चंद्रशेखर आजाद पार्क का नया लेआउट प्लान तैयार करने का दिया High Court ने निर्देश, निजी सर्वेयर का प्लान खारिज
हाईकोर्ट ने प्रयागराज में सिविल लाइंस स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क को अत्याधुनिक करने के लिए एक निजी भूमि सर्वेक्षक परियोजना परामर्श अभियंता द्वारा बनाए गए लेआउट प्लान को निरस्त कर दिया है। साथ ही राज्य सरकार को नए सिरे से लेआउट प्लान तैयार करने का निर्देश दिया है।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज में सिविल लाइंस स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क को अत्याधुनिक करने के लिए एक निजी भूमि सर्वेक्षक परियोजना परामर्श अभियंता द्वारा बनाए गए लेआउट प्लान को निरस्त कर दिया है। साथ ही राज्य सरकार को नए सिरे से लेआउट प्लान तैयार करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने जितेंद्र सिंह विसेन व अन्य की जनहित याचिका पर दिया है। निजी भूमि सर्वेक्षक द्वारा तैयार किए गए लेआउट प्लान में कुछ गड़बड़ियां पाईं गईं और सरकारी अधिवक्ता से कोर्ट ने पूछा कि एक निजी सर्वेक्षक क्यों नियुक्त किया गया था जिसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से योजना तैयार की गई है। वह पार्क की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती। पार्क में हुए निर्माण की उपयोगिता नहीं बताई जा सकी। जिस स्थान पर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने अपने प्राण न्यौछावर किए, योजना में उल्लेख ही नहीं किया गया है।
हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई एक सितंबर तय करते हुए नए प्लान के तहत अधिकारियों को हाजिर रहने को कहा है। कोर्ट ने इसके पहले 13 जुलाई 2022 को राज्य सरकार को चंद्रशेखर आजाद पार्क के अपग्रेडेड करने के लिए लेआउट प्लान पेश करने का निर्देश दिया था। कहा था कि पार्क में मौजूद निर्माण और क्षेत्र के विकास को दर्शाया जाए और अवैध निर्माण हटाया जाय।
कोर्ट ने पार्क में बनी कब्रों, मजारों या मस्जिद समेत सभी अतिक्रमणों को हटाने के लिए कहा था।
साथ ही वकीलों की टीम भेजी थी। बताया गया कि अंग्रेजी गजेटियर में उल्लेख है कि कर्नल नील ने तीन घंट, चालीस मिनट में लगभग 640 मेवातियों को फांसी दी थी और कुल मिलाकर 6 हजार, 746 लोग मारे गए थे। कोर्ट ने गजेटियर की प्रति मांगी है।
सजा बढ़ाने की अपील नहीं कर सकता पीड़ित -हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 372 सीआरपीसी के तहत पीड़ित को आरोपी की सजा बढ़ाने के लिए अपील दायर करने का अधिकार नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला तथा न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने अर्चना देवी की अपील को खारिज करते हुए दिया है।
आरोपी के वकील ने कहा कि धारा 372 सीआरपीसी के तहत सजा बढ़ाने की अपील सुनवाई योग्य नहीं है।
कानूनी मुद्दा था कि क्या आरोपित की सजा बढ़ाने की पीड़ित की अपील पोषणीय है। कोर्ट ने पलविंदर सिंह केस के हवाले से कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 यह स्पष्ट करती है कि कोई भी अपील पोषणीय नहीं है जब तक कि किसी कानून द्वारा यह अधिकार नहीं दिया गया हो।