आलू की बुआई कैसे करें और किस तरह पाएं कीटों से निजात, यहां जानें
सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियों में से एक आलू है। इसकी फसल उगाते समय किसान कई तरह की बातों को ध्यान में रखते हैं ताकि किसी तरह के नुकसान से बचा जा सके। ऐसे में सबसे जरूरी हो जाता है आलू की बुआई करना।
नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियों में से एक आलू है। इसकी फसल उगाते समय किसान कई तरह की बातों को ध्यान में रखते हैं ताकि किसी तरह के नुकसान से बचा जा सके। ऐसे में सबसे जरूरी हो जाता है आलू की बुआई करना। इसमें सबसे पहले चयन होता है सही भूमी का। आलू क्षारीय मृदा के अलावा बाकी सभी तरह की मृदाओं में उगाया जा सकता है। हालांकि जीवांश युक्त रेतीली दोमट भूमि और सिल्टी दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। भूमि में जल निकास की व्यवस्था भी जरूरी होनी चाहिए।
क्या है बुआई का सही वक्त
भारत में आलू की बुआई इस तरीके से की जाती है कि दिसंबर के अंत तक फसल तैयार हो जाए। यानी आलू पूरी तरह बन जाए। ऐसे में उत्तर पश्चिमी भागों में बुआई के लिए सही समय अक्टूबर माना जाता है। पूर्वी भारत की बात करें तो यहां आलू की फसल अक्टूबर के मध्य में शुरू की जाती है और आलू को जनवरी तक बोया जाता है। वहीं आगेती बुआई में आलू को बढ़ने के लिए अधिक समय मिल जाता है, लेकिन उपज अधिक नहीं होती है।
क्या है आलू की बुआई की सही विधि
आलू की बुआई की सही विधि में सबसे जरूरी है पौधों की दूरी। क्योंकि अगर आलू के पौधों में उचित दूरी नहीं रखी जाएगी, तो उनतक पानी और रोशनी भी ठीक से नहीं पहुंच पाएंगे। ऐसे में हर पौधे के बीच उतनी दूरी जरूर रखनी चाहिए, जिससे रोशनी और पानी उचित मात्रा में पौधे को मिल सके। पौधों में अगर 20 से 25 सेमी का अंतर रखा जाए तो आलू का आकार भी ठीक रहता है और उपज भी अच्छी होती है। ऐसे में ना तो दूरी बहुत कम होनी चाहिए और ना ही बहुत ज्यादा बल्कि उसमें संतुलन बनाए रखना चाहिए। एक ध्यान देने वाली बात सिंचाई से संबंधित भी है। पहली सिंचाई तब होनी चाहिए, जब अधिकांश पौधे उग जाएं। वहीं दूसरी सिंचाई तब होनी चाहिए, जब आलू बनने की अवस्था चल रही हो।
किस तरह पाएं कीटों से निजात
आलू की फसल के दौरान कई बार उनमें कीट लग जाते हैं, जो फसल को काफी नुकसान भी पहुंचाते हैं। आलू की उपज को पिछेला सुलझा (लेट ब्लाइट) नुकसान पहुंचाता है। इससे आलू में फफूंद लग जाती है। आलू के हर भाग पर इसका प्रभाव पड़ता है। ऐसा होने पर सिंचाई बंद कर देनी चाहिए और अगर सिंचाई जरूरी हो तो बहुत कम करनी चाहिए। जब भी आपको इसके लक्षण दिखें तो मैंकोजेब दवा को छिड़कें।
दूसरी समस्या है अगेता झुलसा की। जिससे पत्ती और कंद प्रभावित होते हैं। ऐसा होने पर पत्तियों पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। इससे बचने के लिए कॉपर फफूंदनाशक के घोल का इस्तेमाल होना चाहिए। तीसरी परेशानी है पोटेटो लीफ रोल की। जिसमें पौधे की पत्ती मुड़ने लगती हैं। इससे बचाव के लिए दैहिक कीटनाशक का छिड़काव करें। वहीं चौथी परेशानी दीमक की है। इससे पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। साथ ही पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं। इससे बचाव के लिए सिंचाई के पानी में डाइकोफाल और क्यूनालफॉस का इस्तेमाल करें।
(यह आर्टिकल ब्रांड डेस्क द्वारा लिखा गया है।)