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बायोडीजल के कचरे से बनेंगे उपयोगी उत्पाद

अब भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है, जिसकी मदद से ग्लिसरॉल से उपयोगी उत्पाद तैयार किए जा सकेंगे।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 18 Dec 2017 01:09 PM (IST)Updated: Mon, 18 Dec 2017 01:09 PM (IST)
बायोडीजल के कचरे से बनेंगे उपयोगी उत्पाद
बायोडीजल के कचरे से बनेंगे उपयोगी उत्पाद

पुणे, आइएसडब्ल्यू। जिस रफ्तार से वैश्विक जनसंख्या में इजाफा हो रहा है उसी तेजी से परंपरागत ईंधन खत्म होते जा रहे हैं। वैज्ञानिक इसके विकल्प भी तलाश रहे हैं। परंपरागत ईंधन का एक अच्छा विकल्प है बायोडीजल। इससे प्रदूषण भी कम होता है। लेकिन इसके उत्पादन के दौरान ग्लिसरॉल नामक व्यर्थ पदार्थ निकलता है। इसके निस्तारण के कारण इसकी कीमत में इजाफा हो जाता है।

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अब भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है, जिसकी मदद से ग्लिसरॉल से उपयोगी उत्पाद तैयार किए जा सकेंगे। इस तकनीक का ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि बैक्टीरिया की मदद से इस व्यर्थ पदार्थ को इस तरह विभाजित किया जा सकता है, जिससे उपयोगी चीजें तैयार की जा सकें। इनका इस्तेमाल कर व्यावसायिक लाभ लिया जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने ऐसे दो बैक्टीरियल स्ट्रैंस की पहचान कर ली है, जिसकी मदद से कच्चे ग्लिसरॉल का प्रयोग कार्बन के साथ-साथ ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा सकता है। इससे व्यावसायिक रूप से मूल्यवान उत्पाद 2,3-ब्यूटेनडायोल (बीडीओ), 1,3-प्रोपैनडायोल (पीडीओ) के साथ एक्टोईन और एथेनॉल तैयार किए जा सकते हैं।

इन्होंने विकसित की प्रक्रिया 

इस प्रक्रिया को पुणे के केमिकल इंजीनियरिंग एंड प्रोसेस डेवलपमेंट डिविजन के वैज्ञानिकों ने नेशनल कलेक्शन ऑफ इंडस्ट्रीयल माइक्रोऑर्गेनिज्मस सेंटर, नेशनल केमिकल लेबोरेट्री के वैज्ञानिकों के साथ संयुक्त रूप से तैयार किया है।

इस तरह तलाशी तकनीक 

शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने एरोबिक परिस्थितियों में बैक्टीरियल कल्चर के मिश्रण का प्रयोग कच्चे बायो ग्लिसरॉल को फरमेंट करने के लिए किया। इसके लिए जिन बैक्टीरियल स्ट्रैंस का प्रयोग किया गया वे एंट्रोबैक्टर एरोजींस एमसीआइएम 2695 और क्लेबिसेला निमोनिया एमसीआइएम 5215 था। इन स्ट्रैंस का जब एक साथ इस्तेमाल किया गया तब कच्चे ग्लिसरॉल का 100 फीसद रूपांतरण करने में सफलता हासिल हुई। 

समान्यत: बायोडीजल उत्पादों की कीमत बहुत अधिक होती है, जिसकी वजह कच्चे ग्लिसरॉल के निस्तरण का खर्चा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस तकनीक से जहां इस लागत को कम करने में मदद मिलेगी, वहीं इससे बेकार जाने वाले ग्लिसरॉल से उपयोगी उत्पाद भी तैयार किए जा सकेंगे। यानी दोनों ओर से व्यावसायिक स्तर पर लाभ मिलेगा। यह खोज हाल ही में बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है।


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