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सदियों पुरानी लिपियों शिलालेखों को डिकोड करना सीखेंगे Allahabad University में अरबी-फारसी के स्टूडेंट

Allahabad University अरबी-फारसी के विद्यार्थी मैन्युस्क्रिप्ट (हस्त लिखित लिपिग्रन्थ) इन्सक्रिप्शन (शिलालेख) और नस्तालीक कैलीग्राफी में लिखे मख्तूते (हस्त लिखित उर्दू ग्रन्थ) और कत्बे (शिलालेख) पढ़ना सीखेंगे। 2023-24 से एनईपी लागू होने के बाद विद्यार्थी नए पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर सकेंगे।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 18 Aug 2022 12:56 PM (IST)Updated: Thu, 18 Aug 2022 12:56 PM (IST)
सदियों पुरानी लिपियों शिलालेखों को डिकोड करना सीखेंगे Allahabad University में अरबी-फारसी के स्टूडेंट
मैन्युस्क्रिप्ट, इन्सक्रिप्शन और कैलीग्राफी को अरबी-फारसी के पाठ्यक्रम में किया गया शामिल

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अरबी-फारसी के विद्यार्थी मैन्युस्क्रिप्ट (हस्त लिखित लिपिग्रन्थ), इन्सक्रिप्शन (शिलालेख) और नस्तालीक कैलीग्राफी में लिखे मख्तूते (हस्त लिखित उर्दू ग्रन्थ) और कत्बे (शिलालेख) पढ़ना सीखेंगे। इवि के अरबी फारसी विभाग ने मैन्युस्क्रिप्ट, इन्सक्रिप्शन और कैलीग्राफी को नई शिक्षा नीति के प्रविधानों के तहत नए चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है। 2023-24 से एनईपी लागू होने के बाद विद्यार्थी नए पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर सकेंगे।

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ऐतिहासिक इमारतों, शिलाओं और कागजों पर उकेरे शब्दों को पढ़ना सिखाएगा अरबी-फारसी विभाग

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अरबी फारसी विभाग ने अपने चार वर्षीय पाठ्यक्रम में मैन्युस्क्रिप्ट, इन्सक्रिप्शन और नस्ताकलीक कैलीग्राफी को पहली बार शामिल किया है। विभागाध्यक्ष प्रो. सालेहा रशीद ने बताया कि जिस तरह हिंदी में देवनागरी लिपि होती है, उसकी तरह उर्दू में नस्तालीक बोलते हैं। अरबी विश्व के 52 मुल्कों में पढ़ी सुनी जाती है, फारसी इरान, अफगानिस्तान और उजबेकिस्तान में बोली और पढ़ी जाती है। प्रो. सालेहा रशीद पाठ्यक्रम में मैन्युस्क्रिप्टोलाजी को शामिल करने की वजह बताते हुए कहती हैं कि भारत का पिछले 1000 वर्ष का इतिहास मैन्युस्क्रिप्ट फार्म में हैं। आर्काइव, म्यूजियम और पुस्तकालयों में मैन्युस्क्रिप्ट फार्म में लिखा गया इतिहास रखा है, इसको अभी पढ़ा और समझा जाना बाकी है। इसके अलावा काफी ऐसी प्राचीन इमारतें हैं, जिनपर इनस्क्रिपशन फार्म में पत्थरों पर इबारते (शिलालेख) उकेरी गई हैं।

नस्तालिक कैलीग्राफी की भी करेंगे पढ़ाई

प्रो. सालेहा रशीद ने बताया कि नस्तालीक कैलीग्राफी में लिखे गए मख्तूते और कत्बे पढ़ना सिखाया जाएगा। उन्होंने बताया कि नस्तालीक इस्लामी कैलिग्राफ़ी की एक प्रमुख पद्धति है। इसका बहुतायत में प्रयोग ईरान, दक्षिणी एशिया एवं तुर्की सहित कई देशों में होता है। इसका प्रयोग अरबी लिखने के लिये भी किया जाता है। शीर्षक आदि लिखने के लिये इसका प्रयोग खूब होता है।

संग्रहालय में शिलालेख पढ़ने की हो रही कोशिश

संग्रहालय में रखी एक शिला पर उकेरी गई लिखावट को पढ़ने की कोशिश की जा रही है। यह इनस्क्रिपशन फार्म में हैं। प्रो. सालेहा कहतीं हैं कि ऐसी तमाम लिखावट खुसरोबाग में कई पत्थरों पर उकेरी गई हैं, उनको पढ़ने की कोशिश की जा रही है। कुछ सिक्कों पर संदेश लिखे गए हैं, कई संदेश पढ़ लिए गए हैं और कई को पढ़ने का प्रयास किया जा रहा है।प्रो. सालेहा ने बताया कि यह इलेक्टव कोर्स होंगे। छात्र इनमें से अपनी पसंद का विषय चयन कर आगे की पढ़ाई कर सकेगा।

इवि की विभागाध्यक्ष ने यह बताया

इनस्क्रिप्शन, मैन्युस्क्रिप्ट पढ़े जाने पर इतिहास-पुरातत्व के कई तथ्य सामने आ सकते हैं। कई ऐसे लेख हैं जो अभी तक पढ़े नहीं गए हैं। इनको पढ़ा गया तो कई जानकारियां सामने आ सकती है। पाठ्यक्रम में इन विषयों को शामिल करने का मकसद यही है।

प्रो. सालेहा रशीद

विभागाध्यक्ष, अरेबिक-परसियन विभाग, इवि


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