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आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी राज्य कैसे बना, ये हैं मुख्य कारण

भारत में आलू पहली बार 17वीं शताब्दी में यूरोप से आया। वर्तमान में आलू की खेती देश लगभग हर हिस्से में होती है लेकिन इसके उत्पादन में पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश काबिज है। देश का लगभग 32 प्रतिशत आलू का उत्पादन इकलौते उत्तर प्रदेश में होता है।

By Ankit KumarEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 08:01 PM (IST)Updated: Fri, 13 Nov 2020 05:35 PM (IST)
आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी राज्य कैसे बना, ये हैं मुख्य कारण
आलू के बेहतर उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु का होना बेहद आवश्यक है।

नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। भारत में आलू पहली बार 17वीं शताब्दी में यूरोप से आया। वर्तमान में आलू की खेती देश लगभग हर हिस्से में होती है लेकिन इसके उत्पादन में पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश काबिज है। देश का लगभग 32 प्रतिशत आलू का उत्पादन इकलौते उत्तर प्रदेश में होता है। यहां के किसानों ने आलू की सफल खेती करके एक नई ईबारत लिखी है। तो आइए जानते हैं आखिर वो कौन से कारण है जिसके कारण आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी राज्य बन गया-

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उपयुक्त जलवायु-

आलू के बेहतर उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु का होना बेहद आवश्यक है। इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु सर्वोत्तम मानी जाती है। यूपी में आलू की खेती उपोष्णीय जलवायु की दशाओं में रबी के सीजन में होती है। इस समय यहां दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 4-15 डिग्री सेल्सियस होता है। जो आलू की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त माना जाता है। 

अत्याधुनिक तकनीक-

यूपी के किसानों का मानना है कि अन्य फसलों की तरह आलू के अधिक उत्पादन के लिए अत्याधुनिक तकनीक को अपनाना बेहद जरुरी है। इसलिए यहां के किसान आलू की खेती करने के लिए पारंपरिक की खेती की बजाय आधुनिक तकनीक अपनाते हैं। तो आइए जानते हैं आखिर वो कौन से तरीके है जिससे यूपी के किसान आलू अच्छी पैदावार लेते हैं। 

खेत की जुताई का सही तरीका-

आलू की फसल के बंपर उत्पादन के लिए गर्मी के मौसम में खेत की एक गहरी जुताई करना बेहद आवश्यक है। यही वजह है कि यहां के किसान गर्मी में ही खेत की ट्रैक्टर से एक गहरी जुताई कर देते हैं। इसके बाद बुवाई के समय खेत की दो जुताई कल्टीवेटर की जाती है।जुताई के लिए सही ट्रैक्टर्स और उपकरण का चुनाव बेहद जरूरी है। ऐसे में जो ट्रैक्टर्स दमदार हो और जिनका माइलेज शानदार हो उन्हीं का चुनाव करना चाहिए। इससे आपको अधिक उत्पादन मिलता है। साथ ही खर्च में भी बचत होती है। 

हरी खाद का सही उपयोग-

आलू की गुणवत्तापूर्ण और ज्यादा पैदावार के लिए यहां के किसान कम्पोस्ट खाद के अलावा सनई और ढैंचा की हरी खाद का उपयोग करते हैं। किसान सनई और ढैंचा की खेत में ही तुड़ाई कर देते हैं। इससे आलू की फसल के लिए खेत में आर्गनिक खाद मिल जाती है। जिससे अच्छी पैदावार होती है।

 

बुवाई का उन्नत तरीका-

यहां के किसान आलू की बुवाई का उन्नत और वैज्ञानिक तरीका अपनाते हैं। बुवाई से पहले यदि खेत में पर्याप्त नमी नहीं होने पर वे अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में खेत को पलेवा करके तो गहरी जुताई करते हैं। इससे बुवाई के समय पालियों या नाली की रीज (चोटी) अच्छी बनती है। जिससे आलू का प्रोडक्शन ज्यादा मात्रा में होता है। साथ ही गहराई में बुवाई के लिए ट्रैक्टर्स की हाइड्रोलिक की सटीकता बेहद जरुरी है। जैसे कि महिंद्रा XP प्लस ट्रैक्टर का mLift हाइड्रोलिक। 

बीज शोधन का उन्नत तरीका-

यूपी के प्रोगेसिव किसान आलू के बुवाई के पहले उपयुक्त बीजोपचार करते हैं। इसके लिए बुवाई के आलू को 15 दिन पहले कोल्ड स्टोरेज से निकाल लिया जाता है। इसके बाद बीज को 3 प्रतिशत बोटिक एसिड से आलू के बीज को उपचारित कर 15 दिनों के लिए छायादार स्थान पर रख देते हैं ताकि बीज में अंकूरण हो जाए। 

बीज का सही चयन-

अच्छी पैदावार के लिए बीज का सही चयन बेहद जरूरी माना जाता है। यहां के किसान बुवाई के लिए आलू के बीज सही चयन करते हैं। इसके लिए वे 40 से 50 और 60 से 100 ग्राम के आलू का चयन करते हैं। 

आदर्श सिंचाई-

यहां के किसान आलू की फसल के लिए नियमित अंतराल में सिंचाई करते हैं। आलू के पौधों की उचित वृध्दि तथा विकास एवं अच्छी पैदावार के लिए 7-10 सिंचाई की जाती है। यदि बुवाई पलेवा करके नहीं की गई है तो 2-3 दिन बाद एक हल्की सिंचाई कर देते हैं। जिससे खरपतवार 50 प्रतिशत से अधिक वृध्दि नहीं कर पाता है। इसके बाद पहली सिंचाई 8-10 दिन बाद करते हैं। तापमान में गिरावट या पाला पड़ने की स्थिति में भी वे सिंचाई कर देते हैं। इससे फसल को किसी तरह का नुकसान नहीं होता। वहीं सिंचाई के लिए आधुनिक तकनीक जैसे स्प्रिंकलर और ड्रिप का प्रयोग किया जाता है। इससे जहां पानी की 40-50 प्रतिशत की बचत होती है वहीं फसल की पैदावार में भी 10-12 प्रतिशत का इजाफा होता है। 

