूट ईमानदारी के साथ संचालित किए जा रहे होते, तो अब तक देश के करोड़ों युवाओं को जॉब मिल चुका होता और रोजगार को लेकर इतना हो-हल्ला नहीं मच रहा होता ताज्जुब की बात यह है कि देश के युवाओं को स्किल्ड बनाने और रोजगार उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय भी गठित किया गया है, लेकिन यह मंत्रालय भी रोजगार उपलब्धता की दिशा में कोई कारगर कदम उठाने में सफल नहीं रहा है।
इंडस्ट्री-शिक्षण संस्थानों से गठजोड़ का अभाव:
कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय, NSDC सहित केंद्र और तमाम राज्य सरकारों द्वारा स्किल डेवलपमेंट और रोजगार उपलब्ध कराने के मोर्चे पर तमाम दावे और कथित प्रयास व्यावहारिक न होने के कारण ही कारगर नहीं रहे हैं। इन प्रयासों और नीतियों पर करोड़ों-अरबों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद नतीजा सिफर ही रहा है। होना तो यह चाहिए था कि इस तरह के प्रयासों में कथित इंस्टीट्यूट्स की बजाय इंडस्ट्री और शिक्षण संस्थानों को सक्रिय रूप से साथ जोड़ा जाता। मंत्रालय, एनएसडीसी, एआइसीटीई द्वारा विश्वविद्यालयों-कॉलेजों आदि को अनिवार्य रूप से बाध्य किया जाता कि वे अपने स्टूडेंट्स को समुचित प्रशिक्षण दिलाने के लिए उद्योगों के साथ टाई-अप करें।
इसके लिए उद्योग संगठनों (फिक्की FICCI, ASSOCHAM आदि) के जरिए उद्योगों को भी प्रेरित किया जाता कि वे शिक्षण संस्थानों से जुड़ने में रुचि लें और उनके स्टूडेंट्स को अपने यहां प्रशिक्षण का भरपूर मौका दें। अभी भी इसमें देर नहीं हुई है। जब जागे, तभी सवेरा के तहत अभी भी उद्योग और शिक्षण संस्थान इस दिशा में कारगर पहल कर सकते हैं।
खुद भी करें पहल:
अंडर-ग्रेजुएट कोर्सों में पढ़ रहे युवा भविष्य में बेहतर रोजगार हासिल करने के लिए सिर्फ सरकारी योजनाओं और अपने शिक्षण संस्थान के प्लेसमेंट सेल के भरोसे रहने की बजाय खुद भी पहल करते हुए अपनी पसंद की इंडस्ट्री से जुड़ने का सतत प्रयास करें। इसके लिए आप अपने कॉलेज/ विश्वविद्यालय को विश्वास में लेकर आगे बढ़ें। छुट्टियों और पार्टटाइम में आप अपने निकटवर्ती उद्योग में जाकर संपर्क करें। एक जगह काम न बने, तो दूसरी जगह प्रयास करें। इंटर्नशिप की कागजी खानापूरी करने की बजाय आप इंडस्ट्री से व्यावहारिक/प्रैक्टिकल ट्रेनिंग हासिल करने की पहल करें। एक बार मौका मिल जाने के बाद विनम्रता के साथ ज्यादा से ज्यादा सीखने और अपनी मेहनत-लगन से वहां के लोगों को प्रभावित करने का प्रयास करें, ताकि वे आपको सिखाने में उत्साह के साथ रुचि लें।
उत्साह का रंग:
आप सभी आज इंटरनेट और सोशल साइट की दुनिया से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। इसलिए खुद विचार करें और इन माध्यमों का इस्तेमाल खुद को अपडेट और अपग्रेड करने के लिए करें।
ध्यान देने योग्य बातें
- इकोनॉमिक थिंक टैंक सीएमआइई डाटा के अनुसार, फिलहाल देश के करीब 3.12 करोड़ युवा सक्रियता के साथ नौकरी तलाश रहे हैं।
- देश की तकरीबन 1.35 अरब की आबादी में से 35 साल से कम युवाओं की संख्या 60 प्रतिशत है।
- अंडर-ग्रेजुएट कोर्सों में पढ़ रहे युवा भविष्य में बेहतर रोजगार हासिल करने के लिए सिर्फ प्लेसमेंट सेल के भरोसे रहने की बजाय खुद भी पहल करते हुए अपनी पसंद की इंडस्ट्री से जुड़ने का सतत प्रयास करें।
- आप सभी आज इंटरनेट और सोशल साइट की दुनिया से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। इन माध्यमों का इस्तेमाल खुद को अपडेट और अपग्रेड करने के लिए करें।