August Kranti : 15 अगस्त 1942 को मधुबन थाने पर तिरंगा फहराने जा रहे क्रांतिवीरों को रोकने के लिए अंग्रेजों ने की थी फायरिंग
August Kranti 15 अगस्त 1942 को मऊ के क्रांतिकारियों ने मधुबन थाने पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई और चल पड़े मंजिल की ओर। अंग्रेजों ने भीड़ पर गोली चला दी और 35 से अधिक क्रांतिकारी बलिदान हो गए।
मऊ, अरविंद राय। गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया तो समूचे देश में उबाल आ गया। पूर्वांचल के गांव-गांव की जनता आजाद हवा में सांस लेने की कल्पना मात्र से मचल उठी। स्वतंत्रता पाने के लिए अंग्रेजों के सभी जुल्मो-सितम तक सहने को तैयार था हर शख्स। ऐसे में ही 15 अगस्त, 1942 को मऊ के क्रांतिकारियों ने मधुबन थाने पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई और चल पड़े मंजिल की ओर।
पहले गोबरही में मंगला सिंह की छप्पर में 13 अगस्त, 1942 को हुई गुप्त बैठक में घोसी तहसील मुख्यालय पर कब्जा करने का निर्णय लिया गया। अगले दिन दुबारी में पं. राम सुंदर पांडेय के जोशीले भाषण एवं गुप्त बैठक के बाद क्रांति का इतिहास ही बदल गया। 15 अगस्त की पौ फटते ही आजादी के दीवानों का जत्था मधुबन थाने की ओर कूच करने लगा। अंग्रेजों ने भीड़ पर गोली चला दी और 35 से अधिक क्रांतिकारी बलिदान हो गए।
बुजुर्गवार बताते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों का जत्था जब गांवों से होकर निकलने लगा तो रास्ते में पड़ने वाली हर सरकारी इमारत जमींदोज होती चली गई। रामपुर डाकखाना और पुलिस चौकी, फतेहपुर डाकखाना, कठघरा आबकारी दुकान, उफरौली बीज दुकान आदि नेस्तानाबूद करते चारों तरफ से आ रहे नौजवानों ने मधुबन डाकखाने को तीसरे पहर फूंकने के बाद थाने को घेर लिया। थाने में मौजूद कलेक्टर लगभग 30 हजार की भीड़ सामने देख घबरा उठा। उसने चाल चली और थानेदार के माध्यम से क्रांतिकारियों के प्रतिनिधिमंडल से वार्ता की पहल की।
वार्ता के दौरान मंगलदेव ऋषि, श्याम सुंदर मिश्र, रामसुंदर पांडेय, बहादुर लाल एवं रामवृक्ष चौबे से स्वयं के थाना छोड़ने के बाद तिरंगा फहराने की शर्त रखी। आकाश तक गूंजते इंकलाब जिंदाबाद के नारों के बीच लोगों ने तिरंगा फहराने का निर्णय ले लिया। जब रामबहादुर लाल और मंगलदेव ऋषि तिरंगा फहराने बढ़े तो अचानक थाने के अंदर एवं छत पर चढ़े सिपाहियों की बंदूकें गरज उठीं।
पहली गोली रामनक्षत्र पांडेय के सीने में पैवस्त हुई। भीड़ ने आपा खोया तो फिर फोर्स पर पत्थरों की ऐसी बौछार की कि सिपाही, जमींदार एवं अन्य बंदूकची स्वयं को सुरक्षित करने में लग गए। दर्शन गड़ेरी ने ऐसा पत्थर उछाला कि थाने की छत पर बैठे सिपाही हाशिम के हाथ बंदूक छूटकर नीचे आ गिरी। भीड़ ने थाने की खिड़की तोड़ बंद गेट को तोड़ने का प्रयास किया तो अंदर सें गोलियों की बरसात में 35 से अधिक वीर बलिदान हो गए।