पारंपरिक कालेजों में नवीन शैक्षणिक माडल की मदद से टैलेंट पुल बनाना-अरुण गोयत
एचसीएल टेक्नोलाजीज के साथ ग्रेजुएट ट्रेनी के रूप में करियर की शुरुआत करने वाले अरुण 17 वर्षों से साफ्टवेयर के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उन्हें मालूम है कि स्किल्ड प्रोग्रामर्स की मांग और आपूर्ति में कितनी खाई है। इसे देखते हुए उन्होंने ‘कोडकोशेंट’ की शुरुआत की।
अंशु सिंह। वैश्विक स्तर पर टेक संबंधी नौकरियों की मांग बढ़ रही है, लेकिन विडंबना यह है कि कंप्यूटर साइंस प्रोग्राम इंडस्ट्री की इस मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है। कंपनियां टैलेंटेड कैंडिडेट्स की खोज में लगी रहती हैं और उन्हें उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिलते हैं। इसी को देखते हुए अरुण गोयत ने ‘कोडकोशेंट’ की शुरुआत की है। इसके जरिये वे पारंपरिक कालेजों में नवीन शैक्षणिक माडल की मदद से टैलेंट पूल तैयार कर रहे हैं। कंप्यूटर साइंस के स्टूडेंट्स को तराशने के साथ ही अन्य ब्रांच के छात्रों को भी कंपनी स्पांसर्ड प्रोग्राम के माध्यम से तैयार किया जा रहा है।
दरअसल, कंपनी के संस्थापक एवं सीईओ अरुण भारत को दुनिया का टैलेंट कैपिटल बनाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि इंजीनियरिंग कालेजों से निकलने वाला हर ग्रेजुएट डिग्री के साथ नौकरी के लिए भी तैयार हो। वह पहले दिन से जाब रेडी हो। अरुण कहते हैं कि उनके लिए सफलता वह होगी, जब कंपनी के सभी स्टेकहोल्डर्स संतुष्ट के साथ उन्नति करें।
यह इनका दूसरा स्टार्टअप है, जिसकी शुरुआत अप्रैल 2015 में हुई थी। इससे पहले पांच वर्षों तक इन्होंने इसी डोमेन में जीटीआइ साफ्टवेयर नाम से वेंचर चलाया था। वह बताते हैं, ‘मुझे स्टूडेंट्स और कंपनियों दोनों की मुश्किलों का एहसास था। मैं जानता था कि उनकी समस्याओं का बेहतर समाधान निकाल सकता हूं। अपने पहले स्टार्टअप से भी काफी कुछ सीखने को मिला था। हम बीटेक एवं एमटेक स्टूडेंट्स को आइटी टेक्नोलाजी में इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग दिलाते थे। इसके लिए क्षेत्र के कई इंजीनियरिंग कालेजों से टाइअप किया हुआ था। काफी संख्या में छात्रों ने हमारे प्रोग्राम में एनरोल किया हुआ था। लेकिन उसमें कई सारे उतार-चढ़ाव रहे और हमें वह बिजनेस बंद करना पड़ा। इसके बाद 2013 में मैंने ‘विजआइक्यू डाट काम’ ज्वाइन कर लिया। दो साल वहां काम करने के बाद ‘कोडकोशंट’ के जरिये दोबारा उद्यमिता में लौटना हुआ।’
स्किल गैप भरने की कोशिश: टेक्नोलाजी और स्किल डेवलपमेंट को लेकर एक खास जुनून रखते हैं अरुण। वह बताते हैं, ‘हम देख रहे हैं कि देश में स्किल गैप कैसे दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। स्टूडेंट डिग्री तो हासिल कर ले रहे हैं, लेकिन इंडस्ट्री के अनुरूप जाब रेडी नहीं हो पा रहे हैं। टियर 2 एवं 3 शहरों के कालेज स्टूडेंट्स की स्थिति और बुरी है। उन्हें अच्छी नौकरियां नहीं मिल रही हैं, क्योंकि उनकी कोडिंग एवं टेक्निकल स्किल्स स्तरीय नहीं है। ‘कोडकोशंट’ के माध्यम से हम इसी खाई को भरने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि उन्हें कोडिंग में पारंगत बनाया जाए। इसके लिए और एकेडमीज भी शुरू करनी पड़े, तो करेंगे।’ अरुण ने कालेज एवं यूनिवर्सिटी में कोडेकाशेंट एकेडमी शुरू की है, जहां कोर्स के साथ स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री इंटीग्रेटेड प्रोग्राम के जरिये जाब मार्केट के लिए तैयार किया जाता है। यहां वे इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स से प्रोजेक्ट और कम्युनिटी आधारित लर्निंग के साथ रियल टाइम मेंटरिंग प्राप्त कर पाते हैं। छात्रों के परफार्मेंस को देखते हुए उन्हें उपयुक्त कंपनी में काम करने का अवसर मिलता है। इस तरह हम स्टूडेंट्स और कंपनीज दोनों की जरूरतों को पूरा कर पाते हैं। हमारे प्लेटफार्म से उन्हें साफ्टवेयर डिजाइन एवं डेवलपमेंट का प्रैक्टिकल एवं हैंड्स आन दोनों अनुभव मिलता है।
प्रयोग करने से बढ़ते हैं आगे: किसी भी उद्यम को स्थापित होने में समय लगता है। अरुण के अनुसार, अब तक के अपने सफर में हुई गलतियों से बहुत कुछ सीखा है। शुरुआती दिनों में कई प्रकार के जोखिम उठाए हैं। लेकिन अपने मिशन और विजन के साथ कोई समझौता नहीं किया। कड़ी मेहनत से मार्केट में जगह बनाई। निवेशकों का विश्वास जीता। तभी तो माड्यूलर कैपिटल, समीर गुगलानी, आशीष तुलस्यान, अखिल गुप्ता और दो अन्य एंजेल इनवेस्टर्स ने कंपनी में निवेश किया है। वह कहते हैं, ‘एक सफल उद्यमी बनने के लिए हमेशा नये प्रयोग करते रहना चाहिए और अपनी गलतियों से फौरन सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए। जैसे महामारी के दौरान हमने आनलाइन की अहमियत एवं क्षमता को समझा। उसके माध्यम से आगे बढ़े। स्टूडेंट्स को भी इससे काफी फायदा हुआ।’