August kranti : देश के नाम 84 ने दिया बलिदान, पांच साल पहले 19 अगस्त 1942 को आजाद हुआ बलिया
बलिया को बागी यूं ही नहीं कहा गया। आजादी की जंग में यहां के क्रांतिकारियों के किरदार की अनगिनत गौरव गाथाएं हैं। 1857 में बलिया के मंगल पांडेय ने क्रांति का जो बीज बोया था उसी का विराट स्वरूप 1942 की अगस्त क्रांति थी।
बलिया, लवकुश सिंह। बलिया को बागी यूं ही नहीं कहा गया। आजादी की जंग में यहां के क्रांतिकारियों के किरदार की अनगिनत गौरव गाथाएं हैं। 1857 में बलिया के मंगल पांडेय ने क्रांति का जो बीज बोया था उसी का विराट स्वरूप 1942 की अगस्त क्रांति थी।
महात्मा गांधी के नौ अगस्त को मुंबई अधिवेशन में करो या मरो के शंखनाद के बाद पूरे बलिया में एक के बाद एक थाना व तहसीलों पर क्रांतिकारी कब्जा जमाना शुरू कर दिए। अलग-अलग क्षेत्रों में 84 क्रांतिकारियों ने बलिदान देकर फिरंगियों को अपनी ताकत का एहसास कराया।
1942 मेें क्रांतिकारियों का नेतृत्व करने वाले चित्तू पांडेय सहित अन्य नेताओं को जिला कारागार में बंद कर दिया गया था। इससे खफा पूरे जनपद के लोगों ने 19 अगस्त को जिला कारागार पर हमला बोल दिया। हाथों में हल, मूसल, कुदाल, फावड़ा, हसुआ, गुलेल, मेटा में सांप व बिच्छू भरकर लोग आए थे। यह हुजूम देखकर तत्कालीन जिलाधिकारी जगदीश्वर निगम व एसपी रियाजुद्दीन ने मंशा भांप लिया और चित्तू पांडेय संग राधामोहन सिंह व विश्वनाथ चौबे को तत्काल जेल से रिहा कर दिया।
चित्तू पांडेय के नेतृत्व में लोगों ने कलेक्ट्रेट सहित सभी सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा झंडा फहराया और शाम करीब छह बजे टाउन हाल में सभा कर बलिया को आजाद राष्ट्र घोषित करते हुए देश में पांच साल पहले ब्रिटिश सरकार के समानांतर स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र की सरकार का गठन कर लिया।
चित्तू पांडेय को शासनाध्यक्ष नियुक्त किया गया। चित्तू पांडेय ने 22 अगस्त 1942 तक यहां सरकार चलाई, लेकिन 23 अगस्त की रात ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल हैलट ने वाराणसी के कमिश्नर नेदर सोल को बलिया का प्रभारी जिलाधिकारी बनाकर भेज दिया।
नेदर सोल ने बलूच फौज के साथ बलिया पहुंचकर अंधाधुंध गोलियां चलवाते हुए एक-एक कर थाना, तहसील व सरकारी कार्यालयों पर पुन: कब्जा जमा लिया। चित्तू पांडेय, महानंद मिश्र, राधामोहन सिंह जगन्नाथ सिंह, रामानंद पांडेय, राजेश्वर त्रिपाठी, उमाशंकर, विश्वनाथ मर्दाना, विश्वनाथ चौबे आदि को जेल में डाल दिया गया। गांव-गांव अत्याचारों का तांडव शुरू हुआ जो 1944 तक जारी रहा। इसके बावजूद बलिया के वीरों ने अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया।
16 अगस्त 1942 को छह दिनों से बंद बलिया शहर के बाजार को जनता ने खोल दिया। प्रशासन की ओर से तहसीलदार पुलिस के साथ बाजार बंद कराने पहुंचें गुदरीबाजार लोहापट्टी में खोरीपाकड़ गांव के युवा दुखी कोइरी के साथ हाथापाई हुई पुलिस ने फायरिंग किया। जिसमें दुखी कोइरी, शिवप्रसाद कोइरी, सूरज मिश्र, ढेला पासवान, राम सुभग राम, शिव मंगल राम, रघुनाथ यादव, गनपति पांडेय पुलिस की गोली से वीरगति को प्राप्त हुए। मोहित लाल को पुलिस ने बालेश्वरनाथ मंदिर के पास गोली मार दिया।
बैरिया क्षेत्र मेें 14 अगस्त 1942 को क्षेत्र बजरंग आश्रम बहुआरा पर 300 लोग इकट्ठा हुए बैरिया थाने पर कब्जा करने का संकल्प लिए। बहुआरा गांव के निवासी भूप नारायण सिंह को कमांडर नियुक्त किए गए। इसी गांव के रामजन्म पांडेय की अगुआई में क्रांतिकारी थाने की ओर चल दिए। उस समय तो थानाध्यक्ष काजिम हुसैन से थाने पर तिरंगा फहराने दिया, लेकिन क्रांतिकारियों के जाने के बाद पुन: तिरंगा हटा दिया।
इसके जवाब में 18 अगस्त को दोपहर होते-होते लगभग 25 हजार से अधिक लोग बैरिया थाने पर पहुंच गए और हमला बोल दिया। जवाब में अंग्रेज सिपाहियों ने गोलियां चलाई तो क्रांतिकारियों ने पथराव शुरू कर दिया। गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच कौशल कुमार ने छलांग लगाकर थाने की छत पर पहुंच गए और तिरंगा फहरा दिए, लेकिन गोली से शहीद हो गए। शाम तक चले इस संघर्ष में कुल 20 लोग वीरगति को प्राप्त हुए। लगभग 150 लोगों को गोली लगी थी। इसी तरह पूरे जिले मेें आजादी मिलने तक हमले की सिलसिला जारी रहा।