Move to Jagran APP

जब वानर सेना ने खूब छकाया और क्रांतिवीरों के सामने टूटने लगे थे अंग्रेज, कानपुर में क्रांति की अनसुनी कहानियां

75th Independence day 2022 स्वतंत्रता आंदोलन के समय कानपुर के महाराजपुर और बिधनू थाने में स्वतंत्रता सेनानियों ने गिरफ्तारियां दी थीं। घोड़ों को पानी पिलाने के विरोध पर हमला किया था और वानर सेना ने खूब छकाया था।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 11:25 AM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 11:25 AM (IST)
जब वानर सेना ने खूब छकाया और क्रांतिवीरों के सामने टूटने लगे थे अंग्रेज, कानपुर में क्रांति की अनसुनी कहानियां
कानपुर में क्रांतिवीरों की अनसुनी कहानियां। प्रतीकात्मक चित्र

कानपुर, जागरण संवाददाता। 75th Independence day 2022 : भारत छोड़ो आंदोलन ने देश में स्वाभिमान, स्वराज और आजादी का भाव हर देशवासी में इस कदर भर दिया था कि अंग्रेजों की छोटी-छोटी हरकतें भी लोगों को उकसा रही थीं। अपना देश, अपने शासन का सपना साकार करने का प्रबल भाव हर युवा को विद्रोही बनने के लिए प्रेरित कर रहा था। 

loksabha election banner

जेल में बंद सेनानी भूख सत्याग्रह से अंग्रेजों को परास्त कर रहे थे तो क्रांतिवीरों को गाजे-बाजे के साथ थाना पहुंचा रही आम जनता ने अंग्रेजों का नैतिक साहस भी छीन लिया। थप्पड़ के जवाब में अंग्रेज को मारा थप्पड़ नमक बनाने पर रोक थी।

अंग्रेज अधिकारी फुफकार गांव में शोरे के गोदाम की जांच कर रहे थे। स्वाधीनता सेनानी रामशंकर के पुत्र व स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के महानगर अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार सिन्हा बताते हैं कि उनके बाबा को अंग्रेज अधिकारी से बात करने के लिए बुलाया गया।

इस बीच, अंग्रेज अधिकारी ने गोदाम के संचालक को थप्पड़ मार दिया। यह बात रामशंकर को बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने अंग्रेज अधिकारी को करारा थप्पड़ जड़ दिया। अंग्रेजों ने बदला लेने के लिए उनके पिता विश्वेश्वर दयाल को घोड़े में बांधकर थाने तक घसीटा जिससे उनकी मौत हो गई। बाद में रामशंकर ने महाराजपुर थाने में समर्पण किया। जेल से छूटे तो साथियों के साथ मिलकर सरसौल में रेल लाइन के सिग्नल तार काट दिये।

वानर सेना ने अंग्रेज सरकार को छकाया

कानपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी धर्मकुमार सिंह ने लगभग छह साल की उम्र में ही अंग्रेज दासता के विरोध में आजादी का बिगुल फूंक दिया। बच्चों की तब वानर सेना बनाई गई थी। स्वाधीनता आंदोलन में यह वानर सेना दीवारों पर पोस्टर लगाने और नारा लिखने के काम में जुटी थी।

जो लोग अंग्रेजों की गिरफ्तारी से बचने के लिए खेतों या जंगलों में छिपे रहते थे उन तक भोजन-पानी पहुंचाने की जिम्मेदारी इसी वानर सेना पर थी। धर्मकुमार सिंह बताते हैं कि कंजरीखुर्द गांव में उनके परिवार के सभी सदस्य घर में नजरबंद थे। अंग्रेज की हत्या के मामले में पिता फरार चल रहे थे। ऐसे में वानर सेना में सक्रिय होकर उन्होंने आजादी आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई।

घोड़ों को पानी पिलाने का किया विरोध

नर्वल तहसील के पाली गांव के मोतीलाल शुक्ल ने अंग्रेजों के विरोध में जब क्रांति की मशाल जलाई तो उनकी उम्र महज 15 साल थी। उनके पुत्र डा. अशोक शुक्ल बताते हैं कि पूरा वाकया उनकी मां कृष्णा देवी को याद है। वह बताती हैं कि गांव के पास रहनस ताल से आस-पास के सभी गांवों के लोग पीने का पानी लेने जाते थे।

इसी ताल में पास ही डेरा डाले अंग्रेजों ने अपने घोड़ों को पानी पिलाना शुरू कर दिया। इससे किशोर मोतीलाल का खून खौल उठा। एक दिन उन्होंने अपने साथियों के साथ ताल पर अंग्रेजों को घेर लिया और जमकर पीटा। बाद में बिधनू थाने में गिरफ्तारी दी।

कानपुर, गोंडा, बहराइच जैसी जेलों में रहे और भूख सत्याग्रह से अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया। हारकर अंग्रेजों को उन्हें छोड़ना पड़ा। 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरागांधी ने ताम्रपत्र देकर सम्मान किया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.