पूल वाले कोयले की कीमत प्रणाली बदलेगी
पूल वाले कोयले की कीमत तय करने की प्रक्रिया को बदलने की तैयारी की जा रही है। आयातित कोयले को घरेलू कोयले में मिलाने के बाद उसकी कीमत के निर्धारण से कई राज्य और बिजली कंपनियां खुश नहीं हैं। राज्यों का कहना है कि इससे कोयला महंगा हो जाएगा जिससे बिजली की कीमत बढ़ेगी।
नई दिल्ली। पूल वाले कोयले की कीमत तय करने की प्रक्रिया को बदलने की तैयारी की जा रही है। आयातित कोयले को घरेलू कोयले में मिलाने के बाद उसकी कीमत के निर्धारण से कई राज्य और बिजली कंपनियां खुश नहीं हैं। राज्यों का कहना है कि इससे कोयला महंगा हो जाएगा जिससे बिजली की कीमत बढ़ेगी। कई राज्यों ने तो इस कोयले को लेने से इन्कार कर दिया है।
मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] ने कोल इंडिया और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण [सीईए] से पूल वाले कोयले की कीमत तय करने के मुद्दे पर मिलकर काम करने को कहा है। प्राइस पूलिंग मॉडल में जरूरी बदलाव करने का एक प्रस्ताव आया है। इसके तहत कोयले की गुणवत्ता यानी कैलोरिफिक वैल्यू के हिसाब से कीमतों का निर्धारण करने का प्रस्ताव है। अभी प्रस्ताव बेहद शुरुआती दौर में है।
आयातित कोयले की महंगी कीमत की वजह से योजना आयोग ने कहा था कि कोल इंडिया को इसे घरेलू कोयले के साथ मिलाकर कीमत तय करनी चाहिए। इससे आयातित कोयला कंपनियों को महंगा नहीं पड़ेगा। पश्चिम बंगाल समेत कुछ राज्यों ने इस तंत्र पर उंगली उठाई थी। इससे पहले कोल इंडिया ने कहा था कि संशोधित कोयला आपूर्ति समझौता [एफएसए] को लागू करने का तंत्र प्राइस पूलिंग है। यदि प्राइस पूलिंग को मंजूरी मिलती है तो 15 फीसद कोयला इस आधार पर दिया जा सकता है।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा था कि बिजली उत्पादक कंपनियों को कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए प्राइस पूलिंग तंत्र का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कोल इंडिया के बोर्ड ने प्राइस पूलिंग के बिना एफएसए को मंजूरी दे दी थी। अभी तक 30 बिजली कंपनियों ने ही कोल इंडिया के साथ एफएसए पर दस्तखत किए हैं।
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