स्कूली शिक्षा से लेकर हायर एजुकेशन को कम खर्च में कैसे बनाएं स्मार्ट और उपयोगी
डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से स्कूली शिक्षा से लेकर हायर एजुकेशन तक को कम खर्च में स्मार्ट और उपयोगी बनाया जा सकता है।
[अरुण श्रीवास्तव]। डिजिटाइशेन की दिशा में सरकार ने पिछले स्मार्ट हो एजुकेशन कुछ वर्षों में काफी प्रयास किए हैं, जिसके बेहतर नतीजे भी दिख रहे हैं। पर शिक्षा के क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारें अभी इसका उतना इस्तेमाल नहीं कर सकी हैं। हालांकि निजी क्षेत्र के संस्थान इसमें काफी आगे हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म की मदद से स्कूली शिक्षा से लेकर हायर एजुकेशन तक को कम खर्च में कितना स्मार्ट और उपयोगी बनाया जा सकता है, आइए जानते हैं-
हम सभी आज अखबारों, टीवी और पोर्टल्स पर बायजू के विज्ञापन खूब देखते, लेकिन आप में से कम लोग ही जानते होंगे कि बायजू का सबसे ज्यादा फोकस ऑनलाइन एजुकेशन और कोचिंग पर ही है। चूंकि बायजू के विज्ञापन आज हर कहीं दिखते हैं, इसलिए इसके बारे में ज्यादातर लोगों को पता है। पर आज के समय में इसके अलावा ऐसे सैकड़ों यूट्यूब चैनल हैं, जो बिना किसी प्रचार-प्रसार या विज्ञापन के तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इनमें खान एकेडमी भी आज एक बड़ा नाम है। इनमें से ज्यादातर स्कूली शिक्षा से लेकर कॉम्पिटिशन तक की तैयारी करा रहे हैं। इनके डिजिटल होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इनके क्लास एक ही जगह चलते हैं और उनके ऑडियो वीडियो देश-विदेश में दिखाई देते हैं।
सबसे बड़ी बात यह कि इनमें से कई चैनल तो मुफ्त हैं, जो दूर-दराज के उन स्टूडेंट्स के लिए किसी वरदान से कम नहीं, जो किसी बड़े शहर में जाकर महंगी कोचिंग करने में सक्षम नहीं हैं। अच्छी बात यह भी है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म मिल जाने से अब ऐसे लोग भी यूट्यूब और फेसबुक पर अपनी नॉलेज का मुफ्त लाभ देने लगे हैं।
टीचर्स को बनाएं टेकसेवी
आज जब इंटरनेट और स्मार्टफोन के जरिए डिजिटल प्लेटफॉर्म की दूर-दराज तक पहुंच आसान हो गई है, ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार के विद्यालयों में इसका भरपूर इस्तेमाल न होना हैरान करता है। जो शिक्षक हैं भी, वक्त के साथ अपग्रेड न होने के कारण वे विद्यार्थियों का समुचित मार्गदर्शन करने में सक्षम साबित नहीं हो पा रहे हैं।
टैलेंटेड टीचर्स का बने पूल
ऐसा नहीं है कि देश के शिक्षकों में काबिलियत नहीं है या फिर वे अपने पेशे को लेकर ईमानदार नहीं हैं। जिस तरह निजी कंपनियां टैलेंटेड लोगों को एकजुट करके उनके क्लासेज के वीडियो बनाकर यूट्यूब चैनल पर चलाकर स्टूडेंट्स का मार्गदर्शन कर रही हैं, उसी तर्ज पर शिक्षा विभागों को भी पहल करनी चाहिए।
संवाद को मिले बढ़ावा
इसे और इनोवेटिव बनाते हुए ऑनलाइन अध्यापक-छात्र संवाद में भी बदला जा सकता है, ताकि छात्र अपनी शंकाओं का समाधान सीधे विषय विशेषज्ञ अध्यापक से हासिल कर सकें। करके सीखने पर हो जोर स्कूलों में प्रारंभिक स्तर से ही रटने वाली पढ़ाई की बजाय ‘करके सीखने’ या खेल-खेल में सीखने पर जोर दिया जाना चाहिए। दुनिया के कई देशों में यह प्रणाली कामयाबी के साथ संचालित की जा रही है। हम सबने ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म में लद्दाख में चल रहे स्कूल में इसका नमूना देखा है। हालांकि वहां इसे वास्तविक रूप में संचालित करने वाले सोनम वांगचुक इसी दिशा में लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन इसे देश भर में अपनाने की जरूरत है। इसका फायदा यह होगा कि बच्चों के भीतर शुरू से ही जानने की जिज्ञासा होगी और करके सीखने के कारण उनमें शुरुआत से ही इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह बड़े होने पर वे विभिन्न क्षेत्रों में अपने शोध से देश को अलग पहचान दिला सकेंगे। आज हम जो देश को नोबेल या वैश्विक स्तर के अन्य पुरस्कार पर्याप्त संख्या में न मिलने पर हैरानी जताते हैं, तब वह भी दूर हो सकेगी। इसके लिए माता-पिता, शिक्षक, शिक्षण संस्थानों और सरकार सभी को मिलजुल कर प्रयास करने होंगे। हम सब अपने साथ-साथ समाज और देश को भी तो ज्यादा से ज्यादा सक्षम व मजबूत बनाना चाहते हैं।