आलू की अधिक पैदावार के लिए उन्नत खेती कैसे करें, आइए जानते हैं
आलू की खेती के लिए अम्लीय और भुरभुरी मिट्टी उत्तम मानी जाती है। बुवाई से पहले खेत की 2-3 बार हैरो से अच्छी जुताई करना चाहिए। बीजारोपण के लिए मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। वहीं से अनावश्यक खरपतवार को बाहर कर देना चाहिए।
नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। आलू की गुणवत्तापूर्ण और अधिक पैदावार साल दर साल करना बेहद मुश्किल काम है। इसके लिए उन्नत किस्मों का चयन करने के साथ रोग रहित बीजों की बुवाई करना अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा उर्वरकों का सही उपयोग, सिंचाई की व्यवस्था और रोग नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के प्रयोग का आलू उपज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तो आइए जानते हैं आलू की फसल का चक्र-
उचित मिट्टी -
आलू की खेती के लिए मिट्टी की अम्लीय और क्षारीय क्षमता पीएच मान 4.8 से 5.4 होना चाहिए। इससे आलू में कार्बोहाइड्रेट के निर्माण और भंडारण की क्षमता बढ़ती है।
खेत की तैयारी-
आलू की खेती के लिए अम्लीय और भुरभुरी मिट्टी उत्तम मानी जाती है। बुवाई से पहले खेत की 2-3 बार हैरो से अच्छी जुताई करना चाहिए। बीजारोपण के लिए मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। वहीं से अनावश्यक खरपतवार को बाहर कर देना चाहिए। यह आलू के पौधे के विकास में बाधा बनते हैं और खरपतवारों की वजह से बीज के विकास के लिए हवा और पानी का परिसंचरण ठीक से नहीं हो पाता है। आलू की अच्छी उपज के लिए कतार से कतार की दूरी 60 से 90 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखना चाहिए।
मिट्टी परीक्षण-
किसी भी फसल की गुणवत्तापूर्ण और अधिक पैदावार के लिए मिट्टी परीक्षण बेहद आवश्यक होता है। आलू की खेती करने से पूर्व भी मिट्टी परीक्षण करा लेना चाहिए। मिट्टी परीक्षण से आलू के खेती के लिए जरुरी तत्व जैसे फॉस्फोरस, पौटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम और जिंक जैसे तत्वों का सही अनुमान हो जाता है। मिट्टी परीक्षण के लिए नमूना एकत्रित करने के लिए सबसे पहले खेत के चारों कोनों से 10 से 15 स्थान चिन्हित कर लें। इसके बाद चिन्हित जगह से मिट्टी के उपर से घासफूस और कुड़ा करकट हटा दें। इसके बाद इन सभी स्थानों पर 6 से 9 इंच का गहरा गड्ढा खोदे और फिर खुरपी की मदद से 2 सेंटीमीटर मोटी मिट्टी की परत निकाल कर साफ बाल्टी या अन्य बर्तन में रख लें। अब इकट्ठी की गई पूरी मिट्टी को हाथों की मदद से अच्छी तरह मिलाकर एक साफ कपड़े पर डालकर मिट्टी को चार अलग-अलग ढेर बना लें। अब दोबारा दो ढेर की मिट्टी को वापस मिला लें और फिर चार 4 ढेरों में इकट्ठा कर लें। यह प्रक्रिया तब तक दोहराए जब तक आधा किलो न बच जाए। यह मिट्टी परीक्षण के लिए भेजी जाती है। मिट्टी को परीक्षण के लिए भेजने के लिए साफ प्लास्टिक थैली या कपड़ें में बांधे। मिट्टी के नमूने के साथ एक कागज़ पूरी जानकारी भरकर चिपका दें और अब इसे परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेज दें।
अधिक पैदावार देने वाली आलू की उन्नत किस्में-
कुफरी सिंदुरी- यह देश के मैदानी क्षेत्रों के लिए उन्नत किस्म है। इसके कंद मध्यम आकार के एक जैसे हल्के लाल और गोल होते हैं। जो मैदानी क्षेत्रों में 120 दिन पक जाती है।
कुफरी चंद्रमुखी- इसके कंद सफेद, चिकने और अंडाकार होते हैं। यह आलू की अगेती किस्म है और 70 से 80 दिनों में पक जाती है। इसका भंडारण अधिक समय तक किया जा सकता है। यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म जिससे प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल की उपज होती है।
कुफरी खासी गारो- यह आलू की उन्नत किस्म है जो आलू में लगने वाली प्रमुख बीमारी अगेती झुलसा, पछेती झुलसा और वायरस जनित रोग प्रतिरोधक होती है। यह असम के पहाड़ियों क्षेत्रों के लिए उत्तम किस्म है जो तेजी से वृद्धि करती है।
कुफरी चमत्कार- कुफरी चमत्कार 90 से 110 दिनों में पक जाती है। इसके कंद चमकदार और चिकना होता है। यह अगेती झुलसा, पछेती झुलसा रोग प्रतिरोधक होती है।
कुफरी शेक्ट्रॅान- यह आलू की पछेती किस्म है जिसे उत्तर प्रदेष के अलावा राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में विशेष रूप से बोया जाता है।
कुफरी ज्योति- यह भी आलू की उन्नत किस्म है जो देश के मैदानी क्षेत्रों में 100 और पहाड़ी क्षेत्रों में 120 दिनों में पक जाती है। यह अगेती झुलसा, पछेती झुलसा रोग प्रतिरोधक होती है।
कुफरी अलंकार- यह किस्म उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए अनुकूल है। यह महज 70 दिनों में पक जाती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल की उपज होती है। पछेती अंगमारी रोग प्रतिरोधक होती है।
कुफरी जीवन- यह देर से पकने वाली किस्म है। साथ ही पछेती झुलसा समेत अन्य रोग प्रतिरोधक होती है।
उपयोगी कीटनाशक-
कर्तनकीट- कर्तनकीट से बचने के लिए डर्स्बन 20 ईसी का छिड़काव करें या फिर मिट्टी में फोरेट डालें।
इल्लियों से बचाव- इल्लियों से बचाव के लिए थिओडान का छिड़काव करें।
एफिड या माहू कीट- इस कीट से बचाव के लिए रोजोर या नुवक्रॉन या मैलाथियान का छिड़काव करें।
चेपा कीट या लीफहापर- इस कीट से बचाव के लिए मेटासिस्टॉक्स का 0.1 प्रतिशत की मात्रा में छिड़काव करें।
आलू की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और रोकथाम-
सूत्रकृमि या राउंडवर्म- यह परजीवी है जिसका वैज्ञानिक नाम नेमाटोड है। यह आलू की छोटी जड़ के आंतरिक भागों को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती है और पौधे सुख जाते हैं और उकटा रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। इससे बचाव के लिए गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें और मिट्टी अच्छी तरह से धूप लगने दें। इससे मिट्टी में नेमाटोडस नियंत्रण में मदद मिलती है।
अगेती झुलसा- इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 का छिड़काव करें।
पछेती झुलसा- इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 या डाइथेन जेड-78 या डिफोलेटन या जिनब का छिड़काव करें।
स्कैब रोग- एजाजोल-6 या मक्र्यूरिक फंगीसाइड का छिड़काव करें।
विषाणु जनित रोग- इस रोग से बचने के लिए सही बीज का चुनाव करें। मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव करें।
(यह आर्टिकल ब्रांड डेस्क द्वारा लिखा गया है।)