महंगी बिजली खरीदने से राज्यों का इन्कार
नई दिल्ली [जेएनएन]। बिजली संकट दूर करने के लिए केंद्र सरकार भले ही कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने में जुटी हो, मगर राज्यों की ओर से उसे पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है। घरेलू उत्पादन सीमित होने के चलते कोल इंडिया ने कोयले का आयात करने की योजना बनाई है। आयातित महंगे कोयले का ज्यादा बोझ ग्राहकों पर न पड़े, इसके लिए पूलिंग
नई दिल्ली [जेएनएन]। बिजली संकट दूर करने के लिए केंद्र सरकार भले ही कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने में जुटी हो, मगर राज्यों की ओर से उसे पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है। घरेलू उत्पादन सीमित होने के चलते कोल इंडिया ने कोयले का आयात करने की योजना बनाई है। आयातित महंगे कोयले का ज्यादा बोझ ग्राहकों पर न पड़े, इसके लिए पूलिंग के जरिये कोयले का दाम तय किया जाएगा। मगर चार राज्यों ने पूल वाले कोयले से बनी बिजली खरीदने से इन्कार कर दिया है। इनमें गुजरात, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और छत्ताीसगढ़ शामिल हैं।
इन राज्यों का कहना है कि महंगे कोयले की वजह से बिजली बोर्डो को ज्यादा कीमत पर बिजली खरीदनी पड़ेगी। महंगी बिजली का बोझ अंतत: उपभोक्ताओं पर ही डालना होगा, जिसका उन्हें राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ज्यादातर राज्यों के बिजली बोर्डो की वित्ताीय स्थिति दयनीय है। ऐसे में उन पर यह बोझ और भारी पड़ेगा। ऊर्जा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इन राज्यों के बिजली बोर्डो ने बिजली की ऊंची कीमत के भुगतान में आरक्षण देने की मांग की है। अगर सभी राज्यों के बिजली बोर्ड बिजली की ज्यादा कीमत देने को तैयार नहीं होंगे तो उत्पादक कंपनियां कम बिजली का उत्पादन करेंगी। ये कंपनियां अपनी बिजली राज्यों को ही बेचती हैं। इसका असर कोल इंडिया पर भी पड़ेगा जो कोयले की न्यूनतम 80 फीसद आपूर्ति बिजली संयंत्रों को सुनिश्चित करने के लिए आयात की योजना बना रही है। इस अधिकारी के मुताबिक, इन राज्यों को मनाने की कोशिश हो रही है। उम्मीद है कि मामला जल्द ही सुलझ जाएगा।
केंद्र ने पिछले महीने ही राज्यों को आश्वस्त किया है कि आयातित कोयले की वजह से उन्हें बिजली को बहुत ज्यादा महंगा नहीं करना पड़ेगा। केंद्र का आकलन है कि इससे बिजली की दरों में पांच से सात पैसे प्रति यूनिट से ज्यादा का फर्क नहीं पड़ेगा। ऊर्जा मंत्रालय और योजना आयोग ने पूलिंग के जरिये कोयले की कीमत तय करने का प्रस्ताव दिया है। इसके तहत आयातित और घरेलू स्तर पर उत्पादित कोयले का एक 'पूल' [स्टॉक] बनाया जाएगा। इस स्टॉक की कीमत तय की जाएगी, जिससे विभिन्न राज्यों के बिजली संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति की जाएगी। विदेश में कोयला घरेलू बाजार से काफी महंगा है। इसलिए राज्य इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।
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