सक्सेस मंत्रा: समस्याओं के हल के लिए आएं आगे-अर्जुन देशपांडे
जेनरिक आधार में देश के प्रसिद्ध बिजनेस आइकन रतन टाटा तक ने निवेश किया है। वह अर्जुन और उनकी टीम को मेंटर भी कर रहे हैं। जेनरिक आधार की डिजिटल एंट्री में भी उनका पूरा सहयोग रहा है।
अंशु सिंह। महाराष्ट्र के ठाणे में पले-बढ़े हैं अर्जुन। वहीं के डीएवी पब्लिक स्कूल से पढ़ाई की है। परिवार की बिजनेस पृष्ठभूमि न होने के बावजूद उन्होंने अपना स्टार्टअप लांच करने का निर्णय लिया। दवाओं को लग्जरी नहीं, बल्कि एक बुनियादी जरूरत मानने वाले अर्जुन के अनुसार, देश में जेनरिक दवाओं के निर्माताओं एवं सप्लायर्स की बड़ी संख्या होने के बावजूद आम लोगों को महंगी दवाएं खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसी को देखते हुए नींव पड़ी ‘जेनरिक आधार’ की, जिसमें टाटा ग्रुप ने निवेश किया है। कंपनी के संस्थापक एवं सीईओ 16 वर्षीय अर्जुन देशपांडे कहते हैं कि हमें जाब क्रिएटर बनने की जरूरत है, न कि जाब सीकर। हम महंगी दवाओं से मुक्त भारत बनाने के मिशन पर हैं और भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए युवाओं को सशक्त करना चाहते हैं। जहां तक सफलता की बात है, तो एक उद्यमी के लिए सफलता वह है जब उसके ग्राहक संतुष्ट हों। खुश हों। उनकी आवश्यकताएं पूरी हो रही हों। लोगों के जीवन में बदलाव लाना प्राथमिक है, पैसा तो सिर्फ एक बाई-प्रोडक्ट है।
अर्जुन को बहुत छोटी उम्र से समस्याओं का हल निकालने की आदत रही है। आसपास कोई भी दिक्कत होती, तो वे उसका समाधान निकालने की कोशिश करते। बिजनेस में आगे बढ़ने का फैसला भी इसीलिए लिया ताकि समाज में सार्थक बदलाव ला सकें। ऐसा कुछ करें जो लोगों के हित में हो। वह बताते हैं, एक दिन दवा की दुकान में मैंने देखा कि कैसे 70-75 वर्ष के बुजुर्ग दुकानदार से उधार में महंगी दवा देने की गुहार लगा रहे थे। लेकिन दुकानदार राजी नहीं हो रहा था। बात करने पर पता चला कि कैंसर से पीड़ित पत्नी का इलाज कराने के कारण वे बुजुर्ग पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे थे। घर में कमाने वाला एक ही बेटा था, जो आटो रिक्शा चलाता था। ऐसे में कैंसर की महंगी दवाएं ले पाना मुश्किल हो रहा था। इस घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया। मैंने फार्मा सेक्टर को लेकर रिसर्च शुरू किया। इसी के बाद शुरुआत हुई ‘जेनरिक आधार’ की। यहां से कम कीमत पर लोगों को जेनरिक दवाएं मिलती हैं।
फ्रेंचाइजी माडल के साथ बढ़े आगे: आंकड़ों के अनुसार, करीब 60 प्रतिशत भारतीय रोजाना दवाएं खरीदने में असमर्थ हैं। क्योंकि दवाओं की कीमत काफी ऊंची होती है। कई दशकों से बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनियां ऊंची कीमतों पर दवाइयां बेच रही हैं, जिनमें जीवन रक्षक दवाएं तक शामिल हैं। अर्जुन बताते हैं, ‘हम सीधे जेनरिक दवा निर्माताओं से हाई क्वालिटी मेडिसिन लेकर उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाते हैं। इसमें न मार्केटिंग, न डिस्ट्रीब्यूटर, स्टाकिस्ट और न सप्लाई चेन की जरूरत होती है। उलटा उनका खर्च भी खत्म हो जाता है। हम छोटे मेडिकल स्टोर के जरिये ये दवाएं बाजार में पहुंचाते हैं। ये दुकानें ज्यादातर रिहायशी इलाकों में होती हैं, जहां स्थानीय लोग आसानी से पहुंच सकते हैं। हमने देश के हर कोने में माइक्रो एंटरप्रेन्योर्स क्रिएट किए हैं। इससे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से आठ हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिला है।’ ‘जेनरिक आधार’ आज देश के अलग-अलग राज्यों के 150 से अधिक शहरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। अर्जुन के अनुसार, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे मेट्रो शहरों के अलावा बीरभूम, कुशेश्वर स्थान, चिदंबरम आदि छोटे शहरों एवं कस्बों में भी कंपनी की फ्रेंचाइजी हैं। इनके जरिए एक हजार से अधिक प्रकार के उत्पादों की आपूर्ति की जा रही है।
टीम ने मिलकर किया चुनौतियों का सामना: देश के विशाल फार्मा बाजार में प्रवेश करना आसान बात नहीं है। अर्जुन को भी कई स्तरों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा सबसे बड़ी चुनौती रही। वह बताते हैं, ‘हमें लोगों को यह समझाने में वक्त लगा कि जेनरिक दवाओं एवं ब्रांडेड दवाओं में कोई अंतर नहीं होता है। हमने जागरूकता लाने के लिए जमीनी स्तर पर कई अभियान चलाए। उनके लिए निश्शुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए गए। इन सबमें टीम का काफी सपोर्ट रहा। कहते भी हैं कि जब आपकी टीम और आपका खुद का विजन एक हो, तो मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना आसान हो जाता है। इस मामले में मैं लकी रहा हूं। टीम हमेशा ऊर्जा से भरपूर रहती है और मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।’ इतनी छोटी आयु में अर्जुन जिस तरह की नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे उनकी टीम का मनोबल भी बढ़ता है। कोरोना काल में जब लोगों के हाथों से नौकरियां फिसल रही थीं, बेरोजगारी की दर बढ़ रही थी, वैसी स्थिति में भी इनकी कंपनी अपने कर्मचारियों के साथ खड़ी रही। फ्रेंचाइजी माडल के तहत अन्य लोगों को भी उद्यमिता में आने में मदद की।
रतन टाटा का मिला साथ: जेनरिक आधार में देश के प्रसिद्ध बिजनेस आइकन रतन टाटा तक ने निवेश किया है। वह अर्जुन और उनकी टीम को मेंटर भी कर रहे हैं। जेनरिक आधार की डिजिटल एंट्री में भी उनका पूरा सहयोग रहा है। रतन टाटा की उपस्थिति में ही इसका एप लांच किया गया था। इससे कोई भी शख्स घर बैठे दवा आर्डर कर सकता है। आखिर टाटा को अपने बिजनेस में निवेश के लिए कैसे राजी किया, इस पर अर्जुन बताते हैं, ‘कंपनी की वर्ड आफ माउथ पब्लिसिटी हो रही थी। आइआइटी, ब्लैक बुक जर्मनी, टेकएक्स जैसे मंचों पर मुझे आमंत्रित किया जा रहा था। इसी ने रतन टाटा सर का ध्यान भी खींचा। जब उनसे मिला, तो उन्होंने कहा कि अर्जुन अगर यह वेंचर सफल हो जाता है, तो यह पूरे हेल्थकेयर इकोसिस्टम में बेहतरीन बदलाव ला सकता है।‘ अर्जुन की मानें, तो वे जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, कच्छ से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की योजना पर कार्य कर रहे हैं। वह कहते हैं, ‘आने वाले पांच वर्षों में हम देश के एक हजार से भी अधिक शहरों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का इरादा रखते हैं। हमारे साथ 15 हजार से अधिक स्टोर्स जुड़ने की तैयारी में हैं। देश के अलावा पड़ोसी राष्ट्रों बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका एवं यूएई ने भी अपने-अपने देशों में फ्रेंचाइजी शुरू करने के लिए हमसे संपर्क किया है।’
जेनरिक आधार कंपनी के संस्थापक एवं सीईओ अर्जुन देशपांडे