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August Movement: अंग्रेजों ने मासूम गणेशी को पेड़ से बांधकर इतना पीटा कि जान निकल गई

मातृभूमि को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अनेक माताओं के लाल बलिदान हो गए। स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं उनके परिवार तक पर क्रूर अंग्रजों ने कहर बरपाया था। महिलाओं व बच्चों को भी नहीं बख्शा था।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Sat, 13 Aug 2022 01:40 PM (IST)Updated: Sat, 13 Aug 2022 01:40 PM (IST)
August Movement: अंग्रेजों ने मासूम गणेशी को पेड़ से बांधकर इतना पीटा कि जान निकल गई
अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पर छिपाया था बम।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। मातृभूमि को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अनेक माताओं के लाल बलिदान हो गए। स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, उनके परिवार तक पर क्रूर अंग्रजों ने कहर बरपाया था। महिलाओं व बच्चों को भी नहीं बख्शा था। अंग्रेजों की इसी क्रूरता के शिकार नौ वर्षीय Ganeshi भी हुए। गणेशी के पिता देवदत्त कलंकी का नाम भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अलीगढ़ रेलवे स्टेशन पर विस्फोट करने वाले लोगों में शामिल था। अंग्रेजों ने पहले कलंकी की पत्नी व बहन को प्रताड़ित किया, फिर, गणेशी को पेड़ से बांधकर तब तक पीटते रहे, जब तक उनकी जान न निकल गई। गणेशी का नाम सबसे कम आयु के बलिदानियों में शामिल है।

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ऐसे थे बलिदानी गणेश

स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अतीत के पन्ने पलटते ही रूह कांप जाती है तो कभी रगों में देशभक्ति की भावनाएं उमड़ पड़ती हैं। बलिदानियों की गौरवगाथा पढकर आंखें नम हो जाती है। ऐसे ही बलिदानी थे Ganeshi। अगस्त क्रांति के दौरान अलीगढ़ की प्रमुख घटनाओं में रेलवे स्टेशन कांड भी शामिल था। करो या मरो का गांधीजी का क्रांतिकारी नारा प्रेरणास्रोत बन गया था। इसी दौरान अरुणा आसफ अली अलीगढ़ आईं। उनकी प्रेरणा से क्रांतिकारी दल का गठन हुआ। इसमें कैलाश चंद गांधी, मदनलाल हितैषी, देवदत्त कलंकी, किशनलाल आदि शामिल थे। गणेशी दत्त शर्मा, डोरी लाल गुप्ता, हरीशुंकर गुप्ता समेत अनेक नौजवान गुप्त रूप से शहर में क्रांति के पर्चे बांटने लगे।

अलीगढ़ रेलवे स्‍टेशन पर छिपाया था बम

नौरंगाबाद निवासी देवदत्त कलंकी ने गोरा मिलिट्री ट्रेन को उड़ाने के लिए शक्तिशाली बम रेलवे स्टेशन पर छिपा दिया। 24 सितंबर 1942 को यह बम ट्रेन आने से पहले ही फट गया। छह लोगों की जानें गईं। अंग्रेज बौखला गए। दमन चक्र तेज हो गया। तेजी से गिरफ्तारियां हुईं। देवदत्त कलंकी व अन्य क्रंतिकारी भूमिगत हो गए। उनके पिता भीमसेन जमुना प्रसाद वैद्य के अलावा भीमसेन शर्मा, मदनलाल हितैषी, सत्यमूर्ति किशनलाल, दुर्गा प्रसाद कौशिक, रामचंद्र गौड़, पन्नालाल, रूप किशोर, महेंद्र सिंह, कैलाशचंद, सत्यदेव, रामलाल गौड़, मोतीलाल आर्य समेत 22 लोगों को गिरफ्तार कर आगरा सेंट्रल जेल भेजा गया।

कलंकी के परिवार पर शुरू हुआ जुल्म

स्वतंत्रता सेनानी साहित्यकार प्रो. चिंतामणि शुक्ल ने अपनी पुस्तक अलीगढ़ जनपद का राजनैतिक इतिहास में लिखा है कि रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट के बाद कलंकी काफी समय तक भूमिगत रहे और फिर छिपकर गुजरात पहुंच गए। वहीं पर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने लगे। यहां पुलिस ने उनकी पत्नी, बहन और बेटा गणेशी को गिरफ्तार कर लिया। पत्नी और बहन पर जुल्म ढाया गया। उन्हें पीटा गया। फिर भी अंग्रेज उनसे कलंकी का पता जानने में असफल रहे, लेकिन उनकी क्रूरता खत्म नहीं हुई। उन्होंने मासूम Ganeshi को पेड़ से बांध दिया। उसे बेंतों आदि से पीटा। नन्हीं जान कब तक अंग्रेजों का जुल्म सहती। कुछ देर में ही शरीर से जान निकल कर परलोक चली गई। आज देश आजाद है तो उन क्रांतिकारियों की बदौलत, जिन्होंने खुद को मातृभूमि पर बलिदान कर दिया।


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