यूनिवर्सिटी की डिग्री मिलने में हो रही परेशानी तो उठाएं ये कदम, तुरत मिल जाएगी
बिहार के विश्वविद्यालयों में अगर आपको अपनी डिग्री प्राप्त करने में परेशानी हो रही हो तो आप आरटीआइ का प्रयोग कर सकते हैं। हाल में 43 छात्रों को इसकी मदद से डिग्रियां मिलीं हैं।
पटना [दीनानाथ साहनी]। बिहार के विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक एवं वित्तीय अराजकता आम बात है। अब छात्रों को अपनी पढ़ाई के बाद डिग्रियों को पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। नमूना देखिए इन विश्वविद्यालयों के छात्र कई वर्ष पहले पढ़ाई पूरी करने के बाद भी नौकरियां इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि विश्वविद्यालय ने उन छात्रों को डिग्री ही नहीं दीं।
थक-हार कर छात्रों ने लोक सूचना के अधिकार (आरटीआइ) का सहारा लिया। कई बार तो छात्रों को न्यायालय की शरण में जाने को मजबूर होना पड़ा है तब उन्हें डिग्रियां नसीब हुई हैं।
हाल में 43 छात्र-छात्राओं को लोक सूचना के अधिकार (आरटीआइ) की मदद से डिग्रियां मिलीं हैं। ऐसे मामलों में 13 लोक सूचना अधिकारियों पर 25-25 हजार रुपये के आर्थिक दंड भी लगाया गया है।
बिहार राज्य सूचना आयोग ने भी छात्रों के हित से जुड़े मामलों में नरम रुख अपना रखा है। मुख्य सूचना आयुक्त अशोक कुमार सिन्हा शिक्षा से जुड़े मामलों की सुनवाई एवं निष्पादन को प्राथमिकता दे रहे हैं। अच्छी बात यह है कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में आरटीआइ कानून का असर दिखने लगा है। खासतौर से जरूरतमंद छात्रों को न्याय दिलाने में आरटीआइ कानून काफी प्रभावी साबित हो रहा है।
इसी का नतीजा है कि पढ़ाई पूरा करने के बाद भी चार-चार, पांच-पांच साल से अपनी डिग्रियों के लिए भटक रहे स्नातक, एमए, एलएलबी तथा एमबीए के छात्रों को इसी कानून से बड़ी राहत मिली है। वैसे कई विवि प्रशासन ने आयोग के सख्त रुख को देखते हुए संकल्प लिया है कि छात्रों को समय से डिग्री उपलब्ध कराएंगे ताकि उन्हें डिग्री पाने के लिए आरटीआइ का सहारा नहीं लेना पड़ा।
पांच साल के बाद मिली डिग्री
बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के छात्र रहे कुलभूषण यादव को एमए की डिग्री पांच साल भटकने के बाद मिली। इससे पहले उन्होंने जिस बीएनएम कॉलेज से भूगोल में एमए किया वहां से लेकर यूनिवर्सिटी तक अर्जियों के साथ चार साल भटकना पड़ा। फिर उन्होंने आरटीआइ की मदद ली तब भी यूनिवर्सिटी से उन्हें डिग्री नहीं उपलब्ध हुई।
जब आरटीआइ कानून का डंडा यूनिवर्सिटी प्रशासन पर चला तब उन्हें डिग्री मिली। ऐसा ही मामला पटना विवि, मगध विवि, वीर कुवंर सिहं विवि, बीआर अम्बेडकर विवि, जेपी विवि और ललित नारायण मिश्र मिथिला विवि में सामने आया है। ऐसे विश्वविद्यालयों से जुड़े 13 और मामले सुनवाई के लिए आयोग में आए हैं।