उन्नत किस्मों का चयन-

यूपी के किसान बुवाई के लिए नई और उन्नत किस्मों का चयन करते हैं। तो आइए जानते हैं वे कौन-सी किस्में जिसकी बुवाई यहां के किसान करते हैं। 

मुख्य किस्में-

यूपी के किसान मुख्यतः आलू की इन उन्नत और अधिक पैदावार देने वाली किस्मों की बुवाई करते हैं जैसे-कुफरी बहार, कुफरी आनंद, कुफरी बादशाह, कुफरी सिन्दुरी, कुफरी सतलज, कुफरी लालिमा, कुफरी अरूण, कुफरी सदाबहार और कुफरी पुखराज।

 

अगेती किस्में-

अगेती किस्मों में यहां के किसान कुफरी चन्द्रमुखी, कुफरी पुखराज, कुफरी सूर्या, कुफरी ख्याति, कुफरी बहार और कुफरी अशोकी की बुवाई करते हैं। 

पछेती किस्में-

यहां के किसान अच्छी पैदावार के लिए पिछेती किस्मों में कुफरी सतलज, कुफरी बादशाह और कुफरी आनंद की बुवाई करते हैं। 

प्रोससिंग के लिए इन उन्नत किस्मों की बुवाई-

प्रोसेसिंग या प्रसंस्करण के लिए यहां के किसान उन्नत किस्में जैसे कुफरी सूर्या, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-3, कुफरी चिप्सोना-4 और कुफरी फ्राईसोना की उपज लेते हैं। 

खाद और उर्वरक प्रबंधन-

यहां के किसान आलू की अच्छी उपज के लिए खाद और उर्वरक तीन तरह से आदर्श प्रबंधन करते हैं। 

पहला प्रबंधन- 

नाइट्रोजन - नाइट्रोजन के पूर्ति के बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 360 किलो कैल्शियम, अमोनिया और नाइट्रेट यूरिया दिया जाता है।

फास्फोरस - बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 500 किलो सुपर फाॅस्फेट दिया जाता है।

पोटाश - बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 167 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश दिया जाता है। 

दूसरा प्रबंधन-

नाइट्रोजन - बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 130 किलो यूरिया दिया जाता है। दूसरी खुराक मिट्टी चढ़ाते समय प्रति हेक्टेयर 261 किलो यूरिया दिया जाता है।

फास्फफोरस - बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 500 किलो सुपर फाॅस्फेट दिया जाता है।

पोटाश-बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 167 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश दिया जाता है। 

तीसरा प्रबंधन-

नाइट्रोजन - पहली खुराक बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 128-174 किलो यूरिया डीएपी दिया जाता है। दूसरी खुराक मिट्टी के समय प्रति हेक्टेयर 196 किलो यूरिया दिया जाता है।

फास्फोरस - बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 500 किलो सिंगल सुपर फाॅस्फेट दिया जाता है।

पोटाश - बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 167 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश दिया जाता है। 

कीटों एवं व्याधियों से रोकथाम के लिए विशेष उपाय-

आलू की फसल को कई तरह के कीट और व्याधियां नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए यहां के किसान विशेष उपाय करते हैं। 

पिछेता झुलसा-

यह फफूंदजनक भयानक बीमारी है जो आलू की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर देता है। इससे निपटने के लिए किसान सिंचाई बंद करके अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव किया जाता हैं। 

अगेता झुलसा-

पत्तियों और कन्दों में लगने वाली इस बीमारी से निपटने के लिए यहां के किसान अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव सही समय पर करते हैं। 

पत्ती मुड़ने वाला रोग-

यह वायरस जनित बीमारी है जिसके रोकथाम के लिए किसान दिसंबर-जनवरी माह में अनुशंसित कीटनाशक का

छिड़काव करते हैं। 

दीमक-

यह अगेती फसल की बीमारी है जिसके रोकथाम के लिए समय पर अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है। 

भण्डारण के उचित इंतजाम-

यहां के किसान आलू की खुदाई मध्य फरवरी से मार्च के दूसरे सप्ताह में कर लेते हैं जो कि खुदाई का सही समय होता है। वहीं आलू के भण्डारण के लिए उचित इंतजाम किए जाते हैं। बाजार में शीघ्र बेचने वाले आलू को कच्चे हवादार मकानों, छायादार जगहों पर रखा जाता है। वहीं आलू को लंबी अवधि तक रखने के लिए शिमला स्थित केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई डिजाइन के अनुसार जीरो एनर्जी कोल्ड स्टोर तैयार किए जाते हैं। 

ज्यादा रकबा-

अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश राज्य में आलू की खेती का रकबा ज्यादा है। इसलिए भी यहां आलू का उत्पादन अधिक होता है। साल 2019-20 में देश में आलू का उत्पादन 513 लाख टन हुआ था वहीं इकलौते उत्तर प्रदेश में 160 लाख टन आलू का उत्पादन हुआ था। जबकि पश्चिम बंगाल में 95 लाख टन आलू और शेष उत्पादन अन्य राज्यों में हुआ था। 

(यह आर्टिकल ब्रांड डेस्‍क द्वारा लिखा गया है।)


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